अंग्रेजो ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए युद्द व विजय की नीति के साथ साथ कूटनीति का भी सहारा लिया। युद्ध की रणनीति से जहा बंगाल, मराठा, मैसूर व सिखों जैसी शक्तियों को परास्त किया वही कूटनीति का प्रयोग कर अन्य छोटे भारतीय राज्यों पर अंग्रेजो का प्रभुत्व कायम छुआ। 18वीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा उपयोग की गई कुछ प्रमुख कूटनीतियों का संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार से है-
रिंगफेन्स(घेरे) की नीति-
- प्रतिपादक- वारेन हेष्टिंग्स
- बफर जोन का निर्माण कर भारतीय राज्यों से कम्पनी की सीमाओं की सुरक्षा।
- मराठा व मैसूर राज्यों से युद्ध के समय प्रमुखता से इस नीति का प्रयोग।
- समर्थक राज्यों को उन्हीं के खर्च पर कम्पनी द्वारा सुरक्षा का भरोसा दिया जाता था।
सहायक संधि की नीति-
- प्रतिपादक- लार्ड वेलेजली (1798-1805)
- शुरआत फ्रांसीसी डूप्ले द्वारा लेकिन व्यापक तौर पर लाभ वेलेजली ने उठाया।
- यह एक मैत्री संधि थी जिसके अन्तर्गत-
- भारतीय राज्य पडोसी राज्यों के साथ युद्ध अथवा अन्य संबंधो के मामलों में कंपनी के परामर्शो को मानेंगें।
- बडे राज्यों को अपने खर्च पर सुरक्षा के लिए अंग्रेजी सेना रखनी होती थी।
- राज्यों में एक अंग्रेजी रेजिडेन्ट की नियुक्ति।
- कंपनी राज्यों की सुरक्षा करेगी लेकिन आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नही करेगी।
- संधि का क्रम- हैदराबाद (1798), मैसूर(1799), तंजौर(1799), अवध(1801), पेशवा(1801), बराड़(1803) व अन्य राजस्थानी रियासतें।
- जिन राज्यों ने भी सहायक संधि स्वीकार की कुछ समय बाद उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया।
व्यपगत का सिद्धान्त-
- प्रतिपादक- लार्ड डलहौजी(1848-1856)
- इसे डाक्ट्राइन आफ लेप्स अथवा डलहोजी की हडप नीति भी कहा जाता है।
- उत्तराधिकारी न होने की दशा में अथवा कुशासन का आरोप लगाकर डलहौजी ने कई महत्वपूर्ण देशी रियासतों को अपने अधीन कर लिया।
- इस नीति का शिकार होने वाली रियासते इस प्रकार थी - सतारा(1848 ), जैतपुर(1849 ), सम्बलपुर(1849 ), उदयपुर (1852 ), झाँसी(1853), नागपुर(1854).
- 1857 के विद्रोह के होने में यह नीति भी एक प्रमुख कारण रही।
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