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Thursday, December 13, 2018

प्रशासन एवं प्रबंध भाग 10/administration and management part 10/concept of delegation

प्रशासन एवं प्रबंध भाग 10/administration and management part 10/concept of delegation


प्रत्यायोजन का सिद्धांत-

वर्तमान समय में धीरे-धीरे संगठनों का आकार एवं संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
सामान्यतः छोटे संगठनों में सभी अधिकार एक ही व्यक्ति के पास होते हैं लेकिन बड़े संगठनों में यह संभव नहीं होता है।
बड़े संगठनों में औपचारिक रूप से तो अधिकार मुखिया के पास होते हैं लेकिन व्यावहारिक रूप में कार्य को सफल बनाने के लिए उन्हें अपने अधीनस्थों को अधिकार सौंपने पडते हैं।
इसे अधिकारों और दायित्वों का प्रत्यायोजन कहा जाता है।

अर्थ एवं परिभाषा-

सामान्य शब्दों में प्रत्यायोजन का अर्थ है किसी विशेष कार्य को पूरा कराने हेतु वरिष्ठ अधिकारी द्वारा अपने अधिकार अधिनस्थ को सौंप देना।
इसमें कानूनी रूप से तो अधिकार प्रत्यायोजक के पास में होते हैं लेकिन व्यावहारिक रूप से यह अधीनस्थ को सौंप दिए जाते हैं।

विक्सबर्ग के अनुसार
प्रत्यायोजन की प्रक्रिया में संगठन के कुछ कार्य अधीनस्थ को सौंपे जाते हैं और इन गतिविधियों तथा कर्तव्यों के सफल निर्देशन के लिए आवश्यक अधिकार एक या अधिक व्यक्तियों को सौंपा जाता है।

हालांकि प्रत्यायोजन हमेशा ऊपरी स्तर से नीचे की ओर नहीं होता है।
इसके संबंध में जार्ज टेरी ने लिखा है कि-
प्रत्यायोजन का अर्थ है संगठन की एक इकाई या अधिकारी द्वारा दूसरे को अधिकार सौंपना। इसमें अधिकार ऊपर से नीचे ही नहीं बल्कि नीचे से ऊपर या समान स्तर पर भी दिए जा सकते हैं।

प्रत्यायोजन की विशेषताएं-

इसमें किसी कर्मचारी को अधिकार सौंपे जाते हैं लेकिन उसे वरिष्ठ अधिकारी द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर काम करना होता है।
प्रयोजन का स्वरूप दोहरा होता है क्योंकि इसमें कानूनी में व्यावहारिक रूप से अधिकार अलग-अलग लोगों के हाथों में होते हैं।
प्रत्यायोजन को घटाया बढ़ाया या फिर वापस लिया जा सकता है।
प्रत्यायोजन को एक निश्चित सीमा तक ही किया जा सकता है।

प्रत्यायोजन की आवश्यकता

निम्न कारणों से प्रत्यायोजन को आवश्यक समझा जा सकता है-
कार्य की मात्रा
कार्य की जटिलता
नियोजन के लिए समय की बचत
प्रबंध की क्षमता का विकास
उत्तराधिकार में सहायता।
किफायत एवं कुशलता
संगठन में लचीलापन के लिए।
शैक्षिक महत्व।

प्रत्यायोजन के प्रकार-

अलग अलग आधारों पर प्रत्येक जन अलग अलग प्रकार का होता है। इसके कुछ प्रमुख प्रकार निम्न हैं-

स्थाई और अस्थाई प्रत्यायोजन-
स्थाई  प्रत्यायोजन के अंतर्गत अधिकार हमेशा के लिए सौंप दिए जाते हैं। अलंकी असाधारण परिस्थितियों में इन्हें वापस भी लिया जा सकता है।
अस्थाई प्रत्यायोजन के अंतर्गत अधिकार थोड़े समय के लिए ही सोपे जाते हैं तथा काम पूरा होने के बाद वापस ले लिए जाते हैं। किसी की अनुपस्थिति में ऐसा किया जाता है।

पूर्ण एवं आंशिक प्रत्यायोजन-

पूर्ण प्रत्यायोजन में जिस व्यक्ति को अधिकार सौपे गए हैं उसे निर्णय तथा कार्यवाही का पूरा अधिकार होता है जबकि आंशिक प्रयोजन में फैसला लेने से पहले उसे प्रत्यायोजन करने वाले अधिकारी की मंजूरी लेनी पड़ती है।

सशर्त और बिना शर्त प्रत्यायोजन-

सशर्त प्रत्यायोजन में कुछ शर्तें जुड़ी होती है जो कि अधिकार प्राप्त करने वाले व्यक्ति पर पाबंदी लगाती है। लेकिन यदि अधिकार ग्रहण करने वाला व्यक्ति बेरोकटोक कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र होता है तो इसे बिना शर्त प्रत्यायोजन कहते हैं

यदि प्रत्यायोजन लिखित नियमों तथा आदेशों के अनुसार किया जाता है तो यह औपचारिक होता है और यदि आपसी सद्भाव व रीति-रिवाजों के अंतर्गत किया जाता है तो अनौपचारिक होता है।

इसी तरह प्रत्यक्ष प्रत्यायोजन में कोई भी मध्यस्थ नहीं होता है जबकि अप्रत्यक्ष प्रत्यायोजन में तीसरा व्यक्ति या पक्ष शामिल होता है।

प्रत्यायोजन के सिद्धांत-

प्रत्यायोजन स्पष्ट रूप से होना चाहिए
प्रत्यायोजन लिखित रूप में किया जाना चाहिए ताकि जिस व्यक्ति को अधिकार सौपे गए हैं उसे प्रत्येक अधिकार की स्पष्ट जानकारी हो।
प्रत्यायोजन के अंतर्गत अधिकार तथा दायित्व में समानता और तालमेल होना चाहिए।
संपर्क की सुचारु व्यवस्था होनी चाहिए जिससे अधीनस्थ को मार्गदर्शन मिलता रहे।
प्रत्यायोजन समाप्त होने के बाद अधिनस्थ के कार्य की समीक्षा की जानी चाहिए।
प्रत्यायोजन समादेश की एकता के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए।

प्रत्यायोजन में अड़चनें/दिक्कतें

प्रत्यय आयोजन में आने वाली दिक्कतों या अड़चनों को दो भागों में बांटा जा सकता है-

संगठनात्मक तथा व्यक्तिगत

संगठनात्मक अडचन-
निश्चित तरीकों व प्रक्रियाओं का अभाव
संगठन का आकार और स्थिति
अस्थिर और अनावर्ती कार्य
समन्वय और संपर्क का अभाव

व्यक्तिगत अड़चन-
जे एम पिफनर के अनुसार-

वरिष्ठ व्यक्तियों में अहंकार की भावना अधिक होती है
उन्हें अधीनस्थों की क्षमता पर शंका रहती है।
कई बार राजनीतिक कारणों से प्रत्यायोजन मुश्किल हो जाता है।
प्रत्यायोजन के इच्छुक व्यक्ति यह भी नहीं जानते कि प्रत्यायोजन कैसे करें।
प्रत्यायोजन के लिए भावनात्मक परिपक्वता आवश्यक होती है जो कि कई वरिष्ठों में देखने को नहीं मिलती।
कई बार अधिनस्थ द्वारा प्रत्यायोजन को स्वीकार नहीं किया जाता।

प्रत्यायोजन की सीमाएं-

वैसे तो प्रत्यायोजन प्रत्येक संगठन के लिए अनिवार्य होता है लेकिन फिर भी कई बार कुछ विशेष कारणों से प्रत्यायोजन नहीं किया जा सकता।  एमपी शर्मा के अनुसार निम्नलिखित अधिकारों का प्रत्यायोजन संभव नहीं है-

अधीनस्थो के कार्यों का निरीक्षण
वित्तीय निरीक्षण
एक सीमा से अधिक खर्च की स्वीकृति के अधिकार।
नियम बनाने के अधिकार
उच्च स्तर की नियुक्तियों के अधिकार
अपीलों की सुनवाई पर अधिकार

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