धन के अधिकतमकरण की अवधारणा
कोई भी व्यवसाय हमेशा लाभ को अधिकतम तथा नुकसान को कम करने का उद्देश्य अपने साथ लेकर चलता है।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए व्यवसाय को वित्तीय प्रबंधन की आवश्यकता होती है। यह वित्तीय प्रबंधन का कार्य दो तरीकों से पूरा किया जा सकता है-
लाभ के अधिकतमकरण द्वारा
पारंपरिक व्यवसायों में लाभ को अधिकतम करने पर जोर दिया जाता था। हालांकि लाभ अधिकतमकरण को ही एकमात्र उद्देश्य बनाया जाए तो जोखिम की मात्रा भी अधिक होती है।
यह धन अधिकतमकरण की तुलना में एक छोटी अवधि पर निर्भर करती है।
इस अवधारणा के अंतर्गत लाभ बढ़ाने वाले कार्यों को प्रमुखता दी जाती है।
यह एक पारंपरिक तथा संकीर्ण दृष्टिकोण है।
लाभ अधिकतमकरण के नकारात्मक पहलुओं में कर्मचारियों तथा उपभोक्ताओं का शोषण शामिल है।
इसके अतिरिक्त व्यापार के विभिन्न वर्गों में असमानता भी पैदा करता है।
यह अनैतिक व्यापार को भी बढ़ावा देने में सहायता करता है।
धन के अधिकतमकरण द्वारा
यह अवधारणा एक आधुनिक दृष्टिकोण है जो नवाचार तथा सुधारों को स्वयं में सम्मिलित करती है। इस अवधारणा के अंतर्गत व्यवसाय का उद्देश्य अपनी संपत्ति तथा उसके मूल्य को बढ़ावा देना होता है।
यह अवधारणा मूल्य को स्वीकार करने के साथ-साथ जोखिम अनिश्चितताओं का विश्लेषण करती है।
चुकी शेयरधारकों की संपत्ति भी इसके अंतर्गत आती है अतः इससे मालिक व निवेशको दोनों को अधिकतम लाभ प्राप्त होता है तथा सभी हितधारकों का हित सुनिश्चित होता है।
एक मूलभूत अंतर जो दोनों अवधारणाओं में है वह यह है कि लाभ का अधिकतमकरण नकदी प्रवाह पर आधारित नहीं है जबकि धन का अधिकतमकरण इस पर आधारित है।
धन के अधिकतमकरण के प्रमुख उद्देश्य-
अकेले लाभ में अधिकतमीकरण के बजाय शेयरधारकों की संपत्ति के मूल्य में वृद्धि के प्रयास करना।
व्यवसाय में समय तथा जोखिम दोनों से संबंधित मुद्दों को भी शामिल करना।
संसाधनों के बेहतरीन उपयोग को सुनिश्चित करना।
निर्णय लेने की प्रक्रिया को अधिक व्यापक व तार्किक बनाने में मदद करना।
संस्था के संभावित लाभों के समय मूल्य को मान्यता प्रदान करना।
Sir pdf format MEI RAS mains k video k notes b available h kya
ReplyDeletewell done boss keep it up..its very helpful to understand these concepts..
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