मानव रक्त एवं परिसंचरण तंत्र भाग तीन/Human Blood and Circulatory System Part 3 - RAS Junction <meta content='ilazzfxt8goq8uc02gir0if1mr6nv6' name='facebook-domain-verification'/>

RAS Junction

We Believe in Excellence

RAS Junction Online Platform- Join Now

RAS Junction Online Platform- Join Now
Attend live class and All Rajasthan Mock test on our new online portal. Visit- https://online.rasjunction.com

Monday, November 5, 2018

मानव रक्त एवं परिसंचरण तंत्र भाग तीन/Human Blood and Circulatory System Part 3

मानव रक्त एवं परिसंचरण तंत्र भाग तीन/Human Blood and Circulatory System Part 3


मानव परिसंचरण तंत्र-

खोजकर्ता - विलियम हार्वे
मानव परिसंचरण तंत्र के दो भाग होते है -
रक्त परिसंचरण तंत्र (बंद तंत्र)
लसीका परिसंचरण तंत्र (खुला तंत्र)

रक्त परिसंचरण तंत्र-
मानवों में यह तंत्र हृदय, रक्त वाहिकाओं तथा रक्त से मिलकर बना होता है।
रक्त एक माध्यम की भांति कार्य करता है जिस पर हम चर्चा कर चुके है।

हृदय (heart)-

मानव हृदय पेशीय उतकों से निर्मित होता है।
यह लाल रंग का खोखला, मांसल एवं मुठ्ठी के आकार का होता है।
शरीर में यह बायीं ओर पसलियों के नीचे, फेफड़ो के बीच स्थित होता है।
 हृदय चारों ओर से एक थैलीनुमा दोहरी झिल्ली के आवरण से घिरा होता है जिसे हृदयावरण या पेरिकार्डियम कहा जाता है।
इस आवरण में एक द्रव भरा होता है जो कि बाहरी आघातों से सुरक्षा प्रदान करता है।

 मनुष्य के हृदय में चार कक्ष (chambers) पाये जाते है -
छोटे आकार के दो ऊपरी कक्ष दाया व बायां आलिन्द (Atrium) कहलाते है।
निचले दो हिस्से जो कि अपेक्षाकृत बडे होते है इन्हें दाया व बायां निलय (ventricle) कहते है ।
हृदय को लम्बवत् विभाजित करने पर दाये व बायें दोनों हिस्सों में एक एक आलिन्द व निलय होता है।

दोनों आलिंद के बीच की दीवार पतली जबकि निलय के बीच की दीवार मोटी होती है।
बायी ओर के आलिन्द तथा निलय के बीच द्विवलक वाल्व होता है जबकि दायी ओर के अलिन्द व निलय के बीच त्रिवलक कपाट होता है।
ये कपाट रुधिर को विपरीत दिशा में जाने से रोकते है।

हृदय की क्रिया विधि-

आलिंद व निलय लयबद्ध रूप संकुचन तथा शिथिलन की । क्रिया में संलग्न रहते है।
सम्पूर्ण शरीर से गन्दा रक्त महाशिरा के माध्यम से दायें आलिन्द में एकत्रित होता है। इसके पश्चात त्रिवलक कपाट से रक्त दायें निलय में एकत्र होता है।
दायें निलय से अशुद्ध रक्त फुफ्फुस धमनी के माध्यम से फेफड़ों तक पहुँच जाता है जहाँ कार्बन डाइ आक्साइड त्याग कर रक्त द्वारा आक्सीजन ग्रहण की जाती है।
यह आक्सीजन युक्त रक्त फुफफुस शिरा के माध्यम से बायें आलिन्द में पहुँचता है। जहां से द्विवलक कपाट के माध्यम से रक्त बाएं निलय में पहुंचता है।
बाएं निलय से निकलने वाली महाधमनी से शुद्ध रक्त पूरे शरीर में पहुंचता है।
यह चक्र निरन्तर चलता रहता है जिसे हृदय चक्र कहा जाता है।
इस प्रक्रिया में रक्त दो बार हृदय से प्रवाहित होता है इसलिए इसे द्विसंचरण तंत्र कहा जाता है।

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.

RAS Mains Paper 1

Pages