Tribal Movements of India/भारत के प्रमुख जनजातीय आंदोलन/ RAS Mains Paper 1
1857 ईस्वी की क्रांति के पहले तथा बाद में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध कई विद्रोह हुए।
ब्रिटिश राज्य की स्थापना के बाद भू-राजस्व प्रणाली, प्रशासनिक तथा न्यायिक प्रणाली के परिवर्तन से जनजातीय समाज प्रभावित हुआ।
वन संपत्ति पर अधिकार करके उसकी सुरक्षा के लिए जनजातीय समाज के लोगो पर विभिन्न प्रकार के कर लगाये जाते थे तथा उनसे बेगार ली जाती थी।
आक्रोशित जनजातीय लोगो के प्रतिरोध का दमन अंग्रेजी सरकार द्वारा बड़ी क्रूरता से किया गया जिसके फलस्वरूप या विरोध सशस्त्र विद्रोह में बदल गया।
ब्रिटिश राज्य की स्थापना के बाद भू-राजस्व प्रणाली, प्रशासनिक तथा न्यायिक प्रणाली के परिवर्तन से जनजातीय समाज प्रभावित हुआ।
वन संपत्ति पर अधिकार करके उसकी सुरक्षा के लिए जनजातीय समाज के लोगो पर विभिन्न प्रकार के कर लगाये जाते थे तथा उनसे बेगार ली जाती थी।
आक्रोशित जनजातीय लोगो के प्रतिरोध का दमन अंग्रेजी सरकार द्वारा बड़ी क्रूरता से किया गया जिसके फलस्वरूप या विरोध सशस्त्र विद्रोह में बदल गया।
पूर्वी भारत- खासी, कोल, संथाल, मुंडा, कुकी, खोंड, नागा, सिंगो।
पश्चिमी भारत- भील रामोसी
दक्षिण भारत- कोरा माल्या एवं कोंडा डोरा।
पश्चिमी भारत- भील रामोसी
दक्षिण भारत- कोरा माल्या एवं कोंडा डोरा।
खासी विद्रोह-
1829 में असम की सीमाओं के निकट पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाली खासी जनजाति ने विद्रोह किया जिसका प्रमुख कारण अंग्रेजो द्वारा इनके क्षेत्र में सड़क का निर्माण करना था।
यह सड़क ब्रह्मपुत्र तथा सिलहट को जोड़ने के लिए बनाई जा रही थी।
खासी जनजाति के लोगो से बलपूर्वक मजदूरी कराये जाने से वे भड़क गए तथा तीरथ सिंह के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया।
इस विद्रोह को अंग्रेजी सरकार ने बड़ी क्रूरता से दबा दिया।
यह सड़क ब्रह्मपुत्र तथा सिलहट को जोड़ने के लिए बनाई जा रही थी।
खासी जनजाति के लोगो से बलपूर्वक मजदूरी कराये जाने से वे भड़क गए तथा तीरथ सिंह के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया।
इस विद्रोह को अंग्रेजी सरकार ने बड़ी क्रूरता से दबा दिया।
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कोल विद्रोह-
1831 ईस्वी में छोटा नागपुर पठार से प्रारंभ होकर यह आंदोलन रांची, हजारीबाग, पलाम तथा मानभूमि आदि जगहों पर फ़ैल गया।
यहाँ के कोल आदिवासी अंग्रेजो की प्रशासनिक व्यवस्था , कठोर भूमि कर नीति तथा स्थानीय कर्मचारियों के दुर्व्यवहार से परेशान थे।
यहाँ के कोल आदिवासी अंग्रेजो की प्रशासनिक व्यवस्था , कठोर भूमि कर नीति तथा स्थानीय कर्मचारियों के दुर्व्यवहार से परेशान थे।
खोंड विद्रोह-
1846 में उड़ीसा में रहने वाली खोंड जनजाति ने अंग्रेजो के विरुद्ध विद्रोह कर दिया जिसके नेतृत्व चक्र बिसोई द्वारा किया गया।
आगे चलकर इसका नेतृत्व राधाकृष्ण दंड द्वारा किया गया।
आगे चलकर इसका नेतृत्व राधाकृष्ण दंड द्वारा किया गया।
संथाल विद्रोह-
आदिवासी क्षेत्रों में होने वाले विद्रोहों में यह एक बड़ा एवं प्रसिद्ध विद्रोह माना जाता है।
संथाल जाति के लोग राजमहल से लेकर भागलपुर तक बहुत बड़ी संख्या में निवास करते थे।
मुख्य क्षेत्र - बांकुरा, वीरभूम, हजारीबाग भागलपुर तथा मुंगेर।
30 जून 1855 को भगनीडीह में हजारों की संख्या में संथाल लोग एकत्र हुए। इनके प्रमुख नेता सिध्दू तथा कान्हू थे जिन्होंने अंग्रेजी शासन से स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
लोगो ने इन दोनों को ईश्वर का अवतार मानते हुए इनका साथ देने का निश्चय किया।
संथालों ने अंग्रेजो के पुलिस स्टेशनों तथा अन्य सरकारी भवनों पर हमला कर तोड़फोड़ की।
इस आंदोलन को नियंत्रित करने के लिए सरकार को मार्शल ला लागू करना पड़ा।
सेना की मदद से सिध्दू तथा कान्हू को पकड़ लिया गया तथा मार दिया गया।
1856 में इस आंदोलन को दबा दिया गया।
संथाल जाति के लोग राजमहल से लेकर भागलपुर तक बहुत बड़ी संख्या में निवास करते थे।
मुख्य क्षेत्र - बांकुरा, वीरभूम, हजारीबाग भागलपुर तथा मुंगेर।
30 जून 1855 को भगनीडीह में हजारों की संख्या में संथाल लोग एकत्र हुए। इनके प्रमुख नेता सिध्दू तथा कान्हू थे जिन्होंने अंग्रेजी शासन से स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
लोगो ने इन दोनों को ईश्वर का अवतार मानते हुए इनका साथ देने का निश्चय किया।
संथालों ने अंग्रेजो के पुलिस स्टेशनों तथा अन्य सरकारी भवनों पर हमला कर तोड़फोड़ की।
इस आंदोलन को नियंत्रित करने के लिए सरकार को मार्शल ला लागू करना पड़ा।
सेना की मदद से सिध्दू तथा कान्हू को पकड़ लिया गया तथा मार दिया गया।
1856 में इस आंदोलन को दबा दिया गया।
मुंडा विद्रोह-
रांची के दक्षिणी भू भाग में निवास करने वाली मुंडा जनजाति ने 1900 में अंग्रेज सरकार के अत्याचारों के खिलाफ विद्रोह किया।
इस विद्रोह के नेता बिरसा मुंडा थे जिन्हें जनजाति के लोग भगवान के रूप में मानते थे।
बिरसा मुंडा की लोकप्रियता का मूल कारण उसकी औषधीय तथा चिकित्सकीय शक्तियां थी।
मुंडाओं का सशस्त्र विद्रोह मुख्य रूप से अधिकारियो, पादरियों, ठेकेदारों तथा जागीरदारों के विरोध में था।
जून 1900 में जेल में बिरसा मुण्डा की मृत्यु हो गयी जिसके बाद इस आंदोलन का पतन हो गया।
इस विद्रोह के बाद काश्तकारी कानून बनाकर कृषको के अधिकारों को मान्यता दे दी गई थी।
इस विद्रोह के नेता बिरसा मुंडा थे जिन्हें जनजाति के लोग भगवान के रूप में मानते थे।
बिरसा मुंडा की लोकप्रियता का मूल कारण उसकी औषधीय तथा चिकित्सकीय शक्तियां थी।
मुंडाओं का सशस्त्र विद्रोह मुख्य रूप से अधिकारियो, पादरियों, ठेकेदारों तथा जागीरदारों के विरोध में था।
जून 1900 में जेल में बिरसा मुण्डा की मृत्यु हो गयी जिसके बाद इस आंदोलन का पतन हो गया।
इस विद्रोह के बाद काश्तकारी कानून बनाकर कृषको के अधिकारों को मान्यता दे दी गई थी।
पश्चिमी तथा दक्षिणी भारत के विद्रोह-
रामोसी विद्रोह-
यह विद्रोह 1822 में सतारा के रामोसी जनजाति के लोगो द्वारा किया गया।
रामोसी मराठा सेना के सैनिक थे जो की अंग्रेजो के आने से बेकार हो गए थे।
अंग्रेजो ने रामोसियो की जमीन पर लगन की दरों में कई गुना वृद्धि कर दी थी।
इस आंदोलन का नेतृत्व चित्तर सिंह ने किया जो की अंग्रेजी शासन प्रणाली से आक्रोशित थे।
रामोसी मराठा सेना के सैनिक थे जो की अंग्रेजो के आने से बेकार हो गए थे।
अंग्रेजो ने रामोसियो की जमीन पर लगन की दरों में कई गुना वृद्धि कर दी थी।
इस आंदोलन का नेतृत्व चित्तर सिंह ने किया जो की अंग्रेजी शासन प्रणाली से आक्रोशित थे।
भील विद्रोह-
यह आंदोलन राजस्थान के भीलो द्वारा सरजी भगत तथा गोविन्द गुरु द्वारा शुरू किया गया।
1883 ईस्वी में गोविन्द गुरु द्वारा सम्प सभा की स्थापना की गई ।
मानगढ़ की पहाड़ी पर सम्प सभा की बैठक पर अंग्रेजो ने गोलिया चला दी थी जिसमे 1500 भील मरे गए थे।
सन् 1913 तक यह आंदोलन बहुत तीव्र हो गया था जिसे बाद में अंग्रेजो द्वारा कुचल दिया गया।
1883 ईस्वी में गोविन्द गुरु द्वारा सम्प सभा की स्थापना की गई ।
मानगढ़ की पहाड़ी पर सम्प सभा की बैठक पर अंग्रेजो ने गोलिया चला दी थी जिसमे 1500 भील मरे गए थे।
सन् 1913 तक यह आंदोलन बहुत तीव्र हो गया था जिसे बाद में अंग्रेजो द्वारा कुचल दिया गया।
कोरा माल्या विद्रोह-
यह दक्षिण भारत का एक प्रमुख जनजातीय विद्रोह था जो की 1900 ईस्वी में अंग्रेजो की साम्राज्यवादी नीति के विरोध में कोरा माल्या के नेतृत्व में शुरू हुआ।
कोरा माल्या ने स्वयं को पांडव बताते हुए बांस को बदुको में तथा पुलिस की बंदूकों को पानी में बदल देने की शक्ति होने की बात कही।
उसने 5000 लोगो को इक्कठा करके पुलिस स्टेशन पर आक्रमण कर दिया।
विद्रोहियों ने स्वयं को राम सेना बताते हुए वन अधिनियमो तथा उत्पादों पर लगाये शुल्कों के विरोध में आंदोलन शुरू कर दिया।
इनके नेता राजन अनंतय्या ने स्वयं को राम का अवतार कहा।
कोरा माल्या ने स्वयं को पांडव बताते हुए बांस को बदुको में तथा पुलिस की बंदूकों को पानी में बदल देने की शक्ति होने की बात कही।
उसने 5000 लोगो को इक्कठा करके पुलिस स्टेशन पर आक्रमण कर दिया।
विद्रोहियों ने स्वयं को राम सेना बताते हुए वन अधिनियमो तथा उत्पादों पर लगाये शुल्कों के विरोध में आंदोलन शुरू कर दिया।
इनके नेता राजन अनंतय्या ने स्वयं को राम का अवतार कहा।
कोंडा डोरा विद्रोह-
कोंडा डोरा जनजाति विशाखापत्तनम की कृष्णदेवपेटा की पहाड़ियों में रहती थी।
ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त प्रधानों(मुट्ठदारो) के अत्याचारों से ये लोग पीड़ित थे।
1922 में इन्होंने मिलकर तपस्वी रामराज के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया।
विद्रोहियो ने आंध्र व ओडिशा में समानांतर सरकार बनाने की योजना बनाई।
हालांकि अंग्रेजो की बंदूकों के सामने डोरो विद्रोहियों के तीर भाले नहीं टिक पाये तथा अंग्रेज सरकार ने विद्रोह को दबा दिया।
ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त प्रधानों(मुट्ठदारो) के अत्याचारों से ये लोग पीड़ित थे।
1922 में इन्होंने मिलकर तपस्वी रामराज के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया।
विद्रोहियो ने आंध्र व ओडिशा में समानांतर सरकार बनाने की योजना बनाई।
हालांकि अंग्रेजो की बंदूकों के सामने डोरो विद्रोहियों के तीर भाले नहीं टिक पाये तथा अंग्रेज सरकार ने विद्रोह को दबा दिया।
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