स्व एवं व्यक्तित्व की अवधारणा
स्व संप्रत्यय (self concept)-
किसी भी व्यक्ति द्वारा स्वयं के बारे में, तथा स्वयं की योग्यताओं क्षमताओं आदि के बारे में जो भी धारणा अथवा विचार विकसित किए जाते हैं उसे स्व संप्रत्यय के नाम से जाना जाता है।
बालक जैसे जैसे बढ़ा होने लगता है, वह स्वयं के बारे में समझ विकसित कर लेता है।
व्यक्ति के स्व संप्रत्यय के अंतर्गत दो पक्ष सम्मिलित होते हैं-
- व्यक्तिगत पहचान - इस पहचान के अंतर्गत व्यक्ति का नाम, उसकी विशेष क्षमताएं तथा विशेषताएं सम्मिलित की जाती है। यह सभी व्यक्ति को दूसरों से अलग पहचान दिलाती है।
- सामाजिक एवं सांस्कृतिक पहचान- यह पहचान व्यक्ति के विभिन्न सामाजिक समूहों से संबंध को दर्शाती है। इसमें व्यक्ति का धर्म, निवास क्षेत्र, स्थानीय समूह आदि को सम्मिलित किया जाता है।
जैसे जैसे व्यक्ति समाज के साथ अनुक्रिया करता है, धीरे-धीरे उसके स्व संप्रत्यय का विकास होता हैं। यह सकारात्मक अथवा नकारात्मक दोनों प्रकार का हो सकता है।
स्व सम्मान तथा स्व नियमन इसके दो पक्ष होते हैं।
स्व सम्मान (self esteem )
व्यक्ति स्वयं की क्षमताओं तथा योग्यताओं के संबंध में जो निर्णय लेता है वें स्व सम्मान के अंतर्गत आते हैं। प्रत्येक व्यक्ति में यह अलग-अलग स्तर पर होता है।
बालको में स्व सम्मान सामान्यतः निन्नलिखित चार क्षेत्रों में निर्मित होता है-
शैक्षिक, सामाजिक शारीरिक व खेलकूद।
इनमें से जिस किसी क्षेत्र में बालक का स्व सम्मान उच्च स्तर पर होता है वह उस क्षेत्र में बढ़िया प्रदर्शन करता है।
यदि बालक का स्व सम्मान इन सभी क्षेत्रों में निम्न स्तर पर होता है तब वह बालक तनाव में या चिंता से ग्रस्त रहता है। ऐसे बालक कई बार अवसाद के शिकार होकर नशा भी करने लगते हैं या फिर समाज विरोधी गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं।
इन परिस्थितियों से बचने के लिए शैक्षणिक संस्थाओं में नैतिक शिक्षण पर आधारित शिक्षा पर जोड़ दिया जाता है ताकि बालकों में स्व सम्मान का उच्च स्तर विकसित किया जा सके।
स्व नियमन (self regulation)-
स्व नियमन से तात्पर्य व्यक्ति द्वारा विपरीत परिस्थितियों में अपने व्यवहार पर नियंत्रण से हैं।
विद्यार्थी द्वारा लक्ष्य प्राप्ति हेतु मनोरंजक गतिविधियों से दूर रहना, स्वास्थय सही रखने के लिए जंक फूड पर नियंत्रण करना आदि स्व नियमन के ही उदाहरण है।
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