स्व एवं व्यक्तित्व की अवधारणा भाग ग्यारह/self concept and personality part 11/ RAS MAINS PAPER 3
विधिक कर्तव्य की अवधारणा (Legal concept of Duties) -
कर्तव्य एक बाध्यकारी कार्य की तरह होता है।
प्रत्येक अधिकार के साथ एक कर्तव्य संलग्न होता है। यह किसी अधिकार प्राप्त व्यक्ति के लाभ में कुछ करने या किसी कार्य के निषेध से सम्बन्धित है।
सामण्ड के अनुसार -
यह एक ऐसा कार्य है जो किसी व्यक्ति के लिए बाध्यकारी होता है तथा जिसका पालन नहीं करना अपकार की श्रेणी में माना जाता है।
कीटोन के अनुसार -
कर्तव्य एक ऐसा कार्य है जो किसी की व्यक्ति पर राज्य द्वारा बल पूर्वक लागू किया जाता है तथा जिसकी अवमानना अपराध मानी जाती है।
हीबर्ट के अनुसार-
कर्तव्य किसी भी व्यक्ति की किसी कार्य को करने की वह बाध्यता है जिसका नियंत्रण किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा राज्य की सहायता से किया जाता है।
कर्तव्य विधिक अथवा अविधिक हो सकते है।
यदि कोई व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए नैतिक रुप से बाध्य हैं तो उसे उसका नैतिक कर्तव्य का जाता है।
इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए कानूनी रुप से राज्य द्वारा बाध्य है तो उसे उसका विधिक कर्तव्य कहा जाता है।
अधिकार तथा कर्त्तव्य में संबंध (relation between right and duty)-
सभी विधिवेत्ता इस बात से पूर्ण रूपेण सहमत हैं कि प्रत्येक अधिकार के साथ अनन्य रुप से एक कर्तव्य स्थित होता है।
लेकिन इसकी विपरीत अर्थात प्रत्येक कर्तव्य के साथ क्या कोई अधिकार सदैव होता है, यह सही नहीं है।
कल बार ऐसे निरपेक्ष कर्त्तव्य भी पाए जाते हैं जो पूर्णतया स्वतंत्र होते हैं।
स्वयं के प्रति ईश्वर के प्रति अथवा पशु के प्रति जो कर्तव्य होते हैं उन्हें निरपेक्ष कर्तव्य कहा जाता है। ऐसे कर्तव्य के उल्लंघन पर कोई दंड नहीं होता है।
PDF is irrelevant. Kindly provide relevant pdf sir.
ReplyDelete