मेवाड़ तथा बूंदी में प्रजामंडल आंदोलन/prazamandal movement in mewar and bundi - RAS Junction <meta content='ilazzfxt8goq8uc02gir0if1mr6nv6' name='facebook-domain-verification'/>

RAS Junction

We Believe in Excellence

RAS Junction Online Platform- Join Now

RAS Junction Online Platform- Join Now
Attend live class and All Rajasthan Mock test on our new online portal. Visit- https://online.rasjunction.com

Saturday, May 5, 2018

मेवाड़ तथा बूंदी में प्रजामंडल आंदोलन/prazamandal movement in mewar and bundi

मेवाड़ में प्रजा मंडल आंदोलन

मेवाड़ राजस्थान का सर्वाधिक प्रतिष्ठित देसी राज्य था।
यहां पर जनता में चेतना किसान तथा आदिवासी आंदोलनों के पश्चात बन पाई।
कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में देसी राज्यों के खिलाफ आंदोलन को समर्थन मिलने के पश्चात 24 अप्रैल 1938 को मेवाड़ प्रजा मंडल की स्थापना हुई।
मेवाड़ प्रजा मंडल की स्थापना में माणिक्य लाल वर्मा तथा बलवंत सिंह मेहता की मुख्य भूमिका थी।
इस प्रजा मंडल को 11 मई 1938 को गैरकानूनी घोषित किया गया।

राज्य से निष्काषित होने के पश्चात मानिक्य लाल वर्मा जी अजमेर चले गए जहां उन्होंने शासन की आलोचना करती हुई एक पुस्तक मेवाड़ का वर्तमान शासन लिखी।
जब वे 1939 में वापस उदयपुर आए तो उन्हें बंधी बनाकर अत्याचार किए गए जिसकी भर्त्सना गांधीजी द्वारा उनकी पत्रिका हरिजन में की गई।
1941 में मेवाड़ प्रजामंडल से पाबंदी हटा लेने के बाद इसका पहला अधिवेशन हुआ जिसके अध्यक्षता माणिक्य लाल वर्मा जी ने की।
इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए विजयलक्ष्मी पंडित तथा आचार्य कृपलानी जी उदयपुर आए।

माणिक्य लाल वर्मा जी ने मुंबई में भारत छोडो आंदोलन के लिए कि गई बैठक में भाग लेने के पश्चात उदयपुर आकर महाराणा को ब्रिटिश सरकार से रिश्ते तोड़ने के लिए पत्र लिखा।
21 अगस्त 1942 को वर्मा जी को गिरफ्तार करने के पश्चात विद्यार्थी भी आंदोलन में कुछ पड़े तथा गिरफ्तारी व हड़ताल हुई।
यह आंदोलन नाथद्वारा, भीलवाड़ा तथा चित्तौड़गढ़ तक फैल गया।
हालात बदलने पर 1945 में प्रजामंडल से प्रतिबंध हटा लिया गया तथा इसकी शाखाएं पूरे मेवाड राज्य में स्थापित की गई।
अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद का सातवां अधिवेशन उदयपुर में बुलाया गया जिसकी अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरु ने की।
1946 में महाराणा की संविधान निर्मात्री सभा ने रिपोर्ट दी जिसे प्रजा मंडल ने अस्वीकार कर दिया।
इसके पश्चात के एम मुंशी द्वारा दिए गए संविधान को भी मई 1947 में अस्वीकार कर दिया गया।
अंत में उदयपुर के भारतीय संघ में सम्मिलित होने के पश्चात यह क्षेत्र भी जनतंत्रात्मक प्रक्रिया से जुड़ गया।

बूंदी में प्रजा मंडल आंदोलन

बूंदी क्षेत्र में राजनीतिक चेतना की शुरुआत 1922 के पश्चात हुई।
विजय सिंह पथिक द्वारा बरड आंदोलन को समर्थन देने  से आंदोलनकारियों का उत्साह बढ़ा।
बूंदी प्रजा मंडल की स्थापना 1931 में हुई जिसका श्रेय कांतिलाल को जाता है।
प्रजा मंडल ने उत्तरदायी शासन तथा सार्वजनिक सुधारों की मांग की।
1935 में बूंदी राज्य में सार्वजनिक सभाओं पर रोक लगा दी गई। 1937 में प्रजा मंडल के अध्यक्ष ऋषि दत्त मेहता को गिरफ्तार कर अजमेर भेज दिया जहां से 1944 में रिहाई के बाद उन्होंने बूंदी राज्य लोक परिषद की स्थापना की।
महाराजा की संविधान निर्मात्री सभा में प्रजा मंडल के सदस्य भी सम्मिलित हुए।

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.

RAS Mains Paper 1

Pages