प्रबंध क्षेत्र तथा अवधारणा भाग तीन/ management area and concept Part 3/RAS Mains Paper 1
प्रबंध का महत्व-
चाहे कोई सा भी संगठित कार्य हो, राजनीतिक, आर्थिक सामाजिक तथा न्यायिक, प्रबंध प्रारंभ से ही इन में विद्यमान रहा है।
उर्विक ने प्रबंध का महत्व बताते हुए लिखा है कि-
" कोई भी सिद्धांत, वाद अथवा राजनीतिक कल्पना सीमित मानवीय एवं भौतिक संसाधनों के उपयोग से कम प्रयत्न द्वारा अधिक उत्पादन संभव नहीं बना सकते। यह केवल प्रभावी प्रबंध से ही संभव है। "
वर्तमान समय में प्रबंध का महत्व निम्नलिखित दो कारणों से और भी अधिक बढ़ गया है जो निम्न प्रकार है-
- वर्तमान संगठन के स्वरूपों में विस्तार के कारण व्यापार निष्पादन संबंधी जटिलताएं।
- व्यापार के वैश्वीकरण के फलस्वरुप प्रतिस्पर्धा में बढ़ावा।
निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से प्रबंध के बढ़ते महत्व को आसानी से समझा जा सकता है-
- बढ़ती प्रतिस्पर्धा का सामना करना- विभिन्न व्यवसाइयों में प्रतिस्पर्धा का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसी परिस्थितियों में प्रबंध के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने व्यवसाय को पर्याप्त रूप से प्रतिस्पर्धी बनाएं। प्रतिस्पर्धा के माहौल में अपने उत्पादों को गुणवत्तापूर्ण तथा कम कीमत युक्त बनाए रखना आवश्यक होता है जो केवल प्रबंध से ही संभव है।
- संसाधनों का विकास एवं समुचित उपयोग- किसी देश के पास केवल संसाधन होने मात्र से ही वह विकास नहीं कर सकता है। इसके लिए यह आवश्यक हैैै कि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध संसाधनों का भी विकास किया जाए। इसके साथ ही संसाधनों की सीमितता को देखते हुए पर्याप्त व समुचित दोहन करना भी आवश्यक है। प्रबंध द्वारा मैं केवल यह सुनिश्चित कियााा जाता है कि किस संसाधन का प्रयोग किस स्थान पर सबसे बेहतरीन व समुचित प्रकार से हो सकता हैै।
- नवप्रवर्तन तथा इसके बढ़ते उपयोग - संस्था को प्रतिस्पर्धा में बने रहने तथा समुचित विकास हेतु नवप्रवर्तन वर्तमान समय की सबसे बड़ी मांग है। नवप्रवर्तन से तात्पर्य उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार तथा कार्यप्रणाली में आवश्यक तत्वों के समावेश से है। विपणन तथा वितरण के नए तरीके ढूंढना, वस्तु के गुणों में परिवर्तन करके नए उत्पाद का निर्माण आदि नवप्रवर्तन के ही उदाहरण है। नवप्रवर्तन का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टि प्रदान करना है। यह संस्था के प्रबंध द्वारा किया जाने वाला कार्य ही है। जिस संस्थान का प्रबंधन नवप्रवर्तन पर जितना अधिक ध्यान देता है वह संस्थान उतना ही अधिक प्रगतिशील होता है।
- देश का आर्थिक विकास- माइकल पोर्टर के अनुसार किसी भी देश में स्थित उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मक योग्यता चार कारणों पर निर्भर करती है- संसाधनों की उपस्थिति, वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग, संबंधित व सहायक उद्योगो की स्थिति तथाा संगठनों के बीच प्रतिस्पर्धा का माहौल।
उपरोक्त में से भारत में संसाधन तथा वस्तुओं की मांग प्रचुर मात्रा में है, लेकिन सहायक उद्योगों तथा प्रतिस्पर्धा का अधिक विकास नहीं हुआ है। देश के आर्थिक विकास के लिए प्रबंध द्वारा सहायक संगठनों को प्रभावी बनाना व प्रतिस्पर्धा का माहौल तैयार करना दोनों शामिल है।
- अस्तित्व, संरक्षण तथा वृद्धि की अवधारणा- किसी भी संगठन के तीन प्रमुख उद्देश्य होते हैं, जिसमें अस्तित्व, संरक्षण तथा वृद्धि सम्मिलित है। प्रबंध संस्थान में उपलब्ध कच्चे माल, ईंधन तथा परिवर्तित उत्पादों व सेवाओं के बीच सामंजस्य स्थापित करके अस्तित्व तथा वृद्धि को बढ़ावा देता हैं। इसके अभाव में कई संगठन अपनी शुरुआत में ही दम तोड़ देते हैं। यह तीनोंं उद्देश्य आपस में एक दूसरेेे पर निर्भर करते हैं।
- विभिन्न रूचि समूहों में समन्वय- प्रत्येक संगठन में अलग-अलग स्तर पर विभिन्न रूचि समूह पाए जाते हैं जिनमें स्वामी, उपभोक्ता, कर्मचारी, आपूर्तिकर्ता, निवेशक आदि सम्मिलित होते हैं। यह सभी समूह संगठन से अपनी अपनी अपेक्षाएं रखते हैं। ऐसे में संगठन के प्रबंध का यह दायित्व होता है कि वह इन सभी समूहों में समन्वय की स्थापना करें।
- समाज में स्थिरता- नवप्रवर्तन तथा नवाचारों की वजह से होने वाले बदलाव के दौरान यह आवश्यक है कि समाज स्थिरता को प्राप्त करें। जब किसी नई तकनीक का विकास होता है तो उसमें निरंतरता की आवश्यकता होती है। समाज ऐसे नवाचारों को धीरे-धीरे ही ग्रहण करता है। यदि यह परिवर्तन तीव्र गति से हो तो समाज का विघटन होने की संभावना बनी होती है। प्रबंध का यह दायित्व होता है कि वह परिवर्तनों को निरंतरता प्रदान कर समाज को विघटन से बचाएं।
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