शुरू से ही भारत की एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत रही है। प्राचीन काल से ही इसे अपने ज्ञान व् साहित्यिक संग्रह की उपलब्ध्ता की वजह से विश्वगुरु का दर्जा दिया गया है। यह साहित्य इस देश की संस्कृति का एक प्रमुख स्त्रोत है। देश के विभिन्न भागो में कई भाषाए व बोलिया प्रचलन में रही है। देश में लगभग 1000 से भी ज्यादा बोलिया रही है जिनमे से 700 से अधिक अभी भी प्रचलन में है। संविधान में भी सातवीं अनुसूची को जगह दिया गया है जिसमे वर्तमान में 22 भाषाए सम्मिलित है। संस्कृत देश की अधिकांश भाषाओ की जननी रही है। इसका साहित्य भंडार विश्व में विशालतम जिसकी शुरुआत प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद से मानी जाती है।
संस्कृत साहित्य -
संस्कृत साहित्य -
- वेद भारत का प्राचीनतम साहित्य है। वेद का अर्थ ज्ञान होता है अतः इन्हे ज्ञान का स्त्रोत माना गया है। ये संस्कृत भाषा में लिखे गए थे तथा इनका सम्प्रेषण मौखिक रूप से हुआ है। वेद संख्या में चार है - ऋग्वेद , सामवेद, अथर्ववेद तथा यजुर्वेद। ऋग्वेद पूर्व वैदिक जबकि अन्य तीन उत्तर वैदिक काल की रचना मानी जाती है।
- ऋग्वेद - यह 1028 सूक्तों का संग्रह है। इसमें वैदिक काल के प्रमुख देवताओ यथा सोम( पेय), इंद्र (युद्ध) तथा अग्नि का वर्णन किया गया है। इन सूक्तों में जीवन के उच्च आदर्शो के बारे में वर्णन किया गया है।
- यजुर्वेद - उत्तरवैदिक काल में रचित यह वेद यज्ञ अनुष्ठानो से सम्बंधित है। इसकी दो शाखाए है - कृष्ण वेद व शुक्ल वेद। इस ग्रन्थ में उस समय की सामाजिक व धार्मिक स्थिति का भी वर्णन किया गया है।
- साम वेद - साम वेद में संगीत से जुड़े विभिन्न मंत्रो का संकलन है जिनकी संख्या 1800 से भी अधिक है।साम का अर्थ 'लय' होता है। इसे भारतीय संगीत का मूल ग्रन्थ माना जाता है।
- अथर्ववेद जादू टोनो व रोग उपचार से सम्बंधित जानकारियो का स्त्रोत है इसे बर्ह्मवेद भी कहा जाता है। पिप्पलाद व शानक इसके दो भाग है।
- वेदांग - वेदो की भाषा कठिन होने की वजह से इनकी सार रूप में वेदांगों की रचना की गयी। ये सभी वेदो की व्याख्या सरल रूप में करते है तथा संख्या में छ है-शिक्षा, कल्प , व्याकरण, निरुक्त , छंद, ज्योतिष। वेदांगों को सूत्र शैली में लिखा गया है। पाणिनि कृत अष्टाध्यायी भी एक संस्कृत की व्याकरण पुस्तक है जो की वेदांगों के समकालीन थी। यह उस समय के समाज व संस्कृति का महत्वपूर्ण स्त्रोत है।
- ब्राह्मण व आरण्यक- उपरोक्त ग्रंथो के पश्चात रचे गए सभी ग्रंथो को विद्वानो द्वारा 'ब्राह्मण' ग्रंथो की श्रेणी में रखा गया है। वैदिक कर्मकांड व यज्ञो से संबंधित सभी नियमो की व्याख्या इनमें की गयी है। ये ग्रन्थ वेदो से जुड़े हुए है यथा - कोशितकि व ऐतरेय (ऋग्वेद), तैत्तिरीय (कृष्ण यजुर्वेद )शतपथ (शुक्ल यजुर्वेद), ताण्ड्य, पंचविश व् जैमिनी(अथर्ववेद ) से संबंधित है। उपनिषद गुरु के पास बैठकर लिए गए ज्ञान के लिए जाने जाते है तथा आरण्यक वनो में रचे गए। आरण्यक जीवन आत्मा मृत्यु आदि के विषय में जानकारी प्रदान करते है।
उपनिषद वैदिक परम्परा के सबसे अंतिम भाग माने जाते है। इनमे भारतीय दर्शन की उत्कृष्टता व गहन चर्चा निहित है। वैसे तो 200 से अधिक उपनिषद माने जाते है किन्तु मुकितका के अनुसार इनकी संख्या 108 मानी गयी है। उपनिषदों में जीवन मृत्यु ,ज्ञान , भौतिक व् आध्यात्मिक जगत आदि के बारे में विस्तार से चर्चा की गयी है। ईश, केन , कठ , मुण्डक , छान्दोग्य व बृहदारयण्क कुछ महत्वपूर्ण उपनिषद है।
क्रमशः ..........
No comments:
Post a Comment