- राजस्थान राज्य में काश्तकारों को उनके अधिकार दिलाने के लिए दिनांक 15 अक्टूबर 1955 को उपरोक्त अधिनियम प्रभावी हुआ।
- आबू, अजमेर तथा सुनेल क्षेत्र में झ्से 15 जून 1958 को लागू किया गया।
अधिनियम की महत्वपूर्ण परिभाषाएँ-
- कृषि वर्ष- 1 जुलाई से शुरू होकर 30 जून को समाप्त होने वाला वर्ष कृषि वर्ष कहलाता है।
- कृषि- इसमें पाँच गतिविधियाँ सम्मिलित है- उद्यान कार्य, पशुपालन, दुग्ध उत्पादन, कुककुट पालन एवं वन विकास।
- काश्तकार- वह व्यक्ति जो पूर्णतया अथवा मुख्य रूप से जीवन निर्वाह के लिए स्वयं या अपने नौकरो द्वारा की गई कृषि पर निर्भर करता है, काश्तकार की श्रेणी में आता है।
- बिस्वेदार- वह व्यक्ति जिसका नाम मिसल हकीयत (अधिकार अभिलेख) में बिस्वेदार के रूप में दर्ज हो तथा वो गाव में कोई बिस्वा धारण करता हो। अजमेर का खेवटदार भी इसी श्रेणी में सम्मिलित है।
- फसल- चारें व प्राकृतिक उपज को छोड़कर अन्य सभी छोटे वृक्ष, पौधे, बेले, झाडिया आदि फसल के अन्तर्गत माने जाते है।
- उपखण्ड- उपखण्ड से तात्पर्य भूमि के उस टुकड़े से है जिसका क्षेत्रफल निर्धारित न्यूनतम क्षेत्रफल से कम ना हो।
- अनुदान- राज्य के द्वारा प्रदत्त राज्य के किसी भी भाग में भूमि धारण करने का अधिकार अनुदान व इसे ग्रहण करने वाला अनुदानग्रहीता कहलाता है।
- उपवन भूमि- राज्य के अधिकार की वह भूमि जिसमें समुचित मात्रा में वृक्ष अथवा पौधे लगे हो तथा उस भूमि के कृषि अनुप्रयोग को रोकते है अथवा भविष्य में बड़े होकर रोकने वाले हो, उपवन भूमि कहलाती है।
- इजारा (ठेका)-सरकार द्वारा किसी व्यक्ति को लगान की वसूली हेतु अधिकृत करने हेतु जारी फार्म अथवा पट्टे को इजारा कहते है तथा इसे धारण करने वाला ठेकेदार या इजारेदार कहलाता है।
भूमि सुधार- भूमि क्षेत्र में किए गए निम्न कार्य सुधार के अन्तर्गत आते है-
- भूमि धारक द्वारा निवास हेतु बनाया गया भवन अथवा सुविधा हेतु पशुओं के बाड़े, कुएँ, चारागृह या अन्य निर्माण।
- कृषि भूमि की कीमत में वृद्धि करने वाले निर्माण कार्य यथा-
- जल संग्रहण व वितरण हेतु कुओं, तालाबों नाली आदि का स्थायी निर्माण।
- भूमि की रक्षा व कटाव आदि को रोकने हेतु बाड़बंदी, समतलीकरण, दीवार आदि का निर्माण।
- उपरोक्त कार्यो का पुर्ननिर्माण आदि।
नोट- खेती के दौरान किए गए अस्थायी निर्माण जो कुछ समय के लिए बनाए जाते है, सुधार के अन्तर्गत नहीं आते है।
- जागीरदार- राज्य के किसी भी भाग में जागीर भूमि अथवा उस भूमि में हित धारण करने वाला व्यक्ति जिसे जागीर कानून से मान्यता प्राप्त हो, जागीरदार की श्रेणी में आता है।
- खुदकाश्त- ऐसी भूमि जो काश्तकारी अधिनियम के पूर्व बन्दोबस्त अभिलेख में खुदकाश्त सीर, निजी जोत, हवाला या घर खेड़ के रुप में दर्ज हो अथवा अधिनियम लागू होने के बाद खुदकाश्त के रूप में आवंटित की गई हो, खुदकाश्त भूमि कहलाती है।इस भूमि का मालिक खुदकाश्त कहलाता है जो स्वयं इस भूमि पर खेती करता है।
नोट- विधवा, अवयस्क, भारतीय सेना, नौसेना या वायुसेना के कार्मिक या 25 वर्ष से कम आयु के मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्था के विद्यार्थी के सम्बन्ध में व्यक्तिगत देखरेख न होने पर भी भूमि खुदकाश्त मानी जाएगी।
RAJASTHAN KASHTKARI ADHINIYAM PART 2
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