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Monday, August 6, 2018

सामाजिक प्रतिमान एवं मूल्य भाग एक/social paradigm and values part 1/Ras mains paper 2

सामाजिक प्रतिमान एवं मूल्य भाग 1/social paradigm and values/Ras mains paper 1

प्रतिमान तथा मूल्य समाज के बहुत ही आवश्यक अंग है।
यह हमारे समाज के आधार स्तंभ माने जाते हैं जिन पर पूरा समाज टिका होता है।

शिक्षक के कक्षा में प्रवेश करने पर खड़ा होना, शराब पीने को बुरी आदत मानना, सच बोलना, बड़ों का आदर करना आदि ऐसी अनेक बातें हैं जो कि प्रतिमान तथा मूल्य के अंतर्गत आती है।

सामाजिक प्रतिमान-

किसी भी व्यक्ति के सामान्य आचरण के सही एवं उपयुक्त प्रतिरूप को प्रतिमान कहा जा सकता है। समाज के मूल्यों के साथ सामंजस्य बिठाने के लिए इन्हें विशेष रूप से तैयार किया जाता है।

प्रतिमानों को एक तरह से मूल्यों का प्रतिबिंब माना जा सकता है।

उदाहरणस्वरूप यदि छात्र शिक्षक के कक्षा में प्रवेश करने पर खड़े होते हैं तो इसे हम शिक्षक के प्रति आदर भाव के प्रतिबिंब के रूप में देख सकते हैं।

सरल शब्दों में प्रतिमान हमारे व्यवहार को नियंत्रित करने वाले मानक होते हैं जिसकी अपेक्षा हमसे विभिन्न परिस्थितियों में की जाती है।

प्रतिमान मानवीय समूहों से की जाने वाली अपेक्षा है-हमें बड़ों का आदर करना चाहिए।

प्रतिमान व्यक्तिगत या सामाजिक दो प्रकार के होते हैं।
व्यक्तिगत प्रतिमान किसी व्यक्ति विशेष से जुड़े होते हैं उदाहरणस्वरूप यदि कोई व्यक्ति शराब न पीने का संकल्प लेता है तो उसका व्यक्तिगत प्रतिमान है।

सामाजिक प्रतिमान विनियम है जो कि पूरे समाज के सदस्यों पर लागू होते हैं और जिन्हें करने की उन से अपेक्षा की जाती है। 

उदाहरण- बालकों को घर से निकलने से पूर्व अभिभावकों की अनुमति लेनी चाहिए।

सामाजिक प्रतिमानों के लिए समाज से अनुमति लेना आवश्यक होती है। यह अनुमति सकारात्मक या नकारात्मक प्रकार की हो सकती है।

सकारात्मक अनुमति जहां पुरस्कार स्वरूप मिलती है वही नकारात्मक अनुमति दंड स्वरूप दी जाती है।

अनुमति औपचारिक या अनौपचारिक हो सकती है।

औपचारिक अनुमति किसी एजेंसी या निश्चित ढांचे वाली संस्था में होती है। स्वीकृति के तौर पर पदक प्रदान करना, डिग्री या डिप्लोमा देना आदि जबकि नकारात्मक स्वीकृति के तौर पर जुर्माना लगाना आदि शामिल है।

अनौपचारिक स्वीकृति या अनुमति जीवन के कई क्षेत्रों में होती है जिसमें किसी उपलब्धि पर लोगों द्वारा प्रशंसा किया जाना आदि शामिल है। इसमें पीठ थपथपाना, भरा बुरा कहना आदि शामिल है।

प्रतिमानों का महत्व-

समाज द्वारा निर्धारित विभिन्न प्रतिमान हमारे व्यवहार का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वह हमारे जीवन को नियंत्रित करते हैं। प्रतिमान हमें विभिन्न अवसरों पर निर्णय देने में समर्थ बनाते हैं तथा मदद करते हैं।

प्रतिमानों के प्रकार-

प्रतिमान निर्धारणात्मक तथा निषेधात्मक प्रकार के हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर हमें सच बोलना चाहिए तथा झूठ नहीं बोलना चाहिए।

प्रतिमान सामुदायिक या संस्थात्मक रूप में हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर हाथ मिलाने का रिवाज सभी समाज में है जो कि सामुदायिक है जबकि तिलक लगाने का रिवाज केवल हिंदू समाज में है।


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