प्रदेश के वृहद भौगोलिक क्षेत्रफल में अवस्थित बहुसंख्यक नदी नालों में उपलब्ध खनिज बजरी का उत्खनन किया जा कर विभिन्न निर्माण कार्यों में बजरी की निर्बाध रूप से आपूर्ति आदिकाल से हो रही थ।
2012 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दीपक कुमार बनाम हरियाणा राज्य व अन्य में पारित आदेश से नदियों में पर्यावरणीय अनुमति के अभाव में बजरी का खनन बंद हो गया।
राज्य सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की पालना में नदियों में बजरी के प्लॉट बनाकर नीलामी से आवंटन की कार्यवाही प्रारंभ की गई।
लंबे समय तक पर्यावरण अनुमति नहीं मिलने पर सर्वोच्च न्यायालय ने 2017 में वैज्ञानिक पुनर्भरण अध्ययन व पर्यावरण अनुमति के बिना बजे खनन पर उन्हें रोक लगा दी।
इसके पश्चात प्रदेश में बजरी के अवैध खनन का प्रारंभ हुआ जो वर्तमान में भी चल रहा है।
बजरी खनन का एक दीर्घकालीन विकल्प माना जा सकता है।
वर्तमान में प्रदेश में 20 एम सैंड इकाइयां मुख्य रूप से जयपुर दोसा जोधपुर में भरतपुर जिले में स्थापित होकर कार्यरत है जिनमें प्रतिदिन लगभग 20000 टन एम सैंड का उत्पादन किया जा रहा है।
नीति का उद्देश्य
1. प्रदेश के आमजन को विभिन्न निर्माण कार्यों हेतु बजरी का सस्ता एवं सुगम विकल्प उपलब्ध कराया जाना।
2. राज्य के विभिन्न खनन क्षेत्रों में उपलब्ध ओवरबर्डन का उपयोग करते हुए खनिज संसाधनों का दक्षतापूर्वक उपयोग कर खनन क्षेत्रों का पर्यावरण संरक्षित करना।
3. एम-सेण्ड के उपयोग के कारण नदियों से बजरी की आपूर्ति पर निर्भरता में कमी एवं पारिस्थितिकीय तंत्र में सुधार।
4. प्रदेश में खनिज आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना।
एम सैंड की परिभाषा-
किसी भी खनिज अथवा ओवरबर्डन की क्रशिंग से निर्मित की गई सेंड जो निर्धारित मानक कोड के अनुरूप हो उसे एम सेड की परिभाषा में रखा जाता है।
एम सैंड नीति के प्रमुख बिंदु निम्न प्रकार हैं-
एम सैंड इकाई स्थापित करने वाली इकाइयों को उद्योग का दर्जा दिया जाएगा।
इन्हें राजस्थान निवेश प्रोत्साहन योजना 2019 के पात्र होने पर समस्त परीलाभ देय होंगे।
एमसेंड की गुणवत्ता निर्धारित मानक कोड आईएस कोड 383:2016 के अनुरूप होना अनिवार्य है।
राज्य के सरकारी अर्द्ध सरकारी स्थानीय निकाय पंचायती राज संस्थाएं एवं राज्य सरकार से वित्त पोषित अन्य संगठनों द्वारा करवाए जाने वाले निर्माण कार्य में खनिज बजरी की मात्रा का न्यूनतम 25% एम सैंड के रूप में उपयोग करना आवश्यक होगा।
इस नीति की प्रत्येक 6 माह में समीक्षा की जाएगी
नई एम-सेण्ड इकाई स्थापित करने हेतु आवेदक को पात्रता की निम्न शर्तें पूर्ण करनी आवश्यक होगी-
(1) न्यूनतम तीन करोड़ रुपये की नेटवर्थ तथा तीन करोड़ रुपये का टर्नओवर।
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