वैसे तो राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है तथा देश की कुल भौगोलिक क्षेत्र में राजस्थान का हिस्सा 10.4% है लेकिन सतही जल उपलब्धता के आधार पर संपूर्ण देश का केवल 1.16% है।
इसके अतिरिक्त दोहन योग्य भूजल केवल 1.72% है।
पिछले 61 वर्षों में राज्य में 43 बार अकाल पड़ा है।
राज्य में प्रति व्यक्ति जल की वार्षिक उपलब्धता 780 घन मीटर है।
देश का 51 प्रतिशत फ्लोराइड तथा 42 प्रतिशत लवणता वाला क्षेत्र राजस्थान में है।
सतही जल संसाधन-
इसकी अंतर्गत नदियां, झीलें तथा तालाब आते हैं।
सतही जल संसाधनों में राजस्थान पिछड़ा राज्य है तथा इस हेतु से यह अन्य राज्यों पर निर्भर है। विभिन्न नदी परियोजनाओं से निकली नहरों के माध्यम से राजस्थान को सतही जल उपलब्ध होता है।
इसके अतिरिक्त राजस्थान में उपस्थित नदियों, तालाबों तथा झीलों से भी इसकी प्राप्ति होती है।
राजस्थान में लगभग 450 बड़े तालाब हैं।
भूजल संसाधन-
कुंए तथा नलकूप भू जल के प्रमुख स्रोत है तथा राजस्थान में सिंचाई व पेयजल के प्रमुख साधन है।
राजस्थान में सिंचाई-
राजस्थान में सिंचाई के निम्नलिखित 3 साधन पाए जाते हैं-
कुंए तथा नलकूप-
इससे राज्य का कृषि योग्य सिंचाई का कुल 66 प्रतिशत हिस्सा सींचा जाता है।
इस साधन से सर्वाधिक सिंचाई जयपुर तथा अलवर जिले में की जाती है।
पश्चिमी राजस्थान में जल स्तर नीचा होने की वजह से कुओं से सिंचाई नहीं की जाती है, लेकिन जैसलमेर के चांधन गांव में स्थित नलकूप से मीठा पानी प्राप्त किया जा रहा है।
इसे मरु प्रदेश का घड़ा भी कहा जाता है। यहां लाठी सीरीज में 312 मीटर की गहराई पर मीठा पानी प्राप्त हो रहा है।
नहरें-
राज्य के 33% भाग में नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है। इसमें श्रीगंगानगर प्रथम स्थान पर है।
नहरों में सर्वाधिक क्षेत्र इंदिरा गांधी नहर द्वारा सिंचित किया गया है
तालाब-
राजस्थान में तालाब द्वारा सर्वाधिक सिंचाई दक्षिण पूर्वी क्षेत्र में की जाती है।
राज्य की 0.7% सिंचाई तालाबों के द्वारा की जाती है।
भीलवाड़ा प्रथम तथा उदयपुर दूसरे स्थान पर है। भीलवाड़ा में कुल सिंचित क्षेत्र का 22% तालाबों से होता है।
गंगानगर तथा हनुमानगढ़ ऐसे जिले जहां सर्वाधिक सिंचाई की जाती है जबकि राजसमंद में न्यूनतम सिंचाई की जाती है।
कुल सिंचित क्षेत्रफल की दृष्टि से चुरु जिला सबसे अंतिम स्थान पर है।
जैसलमेर में खड़ीन सिंचाई के साधन है। यहां 600 से ज्यादा खड़ीन है। इसमें खेतों के चारों दीवार बनाकर पानी रोक दिया जाता है जिससे नमी बनी रहती हैं। इनका निर्माण पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा किया गया है।
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