राजस्थान के संत, लोक देवी देवता भाग-1/Saints , Lok Devtas and eminent personalities of Rajasthan
तेजाजी
लोक देवता तेजाजी का जन्म नागौर जिले के खरनाल गांव के जाट परिवार में ईसवी सन 1074 में माघ शुक्ला चतुर्दशी को हुआ था
उनके पिता का नाम ताहर जी तथा माता का नाम रामकुंवरी था।
उनका विवाह पनेर गांव के रायमल जी की पुत्री पेमल दे के साथ हुआ था।
पेमल दे की सहेली लाछा गुजरी की गायों को मीणाओं से मुक्त कराते वक्त अत्यधिक घायल होने के बाद सर्पदंश से उनकी मृत्यु अजमेर के सुरसरा गांव में भाद्रपद शुक्ल दशमी को सन 1103 में हुई थी।
इसीलिए तेजाजी को सांपों का देवता भी कहा जाता है प्रत्येक गांव में तेजाजी का देवरा या स्थान होता है जहां उनकी तलवार धारी अश्वारोही मूर्ति होती है।
तेजाजी की पूजा गुजरात राजस्थान तथा मध्य प्रदेश राज्य में होती है।
गोगाजी
राजस्थान के प्रमुख 6 संतों में से गोगा जी को काल समय के हिसाब से सबसे पुराना माना जाता है।
गोगा जी ऐसे संत हैं जिन्हें हिंदू और मुसलमान दोनों समुदाय द्वारा समान रूप से पूजा जाता है ।
गोगाजी का जन्म स्थल ददरेवा चूरू में तथा गोगामेडी हनुमानगढ़ में स्थित है तथा दोनों के बीच 80 किलोमीटर की दूरी है।
इनका जन्म ददरेवा के चौहान शासक जेवर सिंह की पत्नी बाछल के गर्भ से भाद्रपद शुक्ल नवमी को सन 1003 में हुआ था।
गोगाज को जाहर पीर तथा सांपों का देवता भी कहा जाता है।
इनके गुरु का नाम गोरखनाथ था।
भक्त लोग गोगा जी की जीवनी गाते समय डेरु तथा कचौला नामक वाद्य यंत्र बजाते हैं।
इसीलिए गोगाजी की एक प्रसिद्ध कहावत है कि गांव गांव में खेजड़ी गांव गांव में गोगा पीर।
पाबूजी
पाबूजी का जन्म 13 वी शताब्दी में जोधपुर के कोलुमड गांव में हुआ था।
इनके पिता का नाम धांधल जी राठौड़ तथा माता का नाम कमला देवी था।
इनका विवाह सूरजमल सोडा की पुत्री सुपियार देवी (फूलमदे) के साथ हुआ था।
अपने विवाह के समय यह देवल चारणी से केसर कालमी घोड़ी लेकर गए थे, विवाह के बीच में ही जींदराव खींची से देवल चारणी की गायों की रक्षा के लिए युद्ध के लिए गए तथा प्राणोत्सर्ग किया।
इनकी जीवनी पर पाबू प्रकाश नामक ग्रंथ आशिया मोड़ जी ने लिखा है।
थोरी जाति के लोग माठ वाद्ययंत्र के साथ पाबूजी की पावडे गाते हैं।
पाबूजी की फड़ को रावणहत्था नामक वाद्ययंत्र के साथ गाया जाता है जो की सबसे छोटी फड़ है।
चैत्र अमावस्या को कोलू मंड में पाबूजी का विशाल मेला लगता है।
इन्हें ऊंटो के देवता भी कहा जाता है।
रामदेव जी
रामदेव जी का जन्म तवर वंश के अजमल जी के यहां रानी मीणा देकर गर्व से भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को सन 1405 में हुआ।
इनका जन्म स्थल उडू कश्मीर बाड़मेर जिले में स्थित है।
इन्हें अवतारी पुरुष के रूप में माना जाता है तथा मुस्लिम लोग रामसापीर के रूप में पूजते हैं।
यह बालीनाथ के शिष्य थे तथा इन्होंने भैरव नामक राक्षस से जनता को मुक्ति दिलाई थी।
14वी शताब्दी में व्याप्त कुरीतियों के बीच इन्होंने जाति प्रथा तथा मूर्ति पूजा आदि का पुरजोर विरोध किया।
इन्होंने जैसलमेर में रुणिचा धाम की स्थापना की जहां भाद्रपद शुक्ल एकादशी को सन 1458 में जीवित समाधि ले ली।
कामडीया पंथ इनके द्वारा शुरू किया गया था जिनके लोगों द्वारा तेरहताली नृत्य किया जाता है जो विश्व प्रसिद्ध है।
इनकी फड भी रावणहत्था नामक वाद्ययंत्र के साथ ही गाई जाती है।
इनके द्वारा किए गए चमत्कारों को पर्चा तथा ध्वजा को नेजा कहा जाता है।
तेजाजी
लोक देवता तेजाजी का जन्म नागौर जिले के खरनाल गांव के जाट परिवार में ईसवी सन 1074 में माघ शुक्ला चतुर्दशी को हुआ था
उनके पिता का नाम ताहर जी तथा माता का नाम रामकुंवरी था।
उनका विवाह पनेर गांव के रायमल जी की पुत्री पेमल दे के साथ हुआ था।
पेमल दे की सहेली लाछा गुजरी की गायों को मीणाओं से मुक्त कराते वक्त अत्यधिक घायल होने के बाद सर्पदंश से उनकी मृत्यु अजमेर के सुरसरा गांव में भाद्रपद शुक्ल दशमी को सन 1103 में हुई थी।
इसीलिए तेजाजी को सांपों का देवता भी कहा जाता है प्रत्येक गांव में तेजाजी का देवरा या स्थान होता है जहां उनकी तलवार धारी अश्वारोही मूर्ति होती है।
तेजाजी की पूजा गुजरात राजस्थान तथा मध्य प्रदेश राज्य में होती है।
गोगाजी
राजस्थान के प्रमुख 6 संतों में से गोगा जी को काल समय के हिसाब से सबसे पुराना माना जाता है।
गोगा जी ऐसे संत हैं जिन्हें हिंदू और मुसलमान दोनों समुदाय द्वारा समान रूप से पूजा जाता है ।
गोगाजी का जन्म स्थल ददरेवा चूरू में तथा गोगामेडी हनुमानगढ़ में स्थित है तथा दोनों के बीच 80 किलोमीटर की दूरी है।
इनका जन्म ददरेवा के चौहान शासक जेवर सिंह की पत्नी बाछल के गर्भ से भाद्रपद शुक्ल नवमी को सन 1003 में हुआ था।
गोगाज को जाहर पीर तथा सांपों का देवता भी कहा जाता है।
इनके गुरु का नाम गोरखनाथ था।
भक्त लोग गोगा जी की जीवनी गाते समय डेरु तथा कचौला नामक वाद्य यंत्र बजाते हैं।
इसीलिए गोगाजी की एक प्रसिद्ध कहावत है कि गांव गांव में खेजड़ी गांव गांव में गोगा पीर।
पाबूजी
पाबूजी का जन्म 13 वी शताब्दी में जोधपुर के कोलुमड गांव में हुआ था।
इनके पिता का नाम धांधल जी राठौड़ तथा माता का नाम कमला देवी था।
इनका विवाह सूरजमल सोडा की पुत्री सुपियार देवी (फूलमदे) के साथ हुआ था।
अपने विवाह के समय यह देवल चारणी से केसर कालमी घोड़ी लेकर गए थे, विवाह के बीच में ही जींदराव खींची से देवल चारणी की गायों की रक्षा के लिए युद्ध के लिए गए तथा प्राणोत्सर्ग किया।
इनकी जीवनी पर पाबू प्रकाश नामक ग्रंथ आशिया मोड़ जी ने लिखा है।
थोरी जाति के लोग माठ वाद्ययंत्र के साथ पाबूजी की पावडे गाते हैं।
पाबूजी की फड़ को रावणहत्था नामक वाद्ययंत्र के साथ गाया जाता है जो की सबसे छोटी फड़ है।
चैत्र अमावस्या को कोलू मंड में पाबूजी का विशाल मेला लगता है।
इन्हें ऊंटो के देवता भी कहा जाता है।
रामदेव जी
रामदेव जी का जन्म तवर वंश के अजमल जी के यहां रानी मीणा देकर गर्व से भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को सन 1405 में हुआ।
इनका जन्म स्थल उडू कश्मीर बाड़मेर जिले में स्थित है।
इन्हें अवतारी पुरुष के रूप में माना जाता है तथा मुस्लिम लोग रामसापीर के रूप में पूजते हैं।
यह बालीनाथ के शिष्य थे तथा इन्होंने भैरव नामक राक्षस से जनता को मुक्ति दिलाई थी।
14वी शताब्दी में व्याप्त कुरीतियों के बीच इन्होंने जाति प्रथा तथा मूर्ति पूजा आदि का पुरजोर विरोध किया।
इन्होंने जैसलमेर में रुणिचा धाम की स्थापना की जहां भाद्रपद शुक्ल एकादशी को सन 1458 में जीवित समाधि ले ली।
कामडीया पंथ इनके द्वारा शुरू किया गया था जिनके लोगों द्वारा तेरहताली नृत्य किया जाता है जो विश्व प्रसिद्ध है।
इनकी फड भी रावणहत्था नामक वाद्ययंत्र के साथ ही गाई जाती है।
इनके द्वारा किए गए चमत्कारों को पर्चा तथा ध्वजा को नेजा कहा जाता है।
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