राजस्थान में खनन / Mining in Rajasthan/RAS Mains paper 2
राजस्थान में प्राप्त होने वाले विभिन्न खनिजो के कारण इसे खनिजो का अजायबघर भी कहा जाता है।
राजस्थान में कुल 67 खनिजो(44 मुख्या तथा 23 गौण) का खनन वर्तमान में हित है।
देश के कुल खनिज उत्पादन में राजस्थान का योगदान 22 प्रतिशत है।
खनिज भंडारों की दृष्टि से राजस्थान झारखण्ड के बाद देश में दूसरे स्थान पर है।
खनिज उत्पादन की दृष्टि से झारखण्ड व मध्यप्रदेश के बाद राजस्थान देश में तीसरे स्थान पर है।
खनिज उत्पादन से आय की दृष्टि से राज्य देश में पाचवें स्थान पर है।
राजस्थान में कुल 67 खनिजो(44 मुख्या तथा 23 गौण) का खनन वर्तमान में हित है।
देश के कुल खनिज उत्पादन में राजस्थान का योगदान 22 प्रतिशत है।
खनिज भंडारों की दृष्टि से राजस्थान झारखण्ड के बाद देश में दूसरे स्थान पर है।
खनिज उत्पादन की दृष्टि से झारखण्ड व मध्यप्रदेश के बाद राजस्थान देश में तीसरे स्थान पर है।
खनिज उत्पादन से आय की दृष्टि से राज्य देश में पाचवें स्थान पर है।
राजस्थान के एकाधिकार वाले खनिज-
सीसा, जस्ता, संगमरमर, जिप्सम, रॉक फास्फेट, एस्बेस्टास,जेस्पर, वोलेस्टोनाइट, घीया पत्थर आदि।
(क) धात्विक खनिज-इन खनिजो से मूल खनिजो को विभिन्न रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा अलग किया जाता है। प्रमुख धात्विक खनिज निम्न प्रकार है-
विडियो ट्यूटोरियल
लौह अयस्क-
राज्य में लौह अयस्क के बहुत कम भण्डार है तथा घटिया किस्म का हेमेटाइट अयस्क मिलता है।
इसका उपयोग कृषि, उद्योग, परिवहन तथा संचार क्षेत्र में होता है।
उत्पादन स्थल- मोरीजा बनोला (जयपुर), नीमला (दौसा), डाबला (झुन्झनु), नाथरा पाल, थुर हुन्डेर (उदयपुर)।
इसका उपयोग कृषि, उद्योग, परिवहन तथा संचार क्षेत्र में होता है।
उत्पादन स्थल- मोरीजा बनोला (जयपुर), नीमला (दौसा), डाबला (झुन्झनु), नाथरा पाल, थुर हुन्डेर (उदयपुर)।
मैंगनीज-
इसका अयस्क पायरोलुसाइट,ब्राउनाइट साउलोमिलेन तथा फिलाउट के नाम से जाना जाता है।
राजस्थान में घटिया किस्म का मैंगनीज है जिसके 20 लाख टन अनुमानित भण्डार है।
उत्पादन स्थल- तलवाडा, लीलवानी, नराडिया, सिम्भामोरी, सिवोनिया ( बासवाडा) तथा नेगडिया, सरूपपुरा, रामौसन(उदयपुर), जयपुर, सवाईमाधोपुर।
राजस्थान में घटिया किस्म का मैंगनीज है जिसके 20 लाख टन अनुमानित भण्डार है।
उत्पादन स्थल- तलवाडा, लीलवानी, नराडिया, सिम्भामोरी, सिवोनिया ( बासवाडा) तथा नेगडिया, सरूपपुरा, रामौसन(उदयपुर), जयपुर, सवाईमाधोपुर।
ताम्बा-
तांबा बहुत लचीला तथा विद्युत का सुचालक होता है।
यह आग्नेय तथा कायांतरित चट्टानों की नसों में पाया जाता है।
ताम्बा उत्पादन में राजस्थान देश में द्वितीय स्थान पर है।
ताम्बा शोधन संयंत्र- हिंदुस्थान कॉपर लिमिटेड, खेतड़ी झुंझुनू।
उत्पादन स्थल- खेतड़ी, सिंघाना(झुंझुनू), नीम का थाना(जयपुर), खो दरीबा(अलवर), पुर आगुचा व गुलाबपुरा(भीलवाड़ा), देबारी, सलूम्बर तथा रेल मगर(उदयपुर), बीदासर(चुरू)।
सीकर की बन्नो वाली ढाणी में तांबे के भंडारे होने की संभावना।
यह आग्नेय तथा कायांतरित चट्टानों की नसों में पाया जाता है।
ताम्बा उत्पादन में राजस्थान देश में द्वितीय स्थान पर है।
ताम्बा शोधन संयंत्र- हिंदुस्थान कॉपर लिमिटेड, खेतड़ी झुंझुनू।
उत्पादन स्थल- खेतड़ी, सिंघाना(झुंझुनू), नीम का थाना(जयपुर), खो दरीबा(अलवर), पुर आगुचा व गुलाबपुरा(भीलवाड़ा), देबारी, सलूम्बर तथा रेल मगर(उदयपुर), बीदासर(चुरू)।
सीकर की बन्नो वाली ढाणी में तांबे के भंडारे होने की संभावना।
सीसा जस्ता-
सीसा तथा जस्ता के अयस्क गैलेना, कैलेमाइन, जिकांइट, विमेलाइट है।
इसके निक्षेप आर्कियन तथा प्रोटोजोइक काल की चट्टानों में मिलते है।
उत्पादन स्थल- जावर, मोचिया मगरा तथा देबारी (उदयपुर), राजपुरा-दरीबा (राजसमंद), रामपुरा आगुचा (भीलवाड़ा), चौथ का बरवाडा(सवाई माधोपुर), गुढ़ा किशोरीदास (अलवर)।
इसके निक्षेप आर्कियन तथा प्रोटोजोइक काल की चट्टानों में मिलते है।
उत्पादन स्थल- जावर, मोचिया मगरा तथा देबारी (उदयपुर), राजपुरा-दरीबा (राजसमंद), रामपुरा आगुचा (भीलवाड़ा), चौथ का बरवाडा(सवाई माधोपुर), गुढ़ा किशोरीदास (अलवर)।
प्रमुख संयत्र-
हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड, देबारी (उदयपुर)।
सुपर जिंक स्मेल्टर सयंत्र, चंदेरिया (चितोडगढ़) ब्रिटेन के सहयोग से 2005 में स्थापित।
ये दोनों संयंत्र वेदान्ता समूह के अन्तर्गत निजी क्षेत्र मे है।
इसका उपयोग बारूद, जहाज तथा कांसा बनाने में किया जाता है।
देश के कुल संचित भण्डार का 90 % राजस्थान में है।
हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड, देबारी (उदयपुर)।
सुपर जिंक स्मेल्टर सयंत्र, चंदेरिया (चितोडगढ़) ब्रिटेन के सहयोग से 2005 में स्थापित।
ये दोनों संयंत्र वेदान्ता समूह के अन्तर्गत निजी क्षेत्र मे है।
इसका उपयोग बारूद, जहाज तथा कांसा बनाने में किया जाता है।
देश के कुल संचित भण्डार का 90 % राजस्थान में है।
टंगस्टन-
इसका उत्पादन ग्रेनाइट तथा पेग्माइट चट्टानों के साथ प्राप्त होने वाले वुलफ्रेमाइट अयस्क से किया जाता है।
उपयोग- बिजली के बल्ब बनाने में, इस्पात निर्माण में, धातुओं को काटने मे, सामरिक महत्व के हथियार बनाने में, एक्सरे, रेडियो तथा टेलीविजन में तथा रंगाई छपाई में।
उत्पादन स्थल- डेगाना में रेवत तथा भाकरी(नागौर), बाल्दा(सिरोही), अमरतरिया(डूंगरपुर), कुण (उदयपुर), बराठिया पडराला- बीजापुर (पाली) तथा लादेरा-साकुण (अजमेर)।
देश के कुल उत्पादन का 75 % राजस्थान में होता है।
इसका विदोहन रक्षा मंत्रालय के नियंत्रण में होता है।
उपयोग- बिजली के बल्ब बनाने में, इस्पात निर्माण में, धातुओं को काटने मे, सामरिक महत्व के हथियार बनाने में, एक्सरे, रेडियो तथा टेलीविजन में तथा रंगाई छपाई में।
उत्पादन स्थल- डेगाना में रेवत तथा भाकरी(नागौर), बाल्दा(सिरोही), अमरतरिया(डूंगरपुर), कुण (उदयपुर), बराठिया पडराला- बीजापुर (पाली) तथा लादेरा-साकुण (अजमेर)।
देश के कुल उत्पादन का 75 % राजस्थान में होता है।
इसका विदोहन रक्षा मंत्रालय के नियंत्रण में होता है।
चांदी-
सीसा व जस्ता के साथ मिश्रित रुप में उत्पादन।
चांदी में तन्यता तथा चोट सहने के गुण होते है तथा यह विद्युत की सुचालक होती है।
उत्पादन स्थल- जावर खान(उदयपुर), रामपुरा आगुचा (भीलवाडा)।
इसका शोधन देबारी तथा चंदेरिया के जिंक संयंत्रों में होता है।
चांदी में तन्यता तथा चोट सहने के गुण होते है तथा यह विद्युत की सुचालक होती है।
उत्पादन स्थल- जावर खान(उदयपुर), रामपुरा आगुचा (भीलवाडा)।
इसका शोधन देबारी तथा चंदेरिया के जिंक संयंत्रों में होता है।
अगले भाग में हम अधात्विक खनिजों के बारे में चर्चा करेंगे।
Bidasar churu galat h
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