प्रबंध क्षेत्र तथा अवधारणा भाग पांच/ management area and concept Part 5/RAS Mains Paper 1
प्रबंध पेशे के रूप में (management in the form of profession)
वर्तमान समय में प्रबंध को एक पेशे के रूप में देखते हुए पेशेवर शास्त्र के अंतर्गत माना जा रहा है।
पेशे से तात्पर्य-
" ऐसे व्यवसाय से हैं जिसके लिए विशिष्ट ज्ञान एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है तथा इससे प्राप्त दक्षता का प्रयोग समाज हित में किया जाता है व इसकी सफलता केवल मुद्रा अर्जन में नहीं मापी जाती है।"
अर्थात इसमें ज्ञान प्राप्ति के उपरांत दूसरों से धन लेकर सेवाएं प्रदान करनी होती है।
मैकफरलैण्ड ने पेशे की पांच प्रमुख विशेषताएं बताई है-
ज्ञान की विद्यमानता।
औपचारिक रूप में ज्ञान की प्राप्ति।
प्रतिनिधि संस्था
नैतिक आचार संहिता
सेवा की प्रवृत्ति
निम्न बिंदुओं के आधार पर प्रबंधन को पेशा माना जा सकता है-
- प्रबंध ज्ञान की विशिष्ट शाखा के रुप में स्थापित हो चुका है।
- ज्ञान प्राप्ति की औपचारिक व्यवस्था के अंतर्गत प्रबंध संस्थानों द्वारा उपाधियां दी जाती है।
- विभिन्न देशों में प्रबंध हेतु प्रतिनिधि संस्थाए मौजूद है जैसे कि भारत में ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन।
- प्रबंध में आचार संहिता की व्यवस्था भी है।
- प्रबंध में सेवा की प्रवृत्ति भी विद्यमान है हालांकि यह समाज विशेष की नैतिक व्यवस्था पर निर्भर करता है।
हालांकि निम्नलिखित आधार पर प्रबंध को पेशा नहीं माना जा सकता है-
- प्रबंधकों के लिए उपाधियां लेने की कोई अनिवार्यता नहीं है।
- प्रबंध में विभिन्न प्रतिनिधि संस्थानों की सदस्यता लेना भी अनिवार्य नहीं है।
- कई प्रबंधक आचार संहिता से परिचित भी नहीं होते हैं।
उपरोक्त बिंदुओं से स्पष्ट होता है कि कुछ के आधार पर प्रबंध को पेशा माना जा सकता है जबकि कुछ तथ्यों के आधार पर नहीं।
इसीलिए रीस द्वारा प्रबंध को भावी पेशे की श्रेणी में रखा गया है।
पेशेवर प्रबंध (professional management)-
प्रमुख प्रबंध शास्त्री एल सी गुप्ता का कथन है कि-
" पेशेवर प्रबंध केवल पेशेवर उपाधि धारकों की नियुक्ति से नहीं होता है बल्कि उचित दृष्टिकोण की भी आवश्यकता होती है। पेशेवर उपाधि से अधिक महत्व पेशेवर दृष्टिकोण का है।"
प्रबंध को पेशे की श्रेणी मैं रखने से अधिक महत्वपूर्ण प्रबंध का पेशेवर होना है।
एक पेशेवर प्रबन्ध की निम्नलिखित विशेषताएं होती है -
- प्रबन्ध की आधुनिक तकनीकों का प्रयोग ।
- पेशेवर ज्ञान के प्रति समर्पण।
- व्यक्तिगत निर्णयों के स्थान पर टीम भावना को महत्व देना।
- परिवर्तन का सामना करने के लिए तैयार रहना।
- संगठन के सभी पक्षों के हितों की पूर्ति करते हुए निर्णय लेना।
- समाज के लिए उत्तरदायित्व की भावना रखना एवं राष्ट्र की नीतियों का सम्मान करना।
समय के साथ हो रहे विकास के विभिन्न चरणों में व्यक्तिगत नेतृत्व का स्थान अब सामूहिक नेतृत्व (लोकतंत्र) ने ले लिया है। इससे कार्य स्तर में सुधार हुआ है तथा पेशेवर लोगों की संख्या एवं आवश्यकता में वृद्धि हुई है।
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