प्रशासन एवं प्रबंध भाग 13/administration and management part 13/concept of authority and legitimacy - RAS Junction <meta content='ilazzfxt8goq8uc02gir0if1mr6nv6' name='facebook-domain-verification'/>

RAS Junction

We Believe in Excellence

RAS Junction Online Platform- Join Now

RAS Junction Online Platform- Join Now
Attend live class and All Rajasthan Mock test on our new online portal. Visit- https://online.rasjunction.com

Saturday, December 15, 2018

प्रशासन एवं प्रबंध भाग 13/administration and management part 13/concept of authority and legitimacy

प्रशासन एवं प्रबंध भाग 13/administration and management part 13/concept of authority and legitimacy

सत्ता (authority)-

आधुनिक लोकतंत्र में शक्ति से अधिक सत्ता की अवधारणा ज्यादा महत्वपूर्ण है।
लोकतंत्र में शक्ति या भय द्वारा शासन नहीं किया जा सकता अपितु यह आवश्यक है कि इसे वैधानिक स्वरूप प्राप्त हो।
शक्ति का यह वैधानिक स्वरूप ही सत्ता के रूप में जाना जाता है।
सत्ता किसी व्यक्ति संस्था नियम या आदेश का ऐसा गुण है जिसके कारण उसे सही मानकर स्वेच्छा से उसके निर्देशों का पालन किया जाता है।
उदाहरण स्वरुप यदि हम किसी दबंग के आदेशों का पालन करते हैं तो वह शक्ति का उपयोग होता है लेकिन जब हम ट्रैफिक नियमों का पालन करते हैं तो यह सत्ता का प्रतीक होता है।
इस प्रकार से शक्ति के साथ जब वैधता जुड़ जाती है तो इसे सत्ता के नाम से जाना जाता है।

अर्थ एवं परिभाषा-

वेबर द्वारा सत्ता के लिए हैरशाफ्ट शब्द का प्रयोग किया गया है। इसका अर्थ है कि वह परिस्थिति जिसमें हेयर या स्वामी अन्य लोगों पर प्रभुत्व जमाता है या हुक्म चलाता है।

हेनरी फेयोल के अनुसार सत्ता आदेश देने का अधिकार है और आदेश का पालन करवाने की शक्ति है।

वायर्सटेड ने इसे परिभाषित करते हुए कहा है कि सत्ता शक्ति के प्रयोग का संस्थात्मक अधिकार है।

सत्ता के प्रमुख तत्व-

शासक अथवा स्वामियों का समूह
व्यक्ति या समूह  जिस पर शासन किया जाना है ।
शासित लोगों के आचरण को प्रभावित करने की शासक की इच्छा जो उसके आदेशों में व्यक्त होती है।
शासित द्वारा प्रदर्शित आज्ञा पालन

सत्ता पालन के आधार

विश्वास- सत्ता का पालन तभी संभव है जब अधीनस्थो में सत्ताधारी के प्रति विश्वास हो यह विश्वास जितना गहरा होता है सत्ताधारी के आदेशों की पालना उतनी सरलता से हो सकती है।

एकरूपता- सत्ता पालन के लिए आवश्यक है कि विचारों और आदर्शों में एकरूपता हो तभी लोग आज्ञा का पालन करने के लिए तैयार होते हैं। इसीलिए अधिकतर लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं उदारवाद तथा समाजवाद जैसे विचारधाराओं का सहारा लेती हैं।

लोकहित- सत्ता लोक हित के लिए होनी चाहिए अर्थात सत्ता में आदेशों का प्रमुख उद्देश्य जनता के हित को बढ़ावा देने वाले होने चाहिए। ऐसा होने पर ही लोग इनका पालन करते हैं। जैसे कि कर जमा करवाना यातायात नियमों की पालना करना आदि।

दबाव- सत्ता पालन के लिए कई बार दबाओ तथा शक्ति का प्रयोग भी करना पड़ता है क्योंकि समाज में कुछ समूह ऐसे होते हैं जो प्रभावशाली वर्ग से होते हैं तथा उन्हें समझाने के लिए दमन व दबाव का ही प्रयोग करना पड़ता है।

सत्ता के रूप या प्रकार-

मैक्स वेबर ने वैधता के आधार पर सत्ता के तीन रूप बताए हैं-
पारंपरिक सत्ता
करिश्मा या चमत्कारिक सत्ता
तर्क विधिक या कानूनी सत्ता

पारंपरिक सत्ता-

वैधता की यह प्रणाली पारंपरिक कार्य से निरूपित होती है।
यह व्यावहारिक कानून एवं प्राचीन परंपराओं की मान्यता पर आधारित होती है।
पारंपरिक सत्ता के अंतर्गत शासक पीढ़ी दर पीढ़ी मिली प्रस्थिति के कारण व्यक्तिगत सत्ता का उपभोग करते हैं।
इस प्रकार की सत्ता में तर्क एवं बुद्धि संगतता का भाव रहता है।
प्राचीन भारत में जाति आधारित सत्ता एवं घरों में वृद्धजनों की सत्ता परंपरागत सत्ता का उदाहरण है।
वर्तमान समय में परंपरागत सत्ता क्षीण हुई है क्योंकि राजतंत्रो का समापन हो गया है।

करिश्माई अथवा चमत्कारिक सत्ता-

करिश्माई सत्ता किसी व्यक्ति के प्रति असाधारण आस्था एवं उस व्यक्ति द्वारा बताई गई जीवन शैली पर आधारित होती है।
यह सत्ता किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत गुणों और चमत्कारी प्रभाव पर आधारित होती है।
इस प्रकार की सत्ता में लोग भावनात्मक रूप से ऐसे व्यक्ति से जुड़े होते हैं। यह सत्ता किसी परंपरागत विश्वास या लिखित नियम पर आधारित नहीं होती है।
महात्मा गांधी अटल बिहारी वाजपेई पंडित नेहरू नरेंद्र मोदी आदि ऐसे ही करिश्माई सत्ता धारण करने वाले व्यक्तित्व हैं।
ऐसे व्यक्तित्व के भाषण तथा प्रवचन से लोग काफी प्रभावित होते हैं।
जब ऐसे किसी व्यक्तित्व की मृत्यु होती है तब उसके विचारों का प्रसार के लिए किसी संगठन का निर्माण किया जाता है जिसे करिश्माई सत्ता का सामान्यीकरण कहा जाता है। इसमें व्यक्ति के बजाय वह पद सत्ता का केंद्र बन जाता है।

तर्क विधिक सत्ता-

इस प्रकार की सत्ता का आधार कोई व्यक्तित्व ना होकर उससे जुड़ा पद होता है।
कानून द्वारा मान्यता प्राप्त व्यक्ति उस पद को प्राप्त करता है व सत्ता का प्रयोग करता है।
विभिन्न सरकारी पदों से जुड़ी सत्ता इसी का उदाहरण है।
ऐसे पदों पर अधिकतर नियुक्ति योग्यता अथवा चुनाव के आधार पर की जाती है। यह सत्ता देश के कानून के अनुरूप होती है अतः यह वैधानिक भी होती है। वर्तमान नौकरशाही तर्क विधिक सत्ता का ही उदाहरण मानी जा सकती है।

सत्ता की सीमाएं-

किसी भी पद या व्यक्ति को दी गई सत्ता उस समाज पर आधारित होती है जिस पर वह शासन करता है। ऐसे में यह आवश्यक है कि सत्ता का मनमाना प्रयोग न किया जाए।
सत्ता को देश के संवैधानिक कानूनों तथा वहां की संस्कृति मूल्यों परंपराओं व नैतिक अवधारणाओं आदि के सापेक्ष रहकर ही कार्य करना होता है। 
तभी जाकर सत्ता वास्तविक शक्ति प्राप्त करती है।

वैधता (legitimacy)-

शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के लेजिटीमश से हुई है जिसका अर्थ होता है  वैधानिक।
प्लेटो अरस्तु तथा मनु कौटिल्य जैसे दार्शनिक चिंतन कौन है इस बारे में काफी कुछ वर्णन किया है।
मध्यकाल में भी राजा के देवीय उत्पत्ति के सिद्धांत द्वारा वैधता प्रदान की गई।

अर्थ रूप में देखा जाए तो वैधता उस कारण की ओर इशारा करती है जिसकी वजह से हम सत्ता को स्वीकार करते हैं। इस कारण की वजह से ही लोग उस सत्ता को सहमति प्रदान करते हैं।

वैधता शक्ति और सत्ता के बीच की कड़ी है।
बाहरी रूप से लोगों के नियंत्रण के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है लेकिन वैधता के द्वारा लोगों के मन पर राज किया जा सकता है।
वैधता को लोकतंत्र का प्रधान लक्षण माना जाता है।
मतदान, जनमत, संचार के साधन तथा राष्ट्रवाद आदि के साधन है जिनसे वैधता को प्राप्त किया जा सकता है।
बदलते परिपेक्ष में जिन राजतंत्रो ने लोकतंत्रिक तत्वों के अनुरूप स्वयं को ढाल लिया उनकी वैधता बनी रही लेकिन साम्यवादी व्यवस्था जैसी विचारधारा ने इसे स्वीकार नहीं किया, जिससे आज उन्हें कोई वैधता प्रदान नहीं है।

उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि शक्ति सत्ता एवं वैधता की अवधारणाएं एक दूसरे के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ी है।
समाज में व्यवस्था कायम करने तथा शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए वैधता और शक्ति एक दूसरे के पूरक की भूमिका निभाती है।

कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न-

शक्ति के कोई दो रूप लिखिए।
वैधता प्राप्ति के दो साधन बताइए।
सत्ता पालन के कोई दो आधार बताइए।
शक्ति तथा प्रभाव में दो अंतर बताइए।
वर्ग प्रभुत्व सिद्धांत के दो वर्ग कौन से हैं।
शक्ति के आयामों के नाम लिखिए।

विचारधारात्मक शक्ति का क्या तात्पर्य है।
लोक हितकारी सत्ता को समझाइए।
मैक्स वेबर ने सत्ता के कितने रूप बताए हैं लिखिए।
शक्ति के संदर्भ में नारीवादी सिद्धांत क्या है।


करिश्माई सत्ता के सामान्यीकरण से क्या तात्पर्य है।

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.

RAS Mains Paper 1

Pages