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Tuesday, December 11, 2018

प्रशासन एवं प्रबंध भाग सात/ administration and management part 7/Concept of Span of Control

प्रशासन एवं प्रबंध भाग सात/ administration and management part 7/Concept of Span of Control


नियंत्रण का क्षेत्र ( span of control) -

सोपानक्रम की अवधारणा के अंतर्गत संगठन में विभिन्न स्तरों का निर्माण होता है।
ऐसे में कई बार यह प्रश्न उठता है की वरिष्ठ अधिकारी द्वारा निचले स्तर के कितने कर्मचारियों के कार्यों का कुशलतापूर्वक निरीक्षण किया जा सकता है।
मनोविज्ञान के अंतर्गत इसे ध्यान के क्षेत्र नाम से जाना जाता है।
नियंत्रण क्षेत्र अवधारणा किसी एक अधिकारी की देख रेख में अधिनस्थो की संख्या को निर्धारित करने में अपनी भूमिका निभाती है।

Span- अंगूठे तथा कनिष्ठ अंगुली के बीच की दूरी
control - नियंत्रण 
नियंत्रण के क्षेत्र से तात्पर्य उन अधीनस्थ कर्मचारियों से है जिन पर एक अधिकारी सफलतापूर्वक नियंत्रण रख सकता है ।
डिमाक के अनुसार - किसी अधिकारी और उसके मुख्य अधिनस्थो के बीच सीधे तथा नियमित संचार सम्पर्क को नियंत्रण का क्षेत्र कहते है।
इसी पर आधारित मनोविज्ञान के क्षेत्र की एक संकल्पना को ध्यान का क्षेत्र कहा जाता है जो वी ए ग्रेकुनास द्वारा प्रतिपादित की गयी है। इस संकल्पना के अनुसार कोई भी व्यक्ति एक साथ एक अधिकतम संख्या से अधिक लोगों या वस्तुओं पर एक साथ ध्यान नहीं दे सकता है।
शारीरिक तथा मानसिक दृष्टि से प्रत्येक मनुष्य की क्षमता की सीमा होती है।इस सीमा को अलग अलग मनोवैज्ञानियो ने चार से लेकर बारह तक बताया है।
अलग अलग देशों में इसकी सीमा अलग अलग निर्धारित की गयी है।
अधिकतर विद्वानो का यह मानना है की क्षेत्र जितना छोटा होता है नियंत्रण उतना ही अधिक कारगर होता है हालाँकि इसके विरोधियों के अनुसार ऐसा होने पर समादेशो की जकड़न की समस्या हो जाती है।

नियंत्रण के क्षेत्र का महत्व -

संगठन के स्तरो के निर्धारण में नियंत्रण के क्षेत्र की अवधारणा काफ़ी भूमिका निभाती है।स्तरों का निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है की किसी एक अधिकारी के निचले स्तर पर कितने कर्मचारी है जिनका उसे निरीक्षण करना है या वो कर सकता है।
इससे यह साबित होता है की सोपानक्रम तथा नियंत्रण के क्षेत्र में निकट का सम्बंध है।
यदि किसी स्तर पर अधिक क्षमता में कर्मचारियों की ज़िम्मेदारी सौंपी जाएगी तो उससे कार्य में देरी तथा अकुशलता जैसी समस्याए हो जाती है।
संगठन के कार्य की गुणवत्ता उसके कारगर नियंत्रण तथा निरीक्षण पर निर्भर करता है जो कि उचित संख्या में निर्धारण से ही प्रभावशाली हो सकता है।

नियंत्रण के क्षेत्र व सोपानक्रम के बीच सम्बंध -

किसी भी संगठन के स्तरों या सोपानक्रम का निर्धारण नियंत्रण के क्षेत्र को ध्यान में रखकर ही किया जाता है।
उदाहरण के लिए - 
राजस्थान पुलिस में ३०००० जवान है तथा एक अधिकारी अधिकतम ५ कर्मियों का निरीक्षण कर सकता है।

30000 जवान 
6000 उप पुलिस निरीक्षक ( प्रत्येक थाने पर)
1200 पुलिस निरीक्षक 
240 उप पुलिस अधीक्षक 
48 पुलिस आधिक्षक 
१० सहायक पुलिस महानिरीक्षक 
२ उप महानिरीक्षिक '
1 महानिरीक्षक 

अब यदि जवानो की संख्या को 20000 कर दिया जाए तो  उसी आधार पर सहायक महानिरीक्षक के एक स्तर को हटाना पड़ेगा।

यदि हम स्तरों की संख्या को बढ़ाते है तो नियंत्रण का क्षेत्र कम होता है तथा निरीक्षण ज़्यादा होता है जिससे ख़र्च बढ़ता है।
यदि स्तरों की संख्या को कम किया जाता है तो काम तेज़ी से होता है ख़र्च कम होते है तथा प्रत्येक स्तर के अधिकारो में वृद्धि होती है। कर्मचारियों का मनोबल बढ़ता है तथा समन्वय में आसानी रहती है।

नियंत्रण के क्षेत्र को प्रभावित करने वाले कारक -
नियंत्रण का क्षेत्र निम्न कारकों से प्रभावित माना जा सकता है-
कार्यकलाप - समान या भिन्न 
समय - पुरातन या नवीन 
स्थान - समान या अलग अलग 
पर्यवेक्षक तथा अधीनस्थ का व्यक्तित्व 
पर्यवेक्षण की तकनीक - मानकिकृत और सीधी 
सत्ता का प्रतिनियोजन 

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