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Tuesday, August 25, 2015

बैंको का पुनर्पूंजीकरण( BAINKO KA PUNARPUNJIKARAN)

 यह एक ऐसी प्रक्रिया है  जिसमे एक वित्तीय लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पूंजी एवं ऋण की राशि  का गठन किया जाता है/ जो ऋण कंपनी द्वारा लिया जाता है उसकी वजह से दिवालियापन से बचने के लिए इस रस्ते को अपनाया जाता है। इसका सम्बन्ध मुख्यतः व्यापार से होता है लेकिन इसका उपयोग लाभ संगठनो, बैंको  सामान्य व्यक्ति द्वारा भी किया जा  सकता है.

इसके मुख्य घटक निम्न प्रकार है-
  1. यह तभी किया जा सकता है जब देश या सरकार द्वारा नया ॠण लिया जाये।
  2. इससे बैंक को नयी पूंजी प्राप्त  होती है जिससे उसके स्तर में सुधार होता है तथा उसका वित्तीय ढांचा गिरने से बच जाता है। 
  3. हाल ही सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको को बेसेल-३ नियमो के तहत पूंजी पर्यायप्तता मानको के अनुपालन के लिए नवीन पूंजी निवेश के लिए केंद्र सरकार की और से दिशा निर्देश मिले है। 
पुनर्पूंजीकरण के निम्न लाभ है-

  1. यह उत्पादक क्षेत्रो की ॠण आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। 
  2. बैंको पर तनाव को काम करने में मदद करता है 
  3. निवेशकों के विश्वास को ऊपर उठाते हुए बाजार भावो को बरक़रार रखने में मदद करता है। 
  4. इससे रोजगार उन्मुख क्षेत्रो यथा सूक्ष्म व लघु उद्योगो , कृषि, निर्यात आदि को भी लाभ होता है
  5. उपरोक्त सभी गतिविधयों से  के आर्थिक विकास में भी योगदान होता है। 
हमारे बैंको में साल 2018  तक इक्विटी के तौर पर २,४०,००० करोड़ रूपये निवेश करने की जरुरत होगी। इस हेतु बैंको में सार्वजनिक शेयर धारिता को बढ़ाते हुए 49  प्रतिशत तक किया जायेगा ( सरकार के स्वामित्व को बनाये रखते हुए ) जिससे की बाकि बची आर्थिक जनसँख्या का ४२ प्रतिशत भी वित्तीय समवेशन के दायरे में आ जाये। 

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RAS Mains Paper 1

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