लोकायुक्त का इतिहास
अन्य देशों में जिस संस्था को ओम्बुड्समैन के नाम से जाना जाता है, उसे भारत में लोकपाल या लोकायुक्त कहा जाता है।
इस संस्था की प्रथम परिकल्पना स्वीडन में की गई। वहाँ के राजा किंग चार्ल्स 12 ने अपने कुछ दोषी अधिकारियो को सजा देने के लिए एक सभासद को नियुक्त किया था।
1809 में आम्बुड्समैन फार जस्टिस के रूप में वहाँ इस संस्था की व्यवस्था की गई जिसमें एक गैर सरकारी अधिकारी को लोकसेवकों से सम्बंधित कानून उल्लंघन के मामलों की जाँच की शक्ति दी गई।
आम्बुड्समैन एक स्वीडिश शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है -
लोगों का रिप्रजेन्टेटिव या एजेन्ट
फिनलैण्ड मे 1919, डेनमार्क में 1954, नार्वे में 1961, तथा ब्रिटेन में 1968 में इसकी नियुक्ति की गई।
ब्रिटेन, डेनमार्क तथा न्यूजीलैंड - संसदीय आयुक्त
रूस - वक्ता या प्रोसिक्यूटर
रूस - वक्ता या प्रोसिक्यूटर
भारत में लोकपाल अथवा लोकायुक्त का नाम 1963 में प्रसिद्ध कानूनविद् एम. एल. सिंघवी ने दिया था।
राजस्थान में सर्वप्रथम 1963 में गठित प्रशासनिक सुधार समिति ने लोकायुक्त जैसी संस्था की स्थापना की शिफारिश की थी जो कार्यपालिका के कार्यो पर नजर रखें तथा शिकायतों व भष्ट्राचार के मामलों का अन्वेषण कर सकें।
राष्ट्रीय स्तर पर 5 जनवरी 1966 को श्री मोरारी देसाई की अध्यक्षता में प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया गया।
इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार, अकुशलता तथा जन सामान्य की शिकायतों के प्रति प्रशासन की असंवेदनशीलता के निवारण के लिए केंद्रीय स्तर पर लोकपाल तथा राज्य स्तर पर लोकायुक्त नामक संस्था की व्यवस्था की जाए। हालांकि लंबे समय तक आयोग की सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया गया।
देश में सर्वप्रथम 1970 में ओडिशा में लोकपाल की स्थापना की गई जहां 1995 में फिर से लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम पारित किया गया। हाल ही में एक बार फिर प्रभावी तथा मजबूत प्रावधानों के साथ ओडिशा लोकायुक्त बिल 2014 पारित किया गया है।
वर्ष 1971 में महाराष्ट्र तथा 1973 में राजस्थान में लोकायुक्त स्थापना की गई तथा उसके पश्चात लगभग 20 राज्य में इसकी स्थापना हो चुकी है।
लोकायुक्त की स्थापना से पहले राजस्थान में जनता की शिकायतों के निवारण के लिए जन अभियोग निराकरण विभाग विद्यमान था।
1973 में राजस्थान में लोकायुक्त तथा उप लोकायुक्त अध्यादेश पारित किया गया जो 3 फरवरी 1973 से प्रभावी हुआ। 26 मार्च 1973 को इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली।
केंद्रीय स्तर पर लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 को संसद द्वारा 2014 में पारित किया गया जिसे 1 जनवरी 2014 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली।
16 जनवरी 2014 को इसे राजपत्र में प्रकाशित किया गया।
राजस्थान में लोकायुक्त एक स्वतंत्र संस्थान है जिसका क्षेत्राधिकार संपूर्ण राजस्थान में है। इस पर राज्य सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।
राजस्थान में लोकायुक्त का कार्यकाल 5 वर्ष का था जिसे मार्च 2018 में सरकार द्वारा बढ़ाकर 8 वर्ष कर दिया गया है।
इस पद पर नियुक्ति हेतु उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होना आवश्यक है। न्याय मूर्ति श्री आई डी दुआ राजस्थान के पहले लोकायुक्त थे।
अब तक 12 लोकायुक्तो की नियुक्ति हो चुकी है।
वर्तमान लोकायुक्त न्यायमूर्ति श्री एसएस कोठारी 25 मार्च 2013 से निरंतर कार्यरत हैं।
राजस्थान के प्रथम तथा एकमात्र उप लोकायुक्त श्री के पी यू मेनन थे।
न्यायमूर्ति श्री एम बी शर्मा दो कार्यकाल के लिए लोकायुक्त रहने वाले एकमात्र लोकायुक्त है।
कार्यक्षेत्र-
लोकपाल को निम्नलिखित के विरूद्ध शिकायत की जांच करने का अधिकार प्राप्त है-
राज्य के मंत्री, सचिव, विभागाध्यक्ष तथा लोक सेवक।
जिला समितियों के प्रमुख तथा उपप्रमुख।
पंचायत समितियों के प्रधान तथा उपप्रधान।
नगर निगम के महापौर तथा उपमहापौर।
स्थानीय प्राधिकरण नगर परिषद तथा नगर पालिका के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष।
राजकीय कंपनियों, निगमों तथा मंडलो के अध्यक्षों, अधिकारियों तथा कर्मचारियों के विरुद्ध।
जिला समितियों के प्रमुख तथा उपप्रमुख।
पंचायत समितियों के प्रधान तथा उपप्रधान।
नगर निगम के महापौर तथा उपमहापौर।
स्थानीय प्राधिकरण नगर परिषद तथा नगर पालिका के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष।
राजकीय कंपनियों, निगमों तथा मंडलो के अध्यक्षों, अधिकारियों तथा कर्मचारियों के विरुद्ध।
5 वर्ष से अधिक पुराने मामलों में शिकायत व जांच नहीं की जा सकती है।
निम्नलिखित के विरुद्ध जांच नहीं की जा सकती है-
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीश।
भारत के किसी भी न्यायालय के अधिकारी अथवा कर्मचारी।
राजस्थान के मुख्यमंत्री तथा महालेखाकार।
भारत के किसी भी न्यायालय के अधिकारी अथवा कर्मचारी।
राजस्थान के मुख्यमंत्री तथा महालेखाकार।
राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अथवा सदस्य।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त, निर्वाचन आयुक्त तथा प्रादेशिक अधिकारी।
राजस्थान विधानसभा सचिवालय के कर्मचारी अधिकारी।
सेवानिवृत्त लोक सेवक।
सरपंचों, पंचों तथा विधायकों के विरुद्ध शिकायतें की जाती है लेकिन प्रसंज्ञान नहीं लिया जा सकता क्योंकि वे अधिकार क्षेत्र में नहीं है।
राज सरकार द्वारा दिनांक 28 फरवरी 2014 को मौजूदा लोकायुक्त अधिनियम में संशोधन कर इसे सशक्त तथा प्रभावी बनाने हेतु महाधिवक्ता श्री नरपत मल लोढा की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया गया है।
लोकायुक्त के अधिकार क्षेत्र में मुख्यमंत्री भी आते है।
ReplyDeleteRajasthan me nhi prantu odisha me
DeleteNhi ate h
ReplyDeleteGovernor aate h kya
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