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Monday, June 4, 2018

राजस्‍थान राज्‍य मानव अधिकार आयोग/Rajasthan State Human Rights Commission

RAS 2018 prelims special

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अनुसार राष्‍ट्रीय स्‍तर पर राष्‍ट्रीय मानव अधिकार आयोग एवं राज्‍य स्‍तर पर राज्‍य मानव अधिकार आयोग को स्‍थापित करने की व्‍यवस्‍था है।

राजस्‍थान राज्‍य मानव अधिकार आयोग देश के अग्रणी राज्‍य आयोगों में से एक है।

अब तक देश के 25 राज्यों में राज्य मानवाधिकार आयोग की स्थापना की जा चुकी है केवल अरुणाचल प्रदेश मिजोरम तेलंगाना नागालैंड में इसकी स्थापना नहीं हुई है।

राजस्‍थान की राज्‍य सरकार ने दिनांक 18 जनवरी 1999 को एक अधिसूचना राजस्‍थान राज्‍य मानव अधिकार आयेाग के गठन के संबंध में जारी की।





मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अनुसार आयोग में एक पूर्णकालिक अध्‍यक्ष एवं चार सदस्‍य रखे गये है। 

अध्‍यक्ष एवं चार सदस्‍यों की नियुक्ति कर आयोग का गठन किया गया और मार्च, 2000 से यह आयोग क्रियाशील हो गया था।

मानव अधिकार संरक्षण (संशोधित) अधिनियम, 2006 के अनुसार राज्‍य मानव अधिकार आयोग में एक अध्‍यक्ष और दो सदस्‍य का प्रावधान किया गया है।

आयोग का मुख्‍य उद्देश्‍य राज्‍य में मानव अधिकारों की रक्षा हेतु एक निगरानी संस्‍था के रूप में कार्य करना है।

संयुक्‍त राष्‍ट्र के चार्टर 10 दिसम्‍बर 1948 में मानव अधिकारों को परिभाषित कर सम्मिलित किया गया है और जिन्‍हे सख्‍ती से लागू किया जाना है।

राज्‍य मानव अधिकार आयोग, मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अन्‍तर्गत एक स्‍वशाषी उच्‍चाधिकार प्राप्‍त मानव अधिकारों की निगरानी संस्‍था है।

इसके स्‍वायतता हेतु आयोग के अध्‍यक्ष एवं नियुक्ति की प्रक्रिया इस प्रकार रखी गई है, जिससे उनके कार्य करने की स्‍वतंत्रता सु‍रक्षित रहे, साथ ही उनका कार्यकाल पूर्व में ही निश्चित कर दिया गया है।

अधिनियम के अन्‍तर्गत आयोग को वैधानिक गारन्‍टी प्रदान की गई है और वित्‍तीय स्‍वायतता भी प्रदान की गई है।

अन्‍य आयोगों से भिन्‍न, आयोग के अध्‍यक्ष पद पर उच्‍च न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश को ही नियुक्‍त किया जा सकता है।

आयोग के दो सदस्यों में से एक राज्य की उच्च न्यायालय का कार्यरत अथवा सेवानिवृत्त न्यायाधीश अथवा किसी जिले का न्यायाधीश जिसे जिलाधीश के रूप में 7 वर्ष का अनुभव हो होना चाहिए तथा दूसरा सदस्य मानवाधिकार के क्षेत्र में अनुभव रखने वाला होना चाहिए।

आयोग सचिव राज्‍य सरकार के सचिव स्‍तर के अधिकारी से कम स्‍तर का अधिकारी नहीं हो सकता।

आयोग की अपनी एक अन्‍वेषण एजेन्‍सी है, जिसका नेतृत्‍व ऐसे पुलिस अधिकारी जो महानिरीक्षक पुलिस के पद से कम स्‍तर का नहीं हो, द्वारा किया जाता है

आयोग की पहली अध्यक्ष जस्टिस सुश्री कान्ता भटनागर थी जिनका कार्यकाल 23.03.2000से 11.08.2000 तक था।

जस्टिस एस. सगीर अहमद अध्यक्ष पद पर दिनांक 16.02.2001से 03.06.2004 तक रहे है।

इसी प्रकार जस्टिस एन. के. जैन 16.07.2005 से 15.07.2010 तक अध्यक्ष पद पर रहे।

वर्तमान में जस्टिस श्री प्रकाश टाटिया राजस्‍थान राज्‍य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष हैं। वे इसके पूर्व झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे।

उद्देश्‍य एवं कार्यकलाप -

आयोग के कार्यो में निम्नलिखित सम्मिलित है -

स्वप्रेरणा से अथवा किसी पीड़ित अथवा उसके/उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा -

(1) मानवाधिकारों का उल्लंघन अथवा दुष्प्रेरण, अथवा
(2) ऐसे उल्लंघन को रोकने में लोक सेवक द्वारा लापरवाही से संबंधित अर्जी प्रस्तुत किये जाने पर जाँच-पड़ताल करना.

मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित किसी कार्रवाई में दखल देना (यदि कार्रवाई किसी न्यायालय में लंबित है तो उस न्यायालय के अनुमोदन के पश्चात).

राज्‍य सरकार के नियन्‍त्रणाधीन किसी कारागार या कोई अन्‍य संस्‍था का, जहां पर उपचार, सुधार या संरक्षण के प्रयोजनार्थ व्‍यक्त्यिों को रखा जाता है या निरूद्ध किया जाता है, में निवास करने वालों की जीवन दशाओं का अध्‍ययन करने के लिये निरीक्षण करेगा।

मानवाधिकार के संरक्षण के लिए संविधान अथवा तत्समयप्रवृत किसी अन्य विधि द्वारा अथवा अधीन उपबंधितरक्षोपायों का पुनर्विलोकन करना.

उन बातों का पुनर्विलोकन करना जो मानवाधिकार के उपभोग में अवरोध पैदा करती है.

मानवाधिकार के क्षेत्र में शोध तथा उसका संवर्धन करना.

मानवाधिकार का प्रसार करना तथा प्रकाशन, मिडिया, सेमिनार या अन्य उपलब्ध साधनों के माध्यम से इनके संरक्षण के लिए उपलब्ध रक्षोपाय की जागरूकता को बढ़ावा देना.

मानवाधिकार के क्षेत्र में गैर सरकारी संगठनों एवं संस्थाओं के प्रयासों को प्रोत्साहित करना.

अन्य ऐसे कृत्यों का पालन करना जिसे आयोग मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए आवश्यक समझे.

यद्यपि सामान्य रूप से आयोग लोक सेवक द्वारा मानवाधिकार का उल्लंघन (अथवा उसका दुष्प्रेरण) से संबंधित मामले की जाँच पड़ताल करेगा, परन्तु जहाँ आम नागरिक द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन होता हो और यदि ऐसे उल्लंघन को रोकने में लोक सेवक असफल रहे हों अथवा उसकी अवहेलना करें तो वैसे मामलों में भी आयोग हस्तक्षेप कर सकता है।

स्रोत- http://www.rshrc.rajasthan.gov.in/

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