राजस्थान प्रारंभ से ही किसानों की भूमि रहा है।
बींसवी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भूमि के दो प्रकार थे।
वह भूमि जो शासक के सीधे नियंत्रण में थी, उसे खालसा भूमि कहा जाता था।
इसकी अतिरिक्त भूमि जो कि सामंतो(जागीरदार ठिकानेदार) के अधिकार में थी वह जागीर भूमि कहलाती थी।
सामंती शासन व्यवस्था ने किसानों पर शुरू से ही घोर अत्याचार किए हैं।
ब्रिटिश शासन के दौरान किसानों की उपज का अधिकांश हिस्सा सामंतों द्वारा हड़प लिया जाता था।
इसके अलावा कई प्रकार के लाग बाग तथा कर भी किसानों को चुकाने पडते थे।
शासन के अत्याचारों से तंग आकर राजस्थान के कई क्षेत्रों में किसान आंदोलनों ने जन्म लिया।
बिजोलिया का किसान आंदोलन (1897 से 1941)
यह आंदोलन कुल 3 चरणों में संपन्न हुआ।
प्रथम चरण (1897 से 1916)
बिजोलिया ठिकाना मेवाड़ रियासत के अंतर्गत आता था।
इसकी स्थापना अशोक परमार द्वारा की गई थी।
इसका प्राचीन नाम विजयवल्ली था।
बिजोलिया के राव कृष्ण सिंह ने किसानों पर पांच रुपए की दर से चवंरी कर लगा दिया था जिसके अंतर्गत किसानों को अपनी पुत्री की शादी पर ठिकाने को कर देना पड़ता था।
बिजोलिया ठिकाने में अधिकतर धाकड़ जाति के लोग थे।
बिजोलिया के किसानों ने गिरधारीपुरा नामक गांव में मृत्यु भोज के अवसर पर एक सभा रखी जिसमें कर बढ़ोतरी की शिकायत मेवाड़ के महाराजा से करने का प्रस्ताव रखा गया।
इस हेतु से नानजी पटेल एवं ठाकरी पटेल को उदयपुर भेजा गया लेकिन वे महाराणा से मिलने में सफल न हो सकें।
कृष्ण सिंह की मृत्यु के बाद नये ठिकानेदार पृथ्वी सिंह ने जनता पर तलवार बधाई अर्थात उत्तराधिकार शुल्क लगा दिया।
1915 में साधु सीताराम दास व उनके सहयोगियों को बिजोलिया से निष्कासित कर दिया गया।
द्वित्तीय चरण (1916 से 1923)-
यह चरण विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में आगे बढ़ा।
1917 में ऊपरमाल पंच बोर्ड की स्थापना की गई जिसका अध्यक्ष मुन्नालाल को बनाया गया।
इस किसान आंदोलन की जांच के लिए 1919 में बिंदु लाल भट्टाचार्य आयोग का गठन किया गया लेकिन मेवाड़ के महाराणा ने आयोग की सिफ़ारिशें मानने से इन्कार कर दिया।
राजपूताना के ए जी जी हॉलेंड ने 1922 में किसानों तथा ठिकाने के मध्य एक समझौता करवाया लेकिन यह असफल साबित हुआ।
1923 में विजय सिंह पथिक को गिरफ्तार कर छह साल के लिए जेल भेज दिया गया।
तृतीय चरण (1923 से 1941)
इस चरण में माणिक्य लाल वर्मा, हरिभाऊ उपाध्याय तथा जमनालाल बजाज जैसे लोगों ने सहयोग दिया।
1941 में मेवाड़ के प्रधानमंत्री राघवाचार्य ने अपने राजस्व मंत्री को भेजकर किसानों की अधिकतर मांगो को मान लिया।
आंदोलन के दौरान माणिक्य लाल वर्मा का लिखा पंछीडा़ गीत बहुत लोकप्रिय था।
इस आंदोलन से जुड़े समाचार पत्रों में प्रताप तथा ऊपरमाल डंका प्रमुख थे।
जिन महिलाओं ने इस आंदोलन में भाग लिया उनमें अंजना देवी चौधरी, नारायणी देवी वर्मा, रानी देवी तथा ऊदी मालन प्रमुख थी।
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