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Thursday, August 9, 2018

सामाजिक प्रतिमान एवं मूल्य भाग 2 /RAS मुख्य परीक्षा प्रश्न पत्र 1 /social paradigm and values part 2

सामाजिक प्रतिमान एवं मूल्य भाग 2 /RAS मुख्य परीक्षा प्रश्न पत्र 1 /social paradigm and values part 2

भाग एक में हमने सामाजिक प्रतिमान का अध्ययन किया था।  इस भाग में हम समाजिक मूल्यों के बारे में विस्तार से समझेंगे।

सामाजिक मूल्य आमतौर पर हमें यह बतलाते है की क्या सही है , क्या करने योग्य है तथा क्या अच्छा है।
प्रत्येक व्यक्ति के मूल्य उसकी अपनी संस्कृति से प्रभावित होते है तथा जिस समाज में वह रहता है उसकी पसंद को सामने रखते है।

इस प्रकार सामाजिक मूल्य वे मान लक्ष्य अथवा आदर्श है जिनके आधार पर विभिन्न मानवीय परिस्थितियों तथा विषयो का मूल्याङ्कन किया जाता है।

राधा कमल मुखर्जी के अनुसार-" मूल्य समाज द्वारा अनुमोदित  उन  इच्छाओ और लक्ष्यों के रूप में परिभाषित किये जा सकते है जिन्हे अनुबंधन अधिगम या समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा आत्मसात किया जाता है और जो व्यक्तिगत मानकों तथा आवश्कताओ  के रूप में परिवर्तित हो जाते है।

सामाजिक मूल्यों का महत्व

मूल्य सामूहिक अंतर व्यवहार को स्थायित्व देते है। ये समाज को एक साथ बांधकर रखते है।
मूल्यों द्वारा समाज एवं संस्कृति की पहचान होती है
मूल्य हमारे क्रिया कलापो को निर्धारित करने वाले नियमो को वैधता प्रदान करते है।
मूल्य विभिन्न प्रकार के नियमो में तालमेल बिठाने की कोशिश करते है
मूल्य व्यक्ति के आचरण को निर्देशित करता है।

पारम्परिक एवं आधुनिक मूल्य -

परम्परिक भारतीय समाज का गठन सोपानक्रम, बहुवाद तथा धार्मिक पवित्रता के सिद्धांत पर किया गया था।

सोपानक्रम सामाजिक इकाइयों के क्रम को प्रदर्शित करता है।  उदाहरण स्वरुप पुरातन भारतीय समाज ब्ब ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य तथा शूद्र जैसे वर्गो में विभक्त था। इन सभी वर्गों का अपना अपना कार्य निश्चित था तथा किसी भी वर्ग को अन्य वर्ग के क्षेत्र में दखल देने का अधिकार नहीं था।

बहुवाद हमारे समाज की सहनशीलता का परिचायक है। हमने अन्य धर्मो को परिवर्तन करने के बजाय हमारे समाज में आत्मसात किया है जिसकी वजह से हजारो सालो के इतिहास में अनेक पंथ प्रायद्वीपिय भारत में फले फूले तथा विकसित भी हुए।

धार्मिक पवित्रता के अंतर्गत भारतीय समाज में शुरुआत से ही समूह को व्यक्ति के ऊपर प्राथमिकता दी गयी है। इसी कारन से पुरातन भारतीय परिवार संयुक्त परिवार प्रथा का पालन करते थे।

यदि आधुनिक मूल्यों की बात करें तो इसकी झलक हमारे संविधान में दिखाई देती है।
भारतीय संविधान लोकतंत्र, धर्म निरपेक्षता तथा समाजवाद जैसे मूल्यों को लक्षित करता है।

लोकतंत्र अवसर की समानता पर बल देता है। इसके अंतर्गत शासन में जनता की भूमिका अनिवार्य होती है।

धर्मनिरपेक्षता से तात्पर्य दूसरे समुदायों के लोगो के रीति रिवाजो, मान्यताओं तथा व्यवहार के प्रति सहनशीलता का भाव रखना। इसके अंतर्गत उनके क्रियाकलापों में हस्तक्षेप न करना भी शामिल है।

समाजवाद का अर्थ उत्पादन के साधनो के विकेन्द्रीकरण को रोकना है। भौतिक संसाधनों के वितरण तथा विनिमय से सभी वर्गों का लाभ होना आवश्यक है।

मूल्यों की प्रकृति तथा विशेषताएं-

मूल्य समाज के व्यवहार के मानक होते है।
मूल्य आस्था और विश्वास की वास्तु है।
मूल्य सापेक्ष रूप से स्थायी होते है।
मूल्य समाज में आंतरिक मजबूती लाते है।
मूल्यों के निर्धारक तत्त्व समाज धर्म तथा संस्कृति होते है।
मूल्य संवेगो तथा भावनाओ से सम्बंधित होते है।
मूल्यों का लक्ष्य जनकल्याण करना है।
परिवार तथा समाज मूल्यों के केंद्र बिंदु है।
धार्मिक एवं संस्कृति क्रियाओ द्वारा मूल्यों का विकास होता है।
मूल्यों में व्यवस्थापक सोपानक्रम होता है।

मूल्य संघर्ष -

समकालीन भारतीय समाज का यह एक अनिवार्य कर्तव्य है की वह पारम्परिक तथा आधुनिक मूल्यों में तालमेल तथा सामंजस्य बिठाये।
पारम्परिक बहुवाद तथा आधुनिक धर्मनिरपेक्षता में सहनशीलता आधार\आधारभूत तत्त्व है लेकिन फिर भी दोनों में एक भेद है।  बहुबाद वर्ग विशेष को सुविधा प्रदान करता है जबकि पंथ निरपेक्षता उच्च वर्गों से यह अपेक्षा रखता  है की वे निम्न वर्गों के विकास को अवरुद्ध न करें।
हालाँकि सोपानक्रमता तथा धार्मिक पवित्रता जैसे मूल्य लोकतंत्र तथा व्यक्तिवाद जैसे आधुनिक मूल्यों से मेल नहीं खा सकते क्योकि वर्तमान समाज में सामाजिक प्रतिष्ठा व्यक्ति के योगदान पर आधारित है न ही जन्म आधारित।
अतः परम्परिक तथा आधुनिक मूल्यों में एकरूपता केवल बहुवाद तथा पंथ निरपेक्षता के मामले में ही संभव है।

मूल्यों के प्रकार तथा वर्गीकरण -

सोपानक्रम पर आधारित होने के कारण मूल्यों का वर्गीकरण किया जा सकता है -

नैतिक मूल्य- धर्म तथा समाज की विभिन्न स्थितियों से सम्बंधित मूल्य जिनमे सत्य बोलना, बड़ो का आदर करना, चोरी नहीं करना आदि शामिल है।

सामाजिक मूल्य - इनका प्रतिपादन राधाकमल मुखर्जी तथा जान डी बी द्वारा किया गया है। इनके अंतर्गत जैविक, आधयात्मिक, आंतरिक तथा बाह्य प्रकार के मूल्य शामिल है।

मनोवैज्ञानिक मूल्य- स्पेंसर द्वारा प्रतिपादित इन मूल्यों में सैद्वांतिक, आर्थिक,सौन्दर्यानुभूति,राजनैतिक आदि मूल्य शामिल है।

सार्वभौमिक अथवा मानवीय मूल्य - भारतीय दर्शन पर आधारित इन मूल्यों में सत्य, अहिंसा, शांति प्रेम तथा धर्म जैसे मूल्य शामिल है।


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