प्रबंध प्रक्रिया एवं कार्य भाग चार/Management process and functions part 4/Ras mains paper 1
सहायक कार्य (Subsidiary works)-
प्रबन्ध के पूर्व वर्णित प्रमुख कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए प्रबन्धकों को कुछ अन्य कार्यो की सहायता लेनी पड़ती है जिन्हें प्रबंध के सहायक कार्य कहा जाता है।
नियुक्तिकरण(staffing)-
प्रबन्धकों को अपने संगठन के लिए मानवीय तथा भौतिक संसाधनो का प्रबन्ध करना होता है। इनमें से मानवीय संसाधनों का चयन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है क्योंकि भौतिक संसाधनों का समुचित व सर्वोत्तम प्रयोग इन्हीं पर निर्भर करता है।
इस प्रकार संगठन के लिए योग्य एवं उचित कार्मिकों का चयन करना ही नियुक्ति करण कहलाता है। इसमें किसी कार्मिक की भर्ती से लेकर सेवानिवृति तक की सभी क्रियाएं शामिल होती है। यह प्रबन्ध में निरन्तर चलने वाल एक सहायक कार्य है।
निर्णयन (decision making)-
इसका तात्पर्य किसी भी मामले में निर्णय लेने से है।
किसी भी कार्य को करने के लिए उपलब्ध तरीकों में से श्रेष्ठ का चयन करना ही निर्णयन के अन्तर्गत आता है।
परिभाषा के रूप में -
किसी वांछित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उपलब्ध विकल्पो में से सर्वोत्तम का चयन करन ही निर्णयन कहलाता है।
यह एक प्रकार की मानसिक प्रकिया एवं नियोजन का ही एक हिस्सा है।
निर्णयन की प्रक्रिया प्रबन्ध के प्रत्येक कार्य में अर्न्तव्याप्त रहती है।
हर्बट साइमन ने निर्णयन के तीन चरण बताए है जिसमें बौद्धिक , प्रारूपण एवं चयन गतिविधियां शामिल है।
पीटर ड्रकर ने निर्णयन प्रक्रिया को पांच चरणों में विभाजित किया है जिसमें समस्या का पता लगाना, विश्लेषण करना , समाधान के सम्भावित विकल्प तलाशना, सर्वोत्तम विकल्प का चयन करना एवं निर्णय का क्रियान्वन शामिल है।
नव प्रर्वतन या नवाचार (Innovation)-
वर्तमान सूचना प्रोद्यौगिकी के युग में चीजें तेजी से बदल रही है। आज बाजार में उपलब्ध प्रत्येक वस्तु का तेजी से विकास हो रहा है तथा नित नये बदलावों के साथ उन्नत उत्पाद बाजार में प्रवेश करते है। इस प्रकार का निरन्तर विकास अथवा सुधार ही नवाचार के नाम से जाना जाता है।
बदलते हुए माहौल में प्रतिस्पर्द्धात्मक बने रहने के लिए निरन्तर शोध एवं सुधार आवश्यक है जो कि प्रबन्धक की ही जिम्मेदारी होती है।
कच्चे माल के स्रोत , नए एवं प्रभावशाली तरीके, अवसरो की तलाश , प्रतिभावान कार्मिको को संगठन से जोडना आदि कार्य नवाचार के अन्तर्गत ही सम्मिलित होते है।
इसलिए नवाचार भी प्रबन्ध के एक प्रमुख सहायक कार्य के रूप में विकसित हो रहा है।
सम्प्रेषण ( Communication)
किसी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक भावनाओं, सूचनाओं एवं तथ्यों का आदान प्रदान अथवा प्रेषण ही सम्प्रेषण के अन्तर्गत आता है।
इसके अन्तर्गत संगठन के विभिन्न स्तरों के बीच सूचनाओं, आदेश, निर्देश, संदेश आदि का आदान प्रदान होता है। सही व उचित सम्प्रेषण से ही विभिन्न संसाधनों के बीच तालमेल रखना सम्भव हो पाता है तथा निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति होती है।
संगठन में सुचारू संप्रेषण की व्यवस्था करना भी प्रबन्ध का ही कार्य है।
प्रतिनिधित्व (Represenation) -
प्रबन्धक संगठन के प्रतिनिधि के रूप में भी कार्य करते हैं।
जैसे जैसे संगठन का दायरा बढ़ता है वैसे ही बाहरी सम्बन्धों में भी वृद्धि होती है। संगठन से सम्बन्ध रखने वाले सभी घटकों से बातचीत करना, अच्छे सम्बन्ध बनाना, कार्यक्रमो में हिस्सा लेना आदि क्रिया विधि में संगठन का प्रतिनिधित्व भी एक प्रबन्ध का ही कार्य है।
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