Marketing Concept/ विपणन अवधारणा /RAS Mains Paper 1
विभिन्न संगठन अपने व्यवसाय को लेकर अलग अलग सोच तथा रुख अपनाते है। प्राचीन काल से अब तक विपणन की विभिन्न अवधारणाओं का विकास हुआ है तथा समय समय पर परिवर्तन भी हुए है।
विपणन की प्रमुख अवधारणाएं निम्न है-
विनिमय अवधारणा
उत्पादन अवधारणा
उत्पाद अवधारणा
विक्रय अवधारणा
आधुनिक विपणन अवधारणा
सामाजिक विपणन अवधारणा
उत्पादन अवधारणा
उत्पाद अवधारणा
विक्रय अवधारणा
आधुनिक विपणन अवधारणा
सामाजिक विपणन अवधारणा
विनिमय अवधारणा-
यह अत्यंत प्राचीन अवधारणा है जिसमे खरीदने तथा बेचने वाले के बीच वस्तुओं का आदान प्रदान होता है।विपणन में वस्तुओं का वितरण तथा कीमत ही शामिल होती है।
विनिमय विपणन का केवल एक अंग है तथा विपणन के कई तत्त्व इसके अंतर्गत शामिल नहीं है।
विनिमय विपणन का केवल एक अंग है तथा विपणन के कई तत्त्व इसके अंतर्गत शामिल नहीं है।
वीडियो ट्यूटोरियल
उत्पादन अवधारणा-
इस अवधारणा के अंतर्गत उत्पादन को प्रबंधित करने की नीति अपनाई जाती है।
इसके पीछे यह मान्यता है कि ग्राहक उन्ही उत्पादों की ओर आकर्षित होते है जो कम लागत पर अधिक मात्रा में बाजार में उपलब्ध होते है।
ऐसे संगठन में संपूर्ण ध्यान उत्पादन पर केंद्रित किया जाता है तथा विपणन के अन्य तत्वों को नज़रअंदाज़ किया जाता है।
व्यवहार में ऐसे उत्पादों को कई बार ग्राहकों का प्रत्याशित समर्थन नहीं मिलता है।
इसके पीछे यह मान्यता है कि ग्राहक उन्ही उत्पादों की ओर आकर्षित होते है जो कम लागत पर अधिक मात्रा में बाजार में उपलब्ध होते है।
ऐसे संगठन में संपूर्ण ध्यान उत्पादन पर केंद्रित किया जाता है तथा विपणन के अन्य तत्वों को नज़रअंदाज़ किया जाता है।
व्यवहार में ऐसे उत्पादों को कई बार ग्राहकों का प्रत्याशित समर्थन नहीं मिलता है।
उत्पाद अवधारणा-
यह अवधारणा उत्पादन अवधारणा के विपरीत है।
इसमें संगठन का पूरा ध्यान उत्पाद को श्रेष्ठ बनाने, गुणवत्ता सुधार, नए उत्पादों के सृजन तथा आदर्श उत्पादों के निर्माण पर रहता है।
इसके पीछे तर्क यह है कि ग्राहक द्वारा स्वभावतः ही अच्छी किस्म के उत्पादों को ख़रीदा जाता है।
ये संगठन उत्पादों की विशेषताओं के बल पर सफल होने का प्रयास करते है।
प्रो. लिविट्ट के अनुसार ऐसे संगठन विपणन निकट दृष्टि दोष से पीड़ित माने जाते है जो बिना ग्राहक की आवश्यकताओं को समझे उत्पादों पर अधिक ध्यान देते है।
इसमें संगठन का पूरा ध्यान उत्पाद को श्रेष्ठ बनाने, गुणवत्ता सुधार, नए उत्पादों के सृजन तथा आदर्श उत्पादों के निर्माण पर रहता है।
इसके पीछे तर्क यह है कि ग्राहक द्वारा स्वभावतः ही अच्छी किस्म के उत्पादों को ख़रीदा जाता है।
ये संगठन उत्पादों की विशेषताओं के बल पर सफल होने का प्रयास करते है।
प्रो. लिविट्ट के अनुसार ऐसे संगठन विपणन निकट दृष्टि दोष से पीड़ित माने जाते है जो बिना ग्राहक की आवश्यकताओं को समझे उत्पादों पर अधिक ध्यान देते है।
विक्रय अवधारणा-
इस अवधारणा के अंतर्गत वस्तुओं के प्रचार प्रसार तथा विज्ञापन पर अत्यधिक जोर दिया जाता है।
ऐसे उपक्रम भारी विज्ञापन करके, कीमतों में छूट देकर सुदृढ़ प्रचार करके विक्रय को बढाने की कोशिश करते है।
ऐसे संगठन विक्रय तथा विपणन में कोई भेद नहीं समझते तथा दोनो को एक दूसरे का पर्यायवाची मानते है।
विक्रय की अवधारणा को भी विपणन निकट दृष्टि दोष या संकुचित विपणन की अवधारणा से ग्रसित माना जाता है।
ऐसे उपक्रम भारी विज्ञापन करके, कीमतों में छूट देकर सुदृढ़ प्रचार करके विक्रय को बढाने की कोशिश करते है।
ऐसे संगठन विक्रय तथा विपणन में कोई भेद नहीं समझते तथा दोनो को एक दूसरे का पर्यायवाची मानते है।
विक्रय की अवधारणा को भी विपणन निकट दृष्टि दोष या संकुचित विपणन की अवधारणा से ग्रसित माना जाता है।
आधुनिक विपणन की अवधारणा-
औद्योगिक उत्पादन में बदलाव के फलस्वरूप विपणन की आधुनिक अवधारणा का विकास हुआ है।
यह अवधारणा उत्पादन के बजाय विपणन के नियमो तथा तकनीकों को लागू करने पर बल देती है।
इस अवधारणा के अनुसार व्यावसायिक गतिविधियों का प्रारंभ तथा अंत दोनों ही उपभोक्ता की आवश्यकता तथा संतुष्टि पर आधारित है।
एकीकृत प्रबंध कार्यवाही, उपभोक्ता-अभिमुखता, उपभोक्ता की संतुष्टि, लाभ के साथ संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति, उपभोक्ता मूल्य आदि इस अवधारणा की प्रमुख विशेषताए है।
यह अवधारणा उत्पादन के बजाय विपणन के नियमो तथा तकनीकों को लागू करने पर बल देती है।
इस अवधारणा के अनुसार व्यावसायिक गतिविधियों का प्रारंभ तथा अंत दोनों ही उपभोक्ता की आवश्यकता तथा संतुष्टि पर आधारित है।
एकीकृत प्रबंध कार्यवाही, उपभोक्ता-अभिमुखता, उपभोक्ता की संतुष्टि, लाभ के साथ संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति, उपभोक्ता मूल्य आदि इस अवधारणा की प्रमुख विशेषताए है।
सामाजिक विपणन की अवधारणा-
इस अवधारणा का मूल उद्देश्य विक्रय के बजाय समाज के कल्याण, सामाजिक हित तथा संगठन के सामाजिक उत्तरदायित्व पर जोर देना है।
फिलिप कोटलर के अनुसार-
" सामाजिक विपणन विचारधारा उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं , इच्छाओं तथा हितों का निर्धारण करने तथा उन्हें अपने प्रतिद्वन्दियो की अपेक्षा ऐसे अधिक प्रभावशाली एवं कुशल ढंग से संतुष्ट करने से है जिससे की उपभोक्ताओं तथा समाज के कल्याण की रक्षा हो सके अथवा उसमे वृद्धि हो सके।"
विपणन की तकनीकों के प्रयोग के द्वारा अधिकतम लाभ के साथ सामाजिक उत्तरदायित्व की पूर्ति करना ही इस अवधारणा का मूल उद्देश्य है।
अगले भाग में हम विपणन सम्मिश्र तथा 4P से 4C अवधारणा के बारे में चर्चा करेंगे
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