प्रतिरक्षा एवं रक्त समूह भाग 2/Immune and blood group part 2/ RAS mains paper 2 - RAS Junction <meta content='ilazzfxt8goq8uc02gir0if1mr6nv6' name='facebook-domain-verification'/>

RAS Junction

We Believe in Excellence

RAS Junction Online Platform- Join Now

RAS Junction Online Platform- Join Now
Attend live class and All Rajasthan Mock test on our new online portal. Visit- https://online.rasjunction.com

Friday, November 23, 2018

प्रतिरक्षा एवं रक्त समूह भाग 2/Immune and blood group part 2/ RAS mains paper 2

प्रतिरक्षा एवं रक्त समूह भाग 2/Immune and blood group part 2/ RAS mains paper 2

प्रतिजन एवं प्रतिरक्षी(antigen and antibody) -

प्रतिजन
प्रतिजन शरीर में बाहर से प्रविष्ट होने रोगाणुु होते हैं।
शरीर में प्रविष्ट होने के बाद ये शरीर में उपस्थित बी लसिका कोशिकाओं को प्लाजमा कोशिका में परिवर्तित कर देते है।
यह प्लाज्मा कोशिका प्रतिरक्षी का उत्पादन करती है जो उस विशेष प्रतिजन से प्रतिक्रिया करके उसे नष्ट कर देता है।
प्रतिजन का भार 6000 डाल्टन या उससे अधिक होता है।
रासायनिक संरचना की दृष्टि से यह की प्रकार के होते हैं जैसे- प्रोटीन, न्युक्लिक अम्ल, लिपिड आदि।
शरीर में पहले से उपस्थित विषाणु संक्रमित तथा कैंसर की कोशिकाएं भी प्रतिजन की भांति ही कार्य करती है।
शरीर में प्रवेश करने के बाद प्रतिजन द्वारा प्रतिरक्षी निर्माण की प्रक्रिया को सक्रिय किया जाता है।
प्रतिरक्षी निर्माण के पश्चात प्रतिजन इसी के साथ संयोजित होकर प्रतिक्रिया करते है।

सम्पूर्ण प्रतिजन की जगह इसका केवल कुछ हिस्सा ही प्रतिरक्षी से क्रिया करता है जिसे एण्टीजनी निर्धारक कहा जाता है।
एण्टीजन में छः से आठ एमीनो अम्ल की एक श्रृंखला एण्टीजनी निर्धारक के रूप में कार्य करती है।
निर्धारकों की संख्या को एण्टीजन की संयोजकता कहा जाता है जो कई जीवाणुओं में 100 तक हो सकती है।

प्रतिजन को नष्ट करने की क्रियाविधि चार चरणों में सम्पन्न होती है -

बाहरी एण्टीजन की पहचान
संयोजकता के आधार पर B लसीका कोशिका द्वारा प्लाजमा कोशिका का निर्माण
विशिष्ट प्रतीरक्षी का निर्माण
कोशिका माध्यित प्रकिया द्वारा एन्टीजन का विनाश ।

प्रतिरक्षी (antibodies)-

इन्हें इम्यूनोग्लोबिन (Ig) की कहा जाता है।
इनका निर्माण प्लाजमा कोशिकाओ द्वारा किया जाता है।
इनका प्रमुख कार्य प्रतिजन को पहचान कर उनसे क्रिया करना है।
प्रतिरक्षी का जो भाग प्रतिजन के साथ क्रिया करता है उसे पैराटोप कहा जाता है।

प्रतिरक्षी की संरचना -

प्रतिरक्षी का आकार अंग्रेजी के Y अक्षर की तरह होता है।
इसमें दो भारी (H) तथा दो हल्की (L) पालिपेप्टाइड श्रृंखला होती है।
एक एक भारी व हल्की श्रृंखला आपस में मिलकर HL डाइमर या द्विलक का निर्माण करती है।
दोनों अर्द्धांश आपस में डाइसल्फाइड बंध द्वारा जुडे होते है।
भारी श्रृंखला में 440 जबकि हल्की श्रृंखला में 220 अमीनो अम्ल होते है।
प्रत्येक अर्द्धान्श स्थिर तथा अस्थिर दो भागों में विभाजित होता है।
अस्थिर भाग-  प्रतिजन से प्रतिक्रिया करता है जिसे Fab भी कहा जाता है।
स्थिर भाग- यह COOH भाग की तरफ होता है जिसे Fभी कहा जाता है।
प्रतिरक्षी के Y स्वरूप में दोनों भुजाओं के उद्गम स्थल लचीले होते है जिन्हें हिन्ज अथवा कब्जा कहा जाता है।

प्रतिरक्षी के प्रकार -

भारी पाली पेप्टाइड श्रृंखला के आधार पर प्रतिरक्षी पांच प्रकार के होते है -

अल्फा, गामा, डेल्टा , एप्सीलोन तथा म्यू।
IA , IG, ID, IE तथा I

इनमें सें IA द्वविलक IM पंचलक तथा शेष प्रतिरक्षी एकलक प्रकार के होते है।
IA मां  दूध में पाया जाने वाला एकमात्र प्रतिरक्षी है। यह नवजात को प्रतिरक्षा प्रदान करता है।
IE एलर्जी पर प्रतिक्रिया करता है।
IM का निर्माण प्रतिजन से होनेे वाली प्रतिक्रिया के फलस्वरुप सबसे पहले होता है।
इसके बाद   IG का निर्माण होता है। इसे शरीर की सबसे प्रमुख संवहनीय प्रतिरक्षा माना जाता है जिसकी सीरम में सर्वाधिक सांद्रता पाई जाती है।

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.

RAS Mains Paper 1

Pages