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Wednesday, May 2, 2018

मारवाड़ में प्रजा मंडल आंदोलन/prajamandal movement in marwad

बीसवीं शताब्दी में राजस्थान का अधिकांश भाग देसी राज्यों के अधीन था तथा कुछ ही हिस्सा ब्रिटिश भारत के अंतर्गत प्रशासित होता था। 

इसी वजह से राजस्थान में राजनीतिक चेतना जागृत करने में कॉन्ग्रेस का कम ही योगदान था। कॉन्ग्रेस ने देसी राज्यों के मामले में अहस्तक्षेप की नीति घोषित की थी।

राजस्थान सेवा संघ तथा राजस्थान मध्य भारत सभा कुछ शुरुआती संस्थाएं थी जिन्होंने इस क्षेत्र में कार्य किया।

1927 में अखिल भारतीय देसी राज्य लोक परिषद की स्थापना मुंबई में हुई जिसके विजय सिंह पथिक उपाध्यक्ष थे।

इसके अगले साल ही 1928 में राजपूताना देसी राज्य लोक परिषद का गठन किया गया जिसका प्रथम प्रांतीय अधिवेशन 1931 में रामनारायण चौधरी की अध्यक्षता में अजमेर में किया गया।

सुभाष चंद्र बोस की अध्यक्षता में 1938 में हरिपुरा में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में देसी रियासतों में हो रहे आंदोलनों को समर्थन मिला तथा प्रजामंडलो की स्थापना हुई।


जोधपुर प्रजामंडल-

आंदोलन से जुडी कुछ प्रमुख संस्थाएं-

मारवाड़ हितकारिणी सभा-  1918 चांदमल सुराणा।
मारवाड़ सेवा संघ-   1920 जयनारायण व्यास।
मारवाड़ राज्य लोक परिषद- 1929 जयनारायण व्यास।
मारवाड़ यूथ लीग-  1931 जयनारायण व्यास।
जोधपुर प्रजामंडल-  1934 भंवरलाल सर्राफ।

1920 में मारवाड़ सेवा संघ द्वारा मारवाड़ में तोल आंदोलन चलाया गया।

1931 में मारवाड़ राज्य लोक परिषद का पहला अधिवेशन पुष्कर में हुआ जिसके अध्यक्ष चांदकरण शारदा थे।
मार्च 1940 में इस परिषद को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया जिसके पश्चात संस्था ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनों पर ध्यान केंद्रित किया।
1942 में परिषद ने जोधपुर में भारत छोडो आंदोलन का संचालन किया जिसमें गिरफ्तारी तथा भूख हड़ताल हुई तथा बालमुकुंद बिस्सा की मृत्यु हो गई।
इस आंदोलन के दौरान जयनारायण व्यास को सिवाना के किले में नजर बंद किया गया।
जयनारायण व्यास द्वारा लिखित पुस्तकों में मारवाड़ की अवस्था तथा पोपाबाई की पोल प्रमुख थी।

जोधपुर प्रजामंडल को भी 1936 में असंवैधानिक घोषित कर दिया गया था।

जिन समाचार पत्रों ने इस आंदोलन में अपना योगदान दिया वे निम्र प्रकार हैं-
अखंड भारत, आंगीबाण तथा पीप

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