अल्पकालीन वित्त के स्रोत/short term sources of finance/RAS MAINS PAPER 1
अलग-अलग व्यापारियों द्वारा विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक वित्त की पूर्ति हेतु अलग-अलग स्रोतों का प्रयोग किया जाता है। मुख्य रूप से व्यवसाय के लिए धन प्राप्त करने के दो स्रोत होते हैं-
आंतरिक स्रोत तथा बाह्य स्रोत
आंतरिक स्रोत-
जब व्यवसायी द्वारा अपनी स्वयं की पूंजी अथवा धन का प्रयोग व्यवसाय को प्रारंभ करने तथा विकास हेतु किया जाता है व प्राप्त होने वाले लाभ का कुछ हिस्सा व्यवसाय के लिए ही रखा जाता है, तो ऐसे स्रोत को आंतरिक स्रोत कहा जाता है।
हालांकि केवल आंतरिक स्त्रोत ही व्यवसाय के लिए पर्याप्त नहीं होते हैं। ऐसी परिस्थिति में कई बाह्य स्त्रोतों का भी प्रयोग किया जाता है।
बाह्य स्रोत-
जब कोई व्यवसाय अपने किसी मित्र या संबंधी, बैंक अथवा साहूकार, उत्पादक, विनिर्माता, पूंजी बाजार, ग्राहक, विदेशी वित्तीय संस्थाओं आदि से वित्त प्राप्त करता है तो ऐसी स्थिति में वह बाह्य स्रोत का प्रयोग करता है।
अल्पकालीन वित्त के स्रोत एवं विधियां-
अल्पकालीन वित्त के लिए अनेक स्रोत एवं विधियां है जिनका वर्णन निम्न प्रकार है-
व्यापारिक साख (trade credit)-
जब कभी व्यापार के दौरान बड़े वितरकों द्वारा छोटे व्यापारियों तथा उत्पादकों को कच्चा माल, तैयार माल तथा पुर्जे आदि उधार बिक्री के लिए प्रदान किए जाते हैं तो वह व्यापारिक साख का प्रयोग करते हैं।इसके अंतर्गत दिया जाने वाला माल 30 से 40 दिन के लिए उधार पर होता है। इसमेंं सहायता रोकड़ के रूप में ना होकर अग्रिम माल के रूप मेंं की जाती है। अल्पकालीन वित्त का यह सबसे प्रचलित स्रोत है।
बैंक साख (bank credit)-
व्यापारिक बैंकों द्वारा विभिन्न व्यापारिक संगठनों को अल्पकाल के लिए प्रदान की गई वित्तीय सहायता ही बैंक साख के रूप में जानी जाती है। यह व्यवसायी को आवश्यकतानुसार धन निकालने की सुविधा प्रदान करती है। बैंक साख का उपयोग निम्न तरीकों से होता है-
- ऋण एवं अग्रिम (loan and advances)- इसके अंतर्गत बैंक द्वारा व्यवसायी को एक निश्चित धनराशि एक निश्चित समयावधि में वापसी की शर्त पर प्रदान की जाती है। इसमें ली गई राशि पर ब्याज भी देय होता है। यह ऋण फर्म की संपत्तियों की जमानत पर दियाा जाता है।
- नगद साख (cash credit)-इस व्यवस्था में बैंक ऋण लेने वाले को एक निश्चित राशि को निकालने की स्वीकृति प्रदान करता है। यह सुविधा माल के स्टॉक वचन पत्रों सरकारी बांड आदि की जमानत पर दी जाती है। इसमें केवल निकाली गई राशि पर ही ब्याज देय होता है।
- बैंक अधिविकर्ष (bank overdraft)-यह सुविधा बैंकों द्वारा अपने ग्राहकों को उनके चालू खाते में दी जाती है। इसके अंतर्गत वह बैंक द्वारा निर्धारित एक निश्चित सीमा तक जमा राशि से अधिक राशि को निकाल सकते हैं। अधिक राशि पर उन्हें ब्याज का भुगतान भी करना होता है। इस पर लगने वाला ब्याज नगद साख की तुलना में कम होता है।
- बिलों को बट्टे पर भुनाना (discounting of bills)-बैंक विनिमय बिलों के माध्यम से भी धन राशि ग्राहकों को उपलब्ध करवाता है जिस पर वह एक निश्चित कटौती करता है। देनदार को समय अवधि पूरी होने पर इसका भुगतान करना होता है।
ग्राहकों से अग्रिम (customer's advances)-
ग्राहक द्वारा आदेशित माल अधिक मूल्यवान होने अथवा बड़ा ऑर्डर होने पर सप्लायर द्वारा कई बार अग्रिम राशि की मांग की जाती है। यह धन कुल बेचे गए उत्पाद का मूल्य का ही एक हिस्सा होता है जिसे बाद में अंतिम मूल्य में से कम कर दिया जाता है। वस्तु अन्यत्र कहीं उपलब्ध ना होने अथवा तत्काल आवश्यकता होने की दशा में व्यापारी इसका फायदा उठाते हैं।
किश्त उधार (installment loans)-
ऐसा उधार इस शर्त पर दिया जाता है कि ऋण प्राप्त करता द्वारा इसका भुगतान, निश्चित अवधि में किस्तों में कर दिया जाएगा। क्रेता द्वारा वस्तु को खरीदते समय केवल प्रारंभिक मूल्य जिसे डाउन पेमेंट कहा जाता है उसी का भुगतान किया जाता है। किश्तों का भुगतान ना करने पर विक्रेता द्वारा चुकाई गई किस्तों की राशि को जब्त कर के माल को भी पुन: ले लिया जाता है।
असंगठित क्षेत्रों से ऋण (loan from unorganised sector)-
कई बार आवश्यक ऋण की पूर्ति मित्रों संबंधियों तथा साहूकारों से की जाती है। ऐसे ऋण पर देय ब्याज की दर बहुत अधिक होती है, इसलिए व्यापारी इस प्रकार के ऋण से बचने की कोशिश करते हैं।
आढ़ती कार्य (factoring)-
इसके अंतर्गत व्यवसायी द्वारा अपने देनदारों के पास बकाया राशि के बदले बैंक से ऋण लिया जाता है। इसके फल स्वरुप देनदारों से ऋण पुनः प्राप्त करने का कार्य बैंक को स्थानांतरित हो जाता है। फर्म को इस कार्य के लिए एक निश्चित राशि का भुगतान बैंक को करना होता है।
अंतर्निगम जमा(internal deposit)-
एक कंपनी द्वारा किसी दूसरी कंपनी में कम समय अवधि के लिए की गई जमा अंतर्निगम जमा के रूप में जानी जाती है। यह वित्त का असुरक्षित प्रकार है जिस की व्यवस्था दलालों द्वारा की जाती है। इसके लिए किसी भी प्रकार की कानूनी औपचारिकताएं पूरी नहीं की जाती है।
यह मांग जमा, त्रिमासिक जमा तथा छमाही जमा के रूप में होती है। इन पर क्रमशः 10% 12% तथा 15% ब्याज देय होता है। ऐसा वित्त असंगठित बाजार का हिस्सा होता है।
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