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Tuesday, August 25, 2015

पर्यावरण व IPCC रिपोर्ट (PARYAVARAN V IPCC REPORT)

पिछले कुछ महीनो के दौरान IPCC (जलवायु परिवर्तन पर अंतर्सरकारी पैनल ) द्वारा जारी विभिन्न रिपोर्टो में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों के प्रति चिंता व्यक्त की गयी है। ''जलवायु परिवर्तन 2014 प्रभाव, अनुकूलन व जोखिम '' शीर्षक  से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है की जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पहले ही महासागरों तथा महाद्वीपों पर विस्तृत रूप ले चूका है। दुनिया के 15 फीसदी आबादी वाले लोग ४० फीसदी संसाधनो का उपयोग कर रहे है।

  • प्रमुख बातें -
  1. एशिया को बाढ़ , गर्मी  से मृत्यु , सूखे व् पानी  से सम्बंधित खाद्य  की कमी  का सामना करना पड़ सकता है। 
  2. कृषि आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था वाले भारत जैसे देश के लिए यह और भी खतरनाक हो सकता है। 
  3. जलवायु परिवर्तन की वजह से दक्षिण  एशिया में गेहू की पैदावार पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा।
  4. एशिया में तटीय व् शहरी इलाको में बाढ़ की वृद्धि से बुनियादी ढांचे आजीविका व बस्तियों को काफी नुकसान हो सकता है। 
  5.  ग्लोबल वार्मिंग को 2 % पर सिमित रखने के लिए जो फैसला २००९ में किया गया था उस पर तुरंत  अमल करना होगा।
  6. बिजली उत्पादन को तुरंत कोयले की बजाय अन्य कम कार्बन वाले स्त्रोतों में बदलना होगा जिसमे परमाणु ऊर्जा भी शामिल है। 
  7. ऊर्जा क्षेत्र में नवीकरणीय स्त्रोतों का हिस्सा 30 % से बढ़कर 2050 तक 80 % तक हो जाना चाहिए।
  8. सीसीएस यानि कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज तकनीक से उत्सर्जन धीमा किया जा सकता है परन्तु इसका विकास धीमा है। 
  • भारत पर इसका प्रभाव -
  1. देश में इस वर्ष गेहू के उत्पादन में 2009 की तुलना में 50 % कमी देखि गयी है। 
  2. देश की अर्थव्यवस्था तेजी से उभर रही है  किन्तु कृषि क्षेत्र की विकास दर २०१२-१३ में घटकर मात्र 1.8 % रह गयी है। 
  3. भारत को पर्यावरण प्रदुषण के स्तर के हिसाब से सातवे  सबसे खतरनाक देश के रूप में स्थान दिया गया है। 
नेचर क्लाइमेट चेंज एंड अर्थ सिस्टम साइंस डेटा जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार इस साल के दौरान चीन , अमेरिका व यूरोपीय यूनियन के वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 28 , 16 व् 11 फीसदी हिस्सेदारी है जबकि भारत की हिस्सेदारी सात फीसदी है। ज्यफिसिकल रिसर्च लेटर नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे है तथा इससे समुद्रो का जल स्तर बढ़ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक हिमालय के सभी ग्लेसियर 2035 तक पूर्णतया पिघल जायेंगे। 

     जलवायु परिवर्तन पलायन का भी बड़ा कारण बन रहा है। इंटरनेशनल आर्गेनाइजेशन फॉर माइग्रेशन ने अनुमान लगाया है की 2050 तक दुनिया के 20 करोड़ लोग पलायन कर जायेंगे। 2050 की 9 अरब जनसंख्या में से करीब 9 % प्रदुषण की वजह से पलायन की मार झेल रहे होंगे। पिछले 18 वर्षो में धरती का तापमान लगभग 0. 7 डिग्री तक बढ़ा है। 

दुनिया को खतरनाक जलवायु परिवर्तनों से बचाना है तो जीवाश्म ईंधनों के अंधाधुंध इस्तेमाल को तुरंत रोकना होगा।  भारत सरकार पहले ही कह चुकी है की वह कार्बन उतसर्जन में 25 % तक कमी लाने का प्रयास करेगी। 
इस हेतु सरकार ने सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य 20000 मेगावाट से बढाकर 100000 मेगावाट रखा है। 
प्रकृति पर जितना अधिकार हमारा है उतना ही आने वाली पीढ़ियों का भी है अतः यह हमारा उत्तरदायित्व है की हम उनके लिए जीने लायक पर्यावरण छोड़कर जाये। 



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