- उद्दीपकों के बीच समय सम्बन्ध
- अनुबंधित उद्दीपको के प्रकार
- अनुबंधित उद्दीपको की तीव्रता
- यदि दोनों उद्दीपको को एक ही समय पर साथ साथ प्रस्तुत किया जाता है तो इसे सहकालिक अनुबंधन(simultaneous conditioning) कहा जाता है।
- यदि अनुबंधित उद्दीपक का प्रारम्भ तथा अंत दोनों ही अननुबन्धित उद्दीपक से ठीक पहले हो तो इसे विलम्बित अनुबंधन (delayed conditioning) कहा जाता है।
- यदि विलम्बित अनुबंधन में दोनों उद्दीपको के बीच कुछ समय अंतराल रखा जाये तो उसे अवशेष अनुबंधन (trace conditioning) कहा जाता है।
- यदि अननुबन्धित उद्दीपक का प्रारम्भ अनुबंधित उद्दीपक से पहले हो जाये तो उसे पश्चगामी अनुबंधन (backward conditioning) कहा जाता है।
अधिगम की अवधारणा भाग 3/ concept of learning part 3/Ras mains paper 3rd
प्राचीन अनुबंधन के निर्धारक -
इसके अंतर्गत अनुक्रिया में लगने वाला समय विभिन्न कारको पर निर्भर करता है। कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित है -
उद्दीपको के बीच समय सम्बन्ध -
अनुबंधित तथा अननुबन्धित उद्दीपको के बीच समय अंतराल के आधार पर अनुबंधन को चार प्रकारो में विभाजित किया गया है -
उदाहरण से स्पष्ट है कि विलम्बित अनुबंधन में अनुबंधित प्रतिक्रिया सबसे जल्दी जबकि पश्चगामी अनुबंधन में सबसे देर से प्राप्त होने की संभावना होती है।
अननुबंधित उद्दीपको के प्रकार -
प्राचीन अनुबंधन के अंतर्गत अननुबन्धित उद्दीपक दो प्रकार के होते है -
प्रवृत्यात्मक (appetitive)- ये उद्दीपक स्वतः अनुक्रिया उत्पन्न करते है तथा संतोष तथा प्रसन्नता प्रदान करते है। उदाहरण- खाना पीना दुलारना आदि।
विमुखी (aversive)- ये उद्दीपक दुखदायी एवं क्षतिदायक होते है तथा विषय इनसे दूर भागता है। जैसे विद्युत आघात, कष्टदायक सुई, पीटना आदि।
विमुखी उद्दीपक से परिणाम प्रवृत्यात्मक उद्दीपक की तुलना में जल्दी प्राप्त होते है।
अनुबंधित उद्दीपको की तीव्रता -
अनुबंधित उद्दीपक की तीव्रता जितनी अधिक होती है उतनी ही जल्दी अननुबंधित अनुक्रिया की प्राप्ति होती है।
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