बेंगू किसान आंदोलन
बिजोलिया में किसानों द्वारा किए गए विरोध से प्रेरित तो कर मारवाड़ के बेंगू ठिकाने में भी किसानों ने विरोध शुरू कर दिया।
बेंगू भीलवाड़ा में स्थित है जहां 1921 में मेनाल नामक स्थान से इस आंदोलन की शुरुआत हुई। किसानों की खड़ी फसल नष्ट कर दी गई तथा जंगल से घास व लकड़ी लेने पर मनाही कर दी गई। किसानों ने दो साल तक अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष किया।
1923 में बेगूं के सामंत ठाकुर अनु सिंह ने किसानों से समझौता कर लिया लेकिन अंग्रेजों तथा मेवाड़ के महाराणा ने इसे मानने से इनकार कर दिया। अंग्रेजो ने किसानों की क्रांति को रूस की बोल्शेविक क्रांति बताया।
इसी वर्ष मिस्टर ट्रेन्च की अध्यक्षता में एक आयोग को किसानों से समझोते के लिए भेजा गया लेकिन किसानों ने इसका बहिष्कार किया।
13 जुलाई 1923 को गोविंदपुरा गांव में किसानों की एक सभा पर ट्रेन्च द्वारा गोलियां चलवा दी गई जिसमें दो किसान रुपा जी तथा करपा जी की मौत तो गई। 500 से ज्यादा किसानों को बंदी भी बना लिया गया।
13 जुलाई 1923 को गोविंदपुरा गांव में किसानों की एक सभा पर ट्रेन्च द्वारा गोलियां चलवा दी गई जिसमें दो किसान रुपा जी तथा करपा जी की मौत तो गई। 500 से ज्यादा किसानों को बंदी भी बना लिया गया।
राजस्थान केसरी, नवीन राजस्थान तथा प्रताप जैसे अखबारों में इस घटना की निंदा की गई।
अंत में प्रशासन को झुकना पड़ा तथा 53 में से 34 लागतें समाप्त की गई, बेगार पर रोक लगाई गई तथा किसानों से समझौता किया गया।
इस आंदोलन का नेतृत्व राम नारायण चौधरी, विजय सिंह पथिक तथा माणिक्य लाल वर्मा ने किया।
अंत में प्रशासन को झुकना पड़ा तथा 53 में से 34 लागतें समाप्त की गई, बेगार पर रोक लगाई गई तथा किसानों से समझौता किया गया।
इस आंदोलन का नेतृत्व राम नारायण चौधरी, विजय सिंह पथिक तथा माणिक्य लाल वर्मा ने किया।
बूंदी कृषक आंदोलन-
बूंदी के किसानों ने भी लाग बाग तथा अन्याय के विरुद्ध पंडित नयनूराम, रामनारायण चौधरी और हरिभाई किंकर के नेतृत्व में आंदोलन किया।
आंदोलन के अंतर्गत बरड़गांव की किसानों की सभा पर पुलिस द्वारा गोलियां चलाई गई।
किसानों ने भू राजस्व के अतिरिक्त अन्य कोई कर नहीं देने का फैसला किया।
4 जून 1922 में डाबी गांव में पंचायत कर रहे आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। नानक जी भील पुलिस की गोलीबारी में शहीद हो गए।
1946 में समाप्त इस आंदोलन में महिलाओं ने भी सक्रिय रुप से भाग लिया।
आंदोलन के अंतर्गत बरड़गांव की किसानों की सभा पर पुलिस द्वारा गोलियां चलाई गई।
किसानों ने भू राजस्व के अतिरिक्त अन्य कोई कर नहीं देने का फैसला किया।
4 जून 1922 में डाबी गांव में पंचायत कर रहे आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। नानक जी भील पुलिस की गोलीबारी में शहीद हो गए।
1946 में समाप्त इस आंदोलन में महिलाओं ने भी सक्रिय रुप से भाग लिया।
अलवर का किसान आंदोलन (नीमूचाणा हत्याकांड)
1924 में अलवर के किसानों ने सूअरों के उत्पात से दुखी होकर आंदोलन प्रारंभ किया। बाद में महाराजा ने समझौता करके सूअरों को मारने का आदेश दिया।
इसके कुछ समय पश्चात 14 मई 1925 को अलवर के महाराजा जय सिंह द्वारा लगान में वृद्धि की विरोध में नीमूचाणा गांव में एक सभा का आयोजन किया गया।
शांतिपूर्ण तरीके से हो रही सभा पर सैनिकों द्वारा गोलियां चलवा दी गई जिसमें सैकड़ो स्त्री पुरुष तथा बच्चे मारे गए। गांधीजी ने इसकी भर्त्सना करते हुए इसे राजस्थान का जलियांवाला बाग हत्याकांड कहा।
शांतिपूर्ण तरीके से हो रही सभा पर सैनिकों द्वारा गोलियां चलवा दी गई जिसमें सैकड़ो स्त्री पुरुष तथा बच्चे मारे गए। गांधीजी ने इसकी भर्त्सना करते हुए इसे राजस्थान का जलियांवाला बाग हत्याकांड कहा।
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