कार्बन के अपररुप(allotropes of carbon)
"किसी तत्व के दो या दो से अधिक रूप जो गुणधर्मों में एक दूसरे से पर्याप्त भिन्न होते हैं अपररूप कहलाते है तथा इस गुण को अपररुपता कहते है।"
सामान्यतः अधिकतर अपररूप शुद्ध रूप से तत्व के परमाणुओं से ही बने होते है।
अपररूपों में जो गुणधर्म सम्बन्धी भिन्नता होती है वह मुख्यतः कार्बन परमाणुओ के आबन्धन में अंतर के फलस्वरूप होती है।
कार्बन के अपररूपों को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है-
क्रिस्टलीय अपररूप -
कार्बन के वें अपररूप जिसमें कार्बन परमाणु निश्चित व्यवस्था में व्यवस्थित रहते हैं तथा एक निश्चित ज्यामिति में निश्चित बंध कोण का निर्माण करते हैं उन्हें कार्बन के क्रिस्टलीय अपररूप करते हैं।
उदाहरण-हीरा ग्रेफाइट तथा फुलरिन
उदाहरण-हीरा ग्रेफाइट तथा फुलरिन
अक्रिस्टलीय अपररूप-
कार्बन के अपरूप जिनमें कोई निश्चित ज्यामिति तथा बंध कोण नहीं पाया जाता है , उन्हें अक्रिस्टलीय अपररूप कहते हैं।
उदाहरण-कोल, कोक, काष्ठ चारकोल, जंतु चारकोल गैस कार्बन तथा काजल।
उदाहरण-कोल, कोक, काष्ठ चारकोल, जंतु चारकोल गैस कार्बन तथा काजल।
हीरा (diamond)-
हीरा कार्बन का एक अतिशुद्ध रूप है।
हीरे में कार्बन के परमाणु चार अन्य कार्बन परमाणुओं के साथ मिलकर दृढ त्रिआयामी चतुष्फलकीय संरचना का निर्माण करते है।
हीरे में दो कार्बन परमाणुओं के मध्य 1. 54 A की दूरी होती है।
कार्बन की चारो संयोजकताएँ पूरी होने की वजह से हीरा विद्युत का कुचालक होता है।
प्रबल सहसंयोजक बंधो से निर्मित हीरा अब तक का ज्ञात सबसे कठोर पदार्थ है।
हीरा का गलनांक 3843 K होता है।
कृत्रिम रूप से हीरे के निर्माण के लिए शुद्ध कार्बन को अत्यधिक उच्च दाब तथा ताप पर उपचारित किया जाता है।
हीरे का उपयोग ( Uses of Diamonds)-
हीरे का उपयोग कांच काटने के लिए, चट्टानों तथा पत्थर काटने की मशीनो में तथा फोनोग्राम की सुई बनाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त आभूषणों में भी बहुतायत में हीरे का प्रयोग होता है।
ग्रेफाइट (Graphite)-
ग्रेफाइट शब्द की उत्पति ग्रेफो शब्द से हुई है जिसका मतलब है लिखना। हमारी पेंसिलों में इसी ग्रेफाइट का ही उपयोग किया जाता है।
इसमें कार्बन का प्रत्येक परमाणु तीन अन्य परमाणुओं के साथ संयोजित होकर षट्कोणीय वलय संरचना का निर्माण करते है।
ग्रेफाइट की संरचना परतदार होती है जिसकी दो परतो के बीच दुर्बल बंध होने की वजह से वे एक दूसरे पर फिसल सकती है। इसी कारण ग्रेफाइट का प्रयोग शुष्क स्नेहक के रूप में किया जाता है।
मुक्त इलेक्ट्रान होने की वजह से यह विद्युत का सुचालक होता है।
ग्रेफाइट चमकदार, अपारदर्शी तथा काले रंग का होता है।
ग्रेफाइट के उपयोग (Uses of Graphite)-
इसका प्रयोग पेन्सिल बनाने के लिए होता है।
शुष्क स्नेहक के रूप में भी यह प्रयोग होता है।
सुचालक होने की वजह से इलेक्ट्रोड बनाने के काम भी आता है।
नाभिकीय परमाणु भट्टी में मंदक के रूप में काम आता है।
लोहे की वस्तुओ पर पॉलिश करने में भी ग्रेफाइट का प्रयोग होता है।
फुलरीन ( Fullerene)-
फुलरीन में कार्बन परमाणु एक फूटबाल की संरचना में व्यवस्थित होते है।
इसका नाम अमरीका के प्रसिद्ध वास्तुकार बकमिंस्टर फुलरीन के नाम पर रखा गया है।
फुलरीन के एक अणु में 60 ,70 या इससे भी अधिक कार्बन परमाणु हो सकते है।
C 60 सबसे अधिक स्थायी संरचना है। इसमें कुल 32 फलक होते है जिनमे 20 फलक षट्कोणीय तथा 12 फलक पंचकोणीय है। यह विधुत का कुचालक होता है। इसमें कार्बन के दो परमाणुओं के बंध की लम्बाई 1. 40 A होती है।
फुलरीन के उपयोग (Uses of Fullerene )-
आण्विक बेयरिंग , प्राकृतिक गैसों के शुद्धीकरण तथा उच्च ताप पर अतिचालकता में इसका प्रयोग किया जाता है
रस का शाब्दिक अर्थ है आनंद। काब्य को पढ़ने और सुनने में जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहा जाता है। पाठक या श्रोता के हृदय में स्थित स्थाई भाव ही विभावादि से संयुक्त हो कर रस रूप में परिणत हो जाता है। रस को काव्य की आत्मा / प्राण तत्व माना जाता है। रस के भेद : हास्य रस, रौद्र रस, करुण रस, वीर रस, अद्भुत रस, वीभत्स रस, भयानक रस, शांत रस, वात्सल्य रस, भक्ति रस
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया लेख अगर कुछ तस्वीरो का उपयोग करते तो और अच्छा होगा धन्यबाद
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