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Friday, January 4, 2019

लोक प्रशासन में नैतिकता एवं मूल्य की अवधारणा भाग 2/ethics in public administration and values part 2

लोक प्रशासन में नैतिकता एवं मूल्य की अवधारणा भाग 2/ethics in public administration and values part 2



उत्तरदायित्व एवं जवाबदेही (Responsibility and Accounteblity )

प्रशासक के लिए यह आवश्यक है की जो कार्य तथा ज़िम्मेदारियाँ उसे दी जाती है उन्हें पूरा करना उसका उत्तरदायित्व है। इसके अतिरिक्त उसके द्वारा किए गए कार्यों व निर्णयों की जवाबदेही भी उसी की है।

उपयोगितावाद का सिद्धांत -

बेंथम के उपयोगितावाद के सिद्धांत के अंतर्गत अधिकतम व्यक्तियों के लिए अधिकतम सुख की कल्पना की जाती है। यह बात प्रशासकों को नीति निर्माण के समय ध्यान रखनी होती है।

करुणा अथवा संवेदना (compassion)-

करुणा से तात्पर्य व्यक्ति की उस भावना से है जो उसके मन में कमजोर व्यक्ति तथा प्राणियों के प्रति उत्पन्न होती है। यह भावना उन लोगों की स्थिति को समझने तथा उनके प्रति सहानुभूति चिंता रखने के फलस्वरूप उत्पन्न होती है।
किसी भी व्यक्ति द्वारा किए गए परोपकार के पीछे मूल भाव करुणा का ही होता है।
लोक कल्याणकारी समाज में लोक सेवकों में करुणा का भाव होना आवश्यक है क्योंकि उनका मूल उद्देश्य समाज के निम्नतम वर्ग का विकास व उत्थान करना होता है।

दया एवं करुणा में अंतर-

दया किसी विशिष्ट व्यक्ति के प्रति उसके दुख को देखकर होती है जबकि करुणा सामान्य स्थिति है जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए होती है।
दया एक तरह की तात्कालिक मानसिक अवस्था होती है जबकि करुणा तुलनात्मक रूप से स्थाई भाव होता है।
दया का भाव जिस व्यक्ति पर आता है वह स्वयं स्थिति से उबरने में समर्थ नहीं होता है जबकि करुणा किसी भी व्यक्ति पर हो सकती है चाहे वह सक्षम हो या नहीं।

करुणा की थकान (compression fatigue)-

यदि परिस्थिति विशेष में किसी व्यक्ति की करुणा लंबे समय तक सक्रिय रहती है तो धीरे-धीरे उसकी सक्रियता में कमी आने लगती है जिसे करुणा की थकान कहा जाता है।

निष्पक्षता-

निष्पक्षता का अर्थ होता है पक्षपात रहित होना।
निष्पक्षता न्याय की अवधारणा का एक मूलभूत तत्व है जिसमें लोग प्रशंसकों के लिए आवश्यक है कि किसी भी सरकारी कार्यक्रम को क्रियान्वित करते समय वह पक्षपात रहित व्यवहार करें।
लोक सेवकों का व्यवहार जाति धर्म संपत्ति लिंग भाषा प्रांत वंश मित्रता आदि के आधार पर भेदभाव पूर्ण नहीं होना चाहिए।
लोक सेवकों को अपने निर्णय संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध होकर ही करनी चाहिए तथा व्यक्तिगत हित के बजाय सार्वजनिक हित पर ध्यान देना चाहिए।
निष्पक्षता का व्यवहार लोगों में सरकार एवं लोक सेवाओं के प्रति विश्वास उत्पन्न करता है।

गैर पक्षधरता/राजनीतिक तटस्थता-

अपने पद पर रहते हुए किसी भी राजनीतिक दल से विशेष जुड़ाव न रखते हुए सभी को समान रूप से व्यवहार करना गैर तरफदारी या राजनीतिक तटस्थता के रूप में जाना जाता है।
लोक सेवाओं के अंतर्गत प्रमुख उद्देश्य जनकल्याण का होता है इसलिए किसी भी राजनीतिक दल को न तो बढ़ावा देना चाहिए और नहीं उनका विरोध करना चाहिए।
लोक सेवकों के लिए आवश्यक है कि वह पूरी इमानदारी से अपना कार्य करें तथा दलगत भावनाओं से ऊपर उठकर निर्णय लें।
हालांकि इसके लिए आवश्यक है कि सिविल सेवा को नकारात्मक राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाया जाए तथा लोक सेवकों की पदोन्नति संबंधित निर्णय योग्यता व कार्यकुशलता पर आधारित हो।

वस्तुनिष्ठता (objectivity)-

सामान्य अर्थ में वस्तुनिष्ठता से तात्पर्य लोक सेवकों के निर्णयों से हैं।
किसी भी व्यक्ति को कोई निर्णय करते समय उन सभी आधारों से मुक्त होना चाहिए जो उसकी व्यक्तिगत मान्यताओं से संबंधित हो अथवा उसकी चेतना में शामिल हो।
लोक सेवकों द्वारा लिए गए निर्णय व्यक्तिगत आधारों से मुक्त होकर तथ्यात्मक एवं तार्किक आधारों पर होने चाहिए जो की सर्वमान्य एवं संविधान पर आधारित है।
हालांकि 100% वस्तुनिष्ठता संभव नहीं है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति समाजीकरण की प्रक्रिया में जो मूल्य सीखता है वे उस के निर्णयों में अवश्य रूप से दृष्टिगोचर होते हैं।
वस्तुनिष्ठता को लोक सेवा में प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है कि लोक सेवकों के चयन के समय वस्तुनिष्ठता पर ध्यान दिया जाए बस समय समय पर उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जाए।
प्रतिनिधि नौकरशाही के माध्यम से भी वस्तुनिष्ठता के उद्देश्य को पूरा किया जा सकता है।

सेवा भावना (spirit of service)-

सेवा भावना व्यक्ति की मनो स्थिति से संबंधित होती है।
इसमें व्यक्ति कार्य को लाभ या स्वार्थ के आधार पर न करके नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए पूर्ण करता है।
इसमें व्यक्तिगत हित की बजाय सामाजिक हित को सर्वोपरि रखा जाता है।
नैतिक आधार पर लोगों की सेवा में ही आनंद की प्राप्ति करना सेवा भावना को दर्शाता है।

प्रतिबद्धता (commitment)-

प्रतिबद्धता मनुष्य का आंतरिक गुण होता है।
इसमें संज्ञानात्मक भावनात्मक एवं व्यवहारिक तीनों पक्ष शामिल होते हैं।
प्रतिबद्धता किसी व्यक्ति मूल्य अथवा विचारधारा के प्रति हो सकती है।
लोक सेवकों के लिए निम्न क्रम में प्रतिबद्धता आवश्यक होती है-
संविधान के प्रति निरपेक्ष प्रतिबद्ध
सामाजिक न्याय व कल्याणकारी उद्देश्य के प्रति
संसद के विधान व नीतियों के प्रति
आचरण संहिता तथा नीति संहिता के प्रति।

जैसा की प्रतिबद्धता के बारे में स्वामी विवेकानंद ने कहा है-

"अपने कर्तव्यों के प्रति लगन एवं प्रतिबद्धता सबसे बड़ी पूंजी है।"

सहिष्णुता (tolerance)-

सहिष्णुता से तात्पर्य हमारे विचारों से भिन्न व्यवहारों तथा मतों को भी सहन करने व समझने की योग्यता रखना होता है
सकारात्मक अर्थ में उन सभी विचारों, मतों या धर्मो आदि के अस्तित्व को भी स्वीकार करना तथा सम्मान करना जो आपके विचारों या धर्म से भिन्न हो।
नकारात्मक अर्थ में अपने विरोधियों को सहन करने की क्षमता सहिष्णुता के अंतर्गत आती है।
जीवन में आने वाली विवाद पूर्ण समस्याओं का शांतिपूर्ण ढंग से समाधान करने के लिए सहिष्णुता की अवधारणा व्यक्ति में होना आवश्यक है।
सामाजिक समरसता एवं भाईचारे की भावना को बढ़ाने में भी यह सहयोग करती है।

पारदर्शिता (transparency)-

प्रशासको को नीति निर्माण एवं निर्णयों के समय पारदर्शिता का समावेश करना चाहिए।
प्रशासक के निर्णयों से प्रभावित होने वाले अथवा लाभान्वित होने वाले व्यक्तियों को सभी प्रकार की सूचनाएं सहज एवं सरल रूप से प्राप्त होनी चाहिए ताकि वह नीतिगत आधारों को जान सके।

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