राजस्थान में चित्रकला का उद्भव प्रागैतिहासिक में ही हो गया था। कालीबंगा व आहड़ से प्राप्त मृदभाण्डों पर भी चित्रकला के साक्ष्य मिलते है।
1060 ई० के दो ग्रन्थ " ओध नियुक्ति वृत्ति" व " दश वैकालिका " चित्रकला के प्राचीन ग्रन्थ है।
17 वीं तथा 18 वीं शताब्दी में कई नई शैलियों का विकास राजस्थान में हुआ।
1060 ई० के दो ग्रन्थ " ओध नियुक्ति वृत्ति" व " दश वैकालिका " चित्रकला के प्राचीन ग्रन्थ है।
17 वीं तथा 18 वीं शताब्दी में कई नई शैलियों का विकास राजस्थान में हुआ।
राजस्थानी चित्रकला की प्रमुख विशेषताएँ-
- यह अति प्राचीन एवं विशुद्ध भारतीय शैली है।
- इस पर अजन्ता व मुगल शैली का प्रभाव परिलक्षित होता है।
- चित्रकारों ने लाल, पीले, श्वेत तथा हरा आदि चटकीले रंगो का प्रयोग चित्रों में किया है।
- राजस्थानी चित्रकला विषयवस्तु की दृष्टि से अत्यन्त विविधता से परिपूर्ण है।
- इसमें प्राकृतिक दृश्यों व जानवरों का भी सुन्दर चित्रण किया गया है।
- राजस्थानी चित्रकला रस प्रधान तथा नारी सौन्दर्य व लोक भावना से परिपूर्ण शैली है।
- राजपूती सभ्यता से लेकर भक्ति काल व रीति काल के चित्र इस शैली में चित्रित है।
राजस्थानी चित्रकला का वर्गीकरण-
श्री आनंद कुमार स्वामी ने 1916 ई० में अपनी पुस्तक "राजपूत पेंटिंग्स" में राजस्थानी चित्रकला को चार प्रमुख विद्यालयों में विभाजित किया है-
- मेवाड़ विद्यालय - उदयपुर, देवगढ़, नाथद्वारा, चावन्ड़ शैली।
- मारवाड़ विद्यालय- बीकानेर, जोधपुर, किशनगढ़, जैसलमेर, अजमेर एवं नागौर शैली।
- ढूंढ़ाड विद्यालय- जयपुर, आमेर, अलवर तथा उनियारा शैली।
- हाडौती विद्यालय- बूँदी, कोटा व दुगारी शैली।
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