लोक प्रशासन में नैतिकता एवं मूल्य की अवधारणा/ethics in public administration and values
लोक प्रशासन में नीति की मुख्य भूमिका होती है।
नीतिशास्त्र को लोक प्रशासन का एक अभिन्न अंग माना जा सकता है।
प्रशासन में नीतिशास्त्र की आवश्यकता को रामायण महाभारत, गीता, बौद्ध एवं जैन साहित्य, अर्थशास्त्र, क़ुरल, मनुस्मृति आदि में व्यापक रूप से वर्णित किया गया है।
चीनी दर्शनिको में लाओत्से, मेनशियस तथा कनफ़्यूसियस ने भी इस बात पर काफ़ी चर्चा की है।
पाश्चात्य दर्शन में अरस्तू ने न्यायप्रियता, उदारता पर, काँट ने कर्तव्य की अवधारणा पर तथा बेन्थम ने उपयोगितावाद पर बल दिया है।
राल्स के न्याय सिद्धांत में दो सिद्धांतो का प्रमुखता से वर्णन किया गया है जिसमें पहला सिद्धांत प्रत्येक व्यक्ति को अन्य व्यक्ति के अधिकारो के आदर के साथ आज़ादी का व्यापक व आधारभूत अधिकार प्रदान करता है तथा दूसरा सिद्धांत सामाजिक तथा आर्थिक स्थितियों को सबके लिए लाभप्रद तथा खुले होने की बात करता है।
लोक प्रशासन के वर्तमान स्वरूप में समता न्याय मानवतावाद जेंडर समानता तथा संवेदना को प्राथमिकता के तौर पर स्थान दिया गया है।
जान केनेड़ी ने अपने राष्ट्रपति कार्यकाल(1961-1963) में घोषित किया था कि
“ नैतिक आचार विचार के उच्चतर मूल्यों के संपोषण की ज़िम्मेदारी से अधिक सरकार की कोई भी अन्य ज़िम्मेदारी मौलिक व महत्वपूर्ण नहीं है।”
वेबर ने कहा था कि “ अपने व्यक्तिगत हितो के लिए संगठनिक सम्पत्ति का दुरपयोग मत करो “
क़ुरल में तिरुवल्लुवर ने धन को ऐसा साधन बताया जो प्रसिद्धि सम्मान व दूसरों की सेवा का अवसर प्रदान करता है लेकिन उन्होंने लिखा की धन कमाने का ज़रिया या साधन शुद्ध एवं न्यायसंगत होना चाहिए।
प्रशासको के लिए आवश्यक मूल्य -
प्रशासनिक कार्यों के लिए आवश्यक मूल्यों की एक लम्बी सूची है। इनमे न्याय निष्पक्षता तथा वस्तुनिष्ठता जैसे मुद्दे सर्वोच्च स्तर पर रखे जा सकते है।
वुड़्रो विल्सन ने अपने प्रारम्भिक भाषण में न्याय को सहानुभूति से भी अधिक ऊँचा स्थान देकर इसे मूल्य पदसोपान में सबसे ऊपरी स्तर पर स्थापित करने का प्रयास किया है।
निस्पक्षता तथा वस्तुनिष्ठता को प्रशासनिक न्याय के ही अभिन्न अँगो के रूप में स्वीकार किया गया है।
आइए हम लोक प्रशासन में नीति के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को संक्षेप में रेखांकित करने का प्रयास करते है।
सत्यनिष्ठा (Integrity)-
सामान्य शब्दों में इसका तात्पर्य आंतरिक सुसंगति से है।
प्रशासक को अपने कार्यों के प्रति ईमानदार रहते हुए अपने पद का दुरपयोग स्वयं तथा किसी अन्य व्यक्ति के अनुचित हितो के लिए नहीं करना चाहिए।
ऐसे व्यक्ति का आचरण लगभग हर स्थिति में उसके नैतिक सिद्धांतो के अनुरूप होना चाहिए तथा उसके सिद्धांत वस्तुनिष्ठता के आधार पर नैतिक होने चाहिए।
काँट ने लिखा है की - मनुष्य को नियम का उल्लंघन करने का हक़ तभी है जब वह यह कह सके की जिस परिस्थिति में वह है उसमें नियम के उल्लंघन को भी एक नियम माना जा सकता है।
बौद्धिक पाखंड - स्वयं तथा अन्य लोगों के लिए अलग अलग मानदंडो का निर्माण करना।
वैधानिकता एवं तर्क संगतता (Legality and Rationality)-
निर्धारित नीति एवं नियमो का पालन करना ।
नितियो तथा निर्णयों को विविध वर्गों के अंतर्गत रखना ।
समानुभूति ( Empathy)-
समझने के अर्थ में समानुभूति से तात्पर्य किसी व्यक्ति में उपस्थित वह क्षमता है जो उसे किसी अन्य व्यक्ति की मनो स्थिति को समझने तथा महसूस करने की योग्यता प्रदान करती है।
समानुभूति के लिए आवश्यक है की दूसरों की भावनाओं को समझने के साथ साथ महसूस भी किया जाये।
समानुभूति को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-
संज्ञानात्मक ( congnitive )-
- परिप्रेक्ष्य ग्रहण (perspective taking)
- कल्पना (Fantasy)
भावात्मक (Emotive)-
- समानुभूतिक चिंता
- समानुभूतिक तनाव
समानुभूति एवं सहानुभूति (Empathy and sympaty )
समानुभूति सहानुभूति का अगला स्तर है।
समानुभूति में स्व तथा पर का अंतर समाप्त हो जाता है जबकि सहानुभूति में यह बना रहता है।
शेष अगले भाग में.....
Nice
ReplyDeleteI want description on one question, plz help प्रशासन में पिछड़े वर्गो के उत्थान में समानुभूति किस प्रकार समस्या के समाधान का रास्ता तय करेगी
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