राजस्थान की हस्तशिल्प कलाएं /Handicarft arts of Rajasthan/RAS Prelims and Mains Study Material
थेवा कला (Thewa Art)-
यह गहने तथा सजावटी सामान बनाने की एक विशेष कला है जिसमे प्रशिक्षित चित्रकारों द्वारा बहुरंगी कांच पर 23 कैरट सोने से सुक्ष्म चित्रांकन किया जाता है।
मूल रूप से इस कला की उत्पति मुग़ल काल से मानी जाती है।
इसका विकास राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले से प्रारम्भ माना जाता है।
इसमें उपयोग किया जाने वाला कांच बेल्जियम कांच कहलाता है।
इसका आविष्कार नाथू जी सोनी द्वारा किया गया है।
इसके अंतर्गत बनाये जाने वाले सामानो में कांच के फोटो फ्रेम, बर्तन, फ्लास्क, कांच के गिलास गहने आदि शामिल है।
इस कला के कई कारीगरों जिनमे जगदीश लाल राज सोनी, बेनी राम सोनी, गिरीश राजसोनी आदि सम्मिलित है उन्हें शिल्पगुरु के पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।
एक अन्य कारीगर गिरीश राज सोनी को पद्मश्री तथा यूनेस्को सील ऑफ़ एक्सीलेंस अवार्ड भी दिया जा चुका है।
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ब्लू पॉटरी (Blue Pottery)-
सामान्यतः ब्लू पोटरी को जयपुर का पारम्परिक शिल्प माना जाता है किन्तु मूलतः यह एक तुर्क फ़ारसी कला है। यह कला 14 वी शताब्दी में तुर्को द्वारा भारत लायी गई थी।
जयपुर में इसे लाने का श्रेय यहाँ के शासक सवाई राम सिंह द्वितीय(1835 -1880 ) को जाता है जिन्होंने चूड़ामन तथा कालू कुम्हार को यह काम सिखने के लिए दिल्ली भेजा तथा उनके प्रशिक्षित होने पर जयपुर में इसकी शुरुआत की।
जयपुर के रामबाग पैलेस के फव्वारों पर आज भी इस कला का नमूना देखा जा सकता है।
1950 के दशक तक पूर्णतया विलुप्त हो चुकी इस कला को पुनर्जीवित करने का श्रेय प्रसिद्ध चित्रकार कृपाल सिंह शेखावत को जाता है जिन्हे पद्मश्री तथा शिल्पगुरु से सम्मानित किया जा चुका है।
इसके अतिरिक्त कमलादेवी चटोपाध्याय तथा राजमाता गायत्री देवी ने भी इस कला के विकास में अपना योगदान दिया है।
इस कला में सामग्री के रूप में क्वार्ट्ज़ पत्थर के पाउडर,मुल्तानी मिटटी,बोरेक्स, गोंद तथा पानी का प्रयोग किया जाता है।
इसका नाम बर्तन को रंगने में प्रयुक्त नील की वजह से ही ब्लू पोटरी कहा जाता है।
इससे बनने वाली वस्तुओ में खिलोने,सजावटी सामान,बर्तन,ऐश ट्रे, आदि प्रमुख है।
उस्ता कला (Usta Art)-
उस्ता से तात्पर्य उस्ताद अथवा मास्टर से है अर्थात किसी कला विशेष में पारंगत।
मुग़ल सम्राट अकबर के शासन कल में बीकानेर के महाराजा राय सिंह ने उस्ता कलाकारो के एक समूह को बीकानेर में बसाया था जो की इस कला में माहिर थे।
इन कलाकारो की कारीगरी को आज भी बीकानेर के जूनागढ़ किले के अनूप महल,फूल महल तथा करन महल में देखा जा सकता है।
उस्ता कला का सबसे प्रसिद्ध रूप सुनहरी मनोवती नक्काशी है।
प्रारंभिक काल में इस कला के अंतर्गत दीवारों तथा वस्तुओ पर नक्काशी की जाती थी लेकिन वर्तमान में यह कला ऊंट की खाल पर सोने की नक्काशी की रूप में विश्व प्रसिद्ध है।
मोहम्मद हनीफ उस्ता, इक़बाल,अल्ताफ, अयूब उस्ता आदि इस कला के पारंगत कलाकार है जिन्होंने पुरे विश्व में इस कला को पहचान दिलवाई है।
वर्तमान में इस कला के अन्य उदाहरण रामपुरिया हवेली, अजमेर दरगाह, दिल्ली की निजामुद्दीन ओलिया दरगाह तथा अमीर खुसरो के मकबरे के रूप में देखे जा सकते है।
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