किसी भी देश की प्रगति का वास्तविक पैमाना उसकी अर्थव्यवस्था के विकास के साथ-साथ मानव विकास में प्रगति होना भी आवश्यक है।
यह आवश्यक नहीं जिस देश का आर्थिक विकास तेज गति से हो रहा हो, वह मानव विकास में भी उतना ही प्रगति करें।
आज हमारा देश दुनिया की सबसे प्रगतिशील अर्थव्यवस्था है लेकिन माना विकास सूचकांक में हम आज भी पिछड़े देशों में शामिल आते हैं।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा जारी मानव विकास सूचकांक 2016 में भारत 188 देशों में 131वें स्थान पर रहा है।
यह मानव विकास लोगों को उपलब्ध शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं तथा उनके जीवन स्तर के मापदंडो पर तैयार किया जाता है।
इस सूचकांक का निर्माण सन 1990 में पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब उल हक द्वारा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के लिए किया गया।
आज हमारा देश दुनिया की सबसे प्रगतिशील अर्थव्यवस्था है लेकिन माना विकास सूचकांक में हम आज भी पिछड़े देशों में शामिल आते हैं।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा जारी मानव विकास सूचकांक 2016 में भारत 188 देशों में 131वें स्थान पर रहा है।
यह मानव विकास लोगों को उपलब्ध शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं तथा उनके जीवन स्तर के मापदंडो पर तैयार किया जाता है।
इस सूचकांक का निर्माण सन 1990 में पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब उल हक द्वारा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के लिए किया गया।
मानव विकास सूचकांक के आयाम-
एक दीर्घायु व स्वस्थ जीवन-जन्म के समय जीवन प्रत्याशा।
ज्ञान का स्तर- स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष तथा संभावित स्कूली शिक्षा।
जीवन जीने का स्तर- पीपीपी के आधार पर प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय।
जीवन प्रत्याशा से तात्पर्य किसी भी बच्चे के जन्म के समय आने वाले भविष्य में उसके कितने वर्ष जीने से हैं। भारत में जीवन प्रत्याशा 68 वर्ष मानी गई है जिसका तात्पर्य है कि भारत में जन्म लेने वाले व्यक्ति के जीने की संभावना 68 साल होगी।
शिक्षा के क्षेत्र का आकलन दो माध्यमों से किया जाता है। पहला यह कि 25 वर्ष तक की आयु के युवाओं ने औसत कितने वर्ष स्कूली शिक्षा में गुजारे हैं। दूसरा माध्यम यह है कि स्कूल में दाखिला वाले छात्रों के कितने वर्ष की स्कूली शिक्षा की संभावना है।
जीवन जीने के स्तर का अनुमान सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) के आधार पर लगाया है। इससे तात्पर्य किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद तथा विदेश में इसके निवासियों द्वारा अर्जित आय से होता है। इसकी गणना परचेजिंग पावर पेरिटी अर्थात पीपीपी के आधार पर की जाती है।
इसका उपयोग दो देशों की मुद्रा का तुलनात्मक अध्ययन करने में किया जाता है।
इसका उपयोग दो देशों की मुद्रा का तुलनात्मक अध्ययन करने में किया जाता है।
इन तीनो आयामों का अलग-अलग इंडेक्स बनाया जाता है तो उसके पश्चात तीनो इंडेक्स का गुणोत्तर माध्य निकाला जाता है जिससे मानव विकास सूचकांक तैयार होता है।
इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा लैंगिक विकास सूचकांक लैंगिक असमानता सूचकांक तथा बहुआयामी निर्धनता सूचकांक भी जारी किए जाते हैं।
अंतिम मानव विकास सूचकांक 2016 रिपोर्ट मार्च 2017 में जारी की गई थी जिसमें भारत 131 स्थान पर है।
नार्वे, ऑस्ट्रेलिया तथा स्विट्ज़रलैंड प्रमुख 3 स्थानों पर रहे हैं।
सार्क देशों में भारत श्रीलंका तथा मालदीव के बाद तीसरे स्थान पर है
भारत को मध्यम मानव विकास की श्रेणी में रखा गया है।
राजस्थान के संदर्भ में मानव विकास सूचकांक की दशा क्या है वर्तमान में?
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