पारिस्थितिकी: जीव तथा समष्टियाँ
पारिस्थितिकी एक ऐसा विषय है जिसमें जीवो के बीच या जीवित तथा भौतिक/अजैविक पर्यावरण के बीच होने वाली पारस्परिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
मूल रूप से पारिस्थितिकी जीवीय संगठन के चार स्तरों से संबंधित है-
जीव
समष्टियां
समुदाय और
जीवोम
समष्टियां
समुदाय और
जीवोम
इस वीडियो में हम जैविक तथा समष्टि स्तरों के बारे में अध्ययन करेंगे।
जीव तथा इसका पर्यावरण-
धरती पर रहने वाले जीव अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते हैं तथा वातावरण के प्रति अनुकूलित हो जाते हैं।
पृथ्वी पर ऋतुओं के बनने का मुख्य कारण सूर्य के चारों ओर घुर्णन, अपने अक्ष पर झुकाव, तापमान की तीव्रता तथा अवधि को माना जाता है।
विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग ऋतु तथा वर्षण की अलग-अलग मात्रा होने की वजह से ही विभिन्न प्रकार के जीवोम का निर्माण हुआ है।
चित्र द्वारा हम वार्षिक तापमान और वर्षा की मात्रा के संदर्भ में जीवोम के वितरण को समझ सकते हैं-
हमारे देश में विभिन्न प्रकार के जीवोम पाए जाते हैं जिनमें उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन, पर्णपाती वन, मरुस्थल, समुद्र तट आदि सम्मिलित है।
कुछ प्रमुख अजैविक तत्व जो कि इन जीवोम को आपस में इतनी विविधता प्रदान करते हैं उनमें प्रकाश, तापमान, जल तथा मृदा की सबसे अधिक भूमिका है।
तापमान
यह पारिस्थितिकी रुप से सबसे ज्यादा प्रासंगिक पर्यावरणीय कारक है।
पृथ्वी पर औसत तापमान ऋतुओं के अनुसार बदलता रहता है।
भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर तथा समतल मैदान से पर्वत शिखर की ओर जाने पर तापमान धीरे-धीरे घटता रहता है।
ध्रुवीय क्षेत्रों में जहां तापमान अवशून्य से नीचे होता है वही उष्ण कटिबंधीय मरुस्थल में यह 50 डिग्री से. से अधिक होता है।
तापमान में यह परिवर्तन एंजाइमों की बलगति अर्थात काइनेटिक्स को प्रभावित करता है।
कुछ जीव तापमान की व्यापक पास को सहन कर सकते हैं अतः उन्हें पृथुतापी/यूरीथर्मल कहां जाता है।
जो जीव तापमान की कम परास में ही रहते हैं, उन्हें तनुतापी/ स्टेनोथर्मल कहा जाता है।
तापमान के महत्व को देखते हुए ही बढ़ते वैश्विक तापन को लेकर पूरे विश्व में चिंता व्यक्त की जा रही है।
जल
तापमान के पश्चात जल वह प्रमुख कारक है जो कि पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित करता है।
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति पानी में ही मानी जाती है।
पानी की कमी के वजह से ही मरुस्थल में केवल विशेष अनुकूलता वाले जीव ही जीवित रह पाते हैं।
पादपों का उत्पादन तथा उनका वितरण दोनों पानी पर निर्भर करते हैं।
इसी तरह जल में रहने वाले जीव के लिए जल की गुणता(रासायनिक संगठन, PH) सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है।
जल की लवणता अंत:स्थलीय जल में 5 से कम, समुद्र में 30-35 और कुछ अतिलवणीय झीलों में 100 से अधिक होती हैं।
लवणता की व्यापक परास के प्रति सहनशील जीवों को पृथुलवणी तथा कम परास में रहने वाले जीवों को तनुलवणी कहा जाता है।
प्रकाश
पौधों द्वारा भोजन के उत्पादन के लिए प्रकाश एक महत्वपूर्ण कारक है।
स्वपोषी (आटोट्राफ्स) जीवो के लिए प्रकाश अत्यंत अधिक महत्व रखता है।
घने वनों में शाक व झाडियों जैसे छोटे पौधे कम प्रकाश वाली परिस्थितियों में भी इष्टतम प्रकाश संश्लेषण करने के लिए अनुकूलित होते हैं।
कई जीवों की चारे की खोज (फोरजिंग) , जनन तथा प्रवासी गतिविधियाँ प्रकाश की तीव्रता तथा अवधि पर निर्भर करती है।
समुद में 500 मीटर के नीचे का वातावरण अंधकारमय होने के बावजूद वहाँ जीवन का अस्तित्व है।
मृदा -
विभिन्न स्थानों पर मृदा की प्रकृति तथा गुण भिन्न भिन्न होते है जो निम्न कारकों पर निर्भर है -
जलवायु ,
अपक्षय प्रकम (अवसादी या सेडीमेंटरी),
विकास की प्रकृति
मृदा का पीएच, खनिज संघटन तथा स्थलाकृति जैसे कारक क्षेत्र में उगने वाली वनस्पति का निर्धारण करते है।
Superb....
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