- मेवाड़ शैली को राजस्थानी चित्रकला की मूल शैली माना जाता है। इसके विकास का श्रेय महाराणा कुम्भा को जाता है।
- इस शैली का प्राचीनतम ग्रन्थ 1260 ई के ''श्रावक प्रतिक्रमण सूत्रचूर्णि'' को माना गया है। इसे चार उपशैलियो में विभाजित किया गया है -
उदयपुर शैली -
- यह शैली उदयपुर व आसपास के क्षेत्र से सम्बन्धित है।
- महाराजा जगत सिंह के समय इस शैली का उदभव माना गया है। ''श्रावक प्रतिक्रमण सूत्रचूर्णि'' व ''सुपासनाहचरित'' इसी शैली के चित्रित ग्रन्थ है।
- इस शैली में पीले व लाल रंग का प्रमुखता से प्रयोग किया गया है।
- साहिबदीन, गंगाराम, कृपाराम व मनोहर आदि प्रमुख चित्रकार है।
- पुरुषों का छोटा कद, लम्बी मूछे , विशाल नयन, सर पर पगड़ी तथा स्त्रियों की मीन जैसी आँखे, लम्बी नाक, लहंगा व ओढ़नी आदि प्रमुख विशेषताएँ है।
- ''चितेरों की ओवरी'' विद्यालय का निर्माण जगत सिंह प्रथम ने करवाया था जिसे ''तसवीरां रो कारखानों'' के नाम से भी जाना जाता है।
नाथद्वारा शैली -
- यह शैली नाथद्वारा में श्रीनाथ जी व आसपास के क्षेत्र से सम्बन्धित है। अधिकतर चित्र कृष्ण लीला को समर्पित है।
- महाराजा राज सिंह के समय इस शैली का उदभव माना गया है।
- इस शैली में पीले व हरे रंग का प्रमुखता से प्रयोग किया गया है।
- घासीराम, नारायण, चतुर्भुज व उदयराम आदि इस शैली के प्रमुख चित्रकार है।
- पिछवाई कला इसी शैली का भाग है। श्रीनाथ जी के मंदिर में कपडे पर पर की जाने वाली चित्रकारी विश्व प्रसिद्ध है।
- गोपियों, ग्वाल बालो, गाय व केले के वृक्ष आदि को प्रमुखता से चित्रित किया गया है।
देवगढ़ शैली-
- यह राजसमंद के देवगढ़ ठिकाणे की शैली है जिसका उद्भव रावत द्वारिका दास चुण्डावत के समय 1680 में हुआ था।
- इस शैली के प्रमुख चित्रकार बैजनाथ, चोखा व कवँला है।
- इस शैली में राजसी व प्राकृतिक दृश्य, शिकार, आदि का चित्रण हुआ है जिसमे पीले रंग का बहुलता से प्रयोग है।
चावण्ड शैली-
- महाराणा प्रताप के चावण्ड को राजधानी बनाने के बाद इस शैली का उद्भव हुआ था। अमर सिंह के काल में इस शैली का विकास हुआ।
- निसारदी इस शैली के प्रमुख चित्रकार थे।
- रंगमाला प्रमुख चित्रित ग्रन्थ है।
No comments:
Post a Comment